नगरी। छत्तीसगढ़ में एक ऐसी जगह है, जहां हर साल देवी देवता की अदालत लगती है, और परीक्षा लेकर उन्हें सजा सुनाई जाती है। इस अदालत में इंसान को नहीं बल्कि, देवी- देवताओं को सजा दी जाती है। जी हां… हम बात कर रहे हैं, धमतरी जिला के नगरी- सिहावा से बोराई मार्ग पर स्थित घने जंगलों के मध्य एक पहाड़ी कुर्सीघाट स्थल पर विराजित न्याय की देवी भंगाराम माई की। यहां साल में एक बार देवी के दरबार में यहां का गांवों के देवी- देवताओं की अदालत लगती है। जहां देवी- देवताओं का परीक्षा लिया जाता है, और न्याय की देवी दंड सुनाती है. इस दिन को लोग देवी जात्रा कार्यक्रम के रूप में मनाते है।
इस वर्ष माई का वार्षिक जात्रा कार्यक्रम शनिवार 23 अगस्त को अत्यंत श्रद्धा, आस्था एवं परंपरा के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर सिहावा, बस्तर तथा पड़ोसी राज्य उड़ीसा से बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन भंगाराम माई देवी के दर्शन हेतु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने देवी के शरण में मत्था टेककर मन्नत मांगी एवं क्षेत्र की सुख-समृद्धि की कामना की।
यह कार्यक्रम हमारी सांस्कृतिक विरासत- सांसद भोजराज नाग
इस कार्यक्रम में कांकेर लोकसभा क्षेत्र के सांसद भोजराज नाग सहित कई क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने भी उपस्थिति रहे। सांसद नाग ने देवी के दर्शन कर पूजा-अर्चना क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए कामना की और इसे क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत बताते हुए कहा कि, भंगाराम माई जात्रा हमारी पुरखों की परंपरा है, जिसे आज भी श्रद्धापूर्वक निभाया जा रहा है। यह आयोजन हमारी संस्कृति और एकता का प्रतीक है।
भंगाराम माई देवी-देवता को सुनती है दंड
देवी की मुख्य पुजारी प्रफुल्ल सामरथ, क्षेत्र के युवा नेता मनोज साक्षी ने बताया कि भंगा राम माई देवी को न्याय की देवी माना जाता है। जो होने वाली जात्रा में 7 पाली उड़ीसा, 20 कोस बस्तर और 16 परगना सिहावा क्षेत्र के देवी-देवता अपने-अपने अनुयायियों के साथ उपस्थित होकर देवी दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। क्षेत्रीय मान्यता के अनुसार, इस दरबार में यदि किसी देवी-देवता की गलती पाई जाती है तो भंगाराम माई स्वयं उसे दंड सुनाती हैं। खास बात यह रहती है कि, दरबार में बनावटी देवी-देवताओं की पहचान कर उन्हें दरबार से बाहर किया जाता है। जबकि, सच्चे देवी-देवताओं को परीक्षा के माध्यम से परखा जाता है।
आयोजन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
देवी की पुजारी ने जानकारी दी कि यह परंपरा अति प्राचीन है, जिसे आज भी उसी श्रद्धा और नियमों के साथ निभाया जा रहा है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है। बल्कि सामाजिक एकता और संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है। जात्रा के दौरान देवी- देवताओं ने पारंपरिक वाद्य यंत्र के धून में नृत्य, करते हैं, आयोजन में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जिससे कई किलोमीटर तक मार्ग में जाम की स्थिति बनी रही। इस पावन अवसर पर क्षेत्र के अनेक आंगादेव एवं देवी- देवताओं ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और पारंपरिक तरीके से जनमानस को लोकसंस्कृति से जोड़ने का कार्य किया।