छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल विस्तार की इनसाइड स्टोरी: गजेंद्र, खुशवंत और राजेश की एंट्री से बदला समीकरण

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छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार में बुधवार को तीन नए चेहरों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव, आरंग विधायक गुरु खुशवंत साहेब और अंबिकापुर विधायक राजेश अग्रवाल अब सीएम साय की टीम का हिस्सा बन गए हैं। इस तरह मंत्रिमंडल में कुल मंत्रियों की संख्या 14 हो गई।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पार्टी ने जातीय समीकरण और भविष्य के चुनावों को ध्यान में रखकर यह बड़ा कदम उठाया है। पुराने दिग्गजों को किनारे कर बीजेपी ने साफ संदेश दिया है कि अब अगली पीढ़ी की तैयारी शुरू हो चुकी है।


गजेंद्र यादव : OBC और बिहार कनेक्शन

गजेंद्र यादव को कैबिनेट में जगह देकर बीजेपी ने यादव समाज को मजबूत प्रतिनिधित्व दिया है। उनकी पहचान संघ पृष्ठभूमि से भी जुड़ी है।

  • बिहार की जातिगत गणना में यादवों की 14% हिस्सेदारी को देखते हुए पार्टी चाहती है कि यह संदेश पूरे देश में जाए कि यादव समाज को सत्ता में भागीदारी दी जा रही है।

  • यही कारण है कि गजेंद्र की एंट्री को राष्ट्रीय राजनीति और बिहार चुनाव दोनों से जोड़कर देखा जा रहा है।


गुरु खुशवंत साहेब : SC वोट बैंक को साधने का दांव

आरंग विधायक गुरु खुशवंत साहेब सतनामी समाज से आते हैं और संत गुरु बालदास के उत्तराधिकारी हैं।

  • 2013 में बालदास का समर्थन मिलने पर बीजेपी को सीधा फायदा हुआ था, जबकि 2018 में कांग्रेस को सपोर्ट करने से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।

  • खुशवंत को मंत्री बनाकर बीजेपी ने संकेत दिया है कि अब SC वोट बैंक को मज़बूती से अपने साथ रखने की रणनीति पर काम होगा।


राजेश अग्रवाल : वैश्य समाज और नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व

अंबिकापुर से पहली बार विधायक बने राजेश अग्रवाल ने कांग्रेस के दिग्गज टी.एस. सिंहदेव को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं।

  • वे वैश्य/व्यापारी समाज से आते हैं।

  • बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद छोड़ने के बाद इस वर्ग का प्रतिनिधित्व खाली हो गया था।

  • राजेश की ताजगी और जीत को देखते हुए उन्हें कैबिनेट में शामिल कर पार्टी ने ये मैसेज दिया है कि अब पुराने चेहरों की जगह नई पीढ़ी को मौका मिलेगा।


किनारे हुए दिग्गज

इस विस्तार में पुन्नूलाल मोहिले, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, विक्रम उसेंडी और धरमलाल कौशिक जैसे अनुभवी नेताओं को शामिल नहीं किया गया। कई नेताओं ने दिल्ली तक दौड़ लगाई, लेकिन टिकट कट गया।


साफ है कि बीजेपी ने इस कैबिनेट विस्तार के ज़रिए जातीय संतुलन साधने के साथ-साथ आने वाले 2028 विधानसभा चुनाव और बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही अपने पत्ते खोले हैं।

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