दुर्ग, 21 अगस्त 2025/ कृषि विज्ञान केन्द्र, पाहंदा (अ), दुर्ग के वैज्ञानिकों ने धान के खेतों का भ्रमण किया तो यह पाया कि धान में काई की समस्या बहुतायत में बढ़ रही है। काई धान की खेती में आने वाली एक प्रमुख समस्या है, जिसके निदान हेतु प्रायः किसान भाई कोई उपाय नहीं करतें फलस्वरूप उपज में कमी आ जाती है। पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है, जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते है। पौधे में कंसे नही निकल पाते है एक से दो ही कंसे रह जाते है जिससे बालियों की संख्या कम बनती है और अंत में उत्पादन में कमी आ जाती है। सतह पर काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाली उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं पहुंच पाती, जिससे पौधे में पोषक तत्व की कमी के साथ-साथ डाले गए उर्वरक की भी हानि होती है।
काई का समाधान –
नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) की 500-600 ग्राम मात्रा को अच्छे से पीस कर सूती कपड़े की पोटली बनाकर 5-6 स्थानों पर सामान दूरी में खेत में भरे पानी में रख दें जिससे काई की पर्त फट जाती है। इस प्रकार काई पर नियंत्रण पाया जा सकता है।