दुर्ग : वीर नारायण सिहं के शहादत दिवस को याद करने व श्रद्धाजंलि देने हेतु केंद्रीय गोड़ महासभा धमधा गढ़ के समाज नया बस स्टैंड स्थित वीर नारायण सिंह प्रतिमा के पास इकट्ठा हुए जहाँ अमर शहीद अमर रहे कि नारा बुलंद किया गया तथा जब तक सूरज चाँद रहेगा, तब तक वीर नारायण सिहं का नाम रहेगा नारा लगाया गया। सर्व प्रथम वीर नारायण सिहं के प्रतिमा का पूजा अर्चना व माल्यर्पण कर समाज द्वारा दो मिनट की श्रदांजलि दिया गया। अध्यक्ष श्री एम डी ठाकुर ने उनकी शहादत को नमन करते हुए कहा कि हमें उनकी बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए, वे प्रजा की सेवा करते हुए, अपने प्राणों की आहुति दे दिए, समाज को उनकी बलिदान पर गर्व हैं। वीर नारायण सिंह को सकल समाज का आर्दश बताते हुए सेवानिवृत अपर कलेक्टर श्री डी. एस. सोरी ने कहा कि हमें उनकी वीरता को कभी नहीं भूलना नहीं चाहिए वे हमारे समाज के प्रेरणा स्रोत हैं उनकी शहादत को प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी का दर्जा प्राप्त हुआ है।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से सर्व श्री सीताराम ठाकुर ,पन्ना लाल नेताम, दिलीप ठाकुर करण, प्रशान्त, ललित, पवन,राजेन्द्र, किशोरी,डॉ विश्व नाथ यादव,लेखराम यादव एवं समाज के युवा साथी उपस्थित थे।
वीर नारायण सिंह बिंझवार: महान क्रांतिकारी जिनके शव को अंग्रेजों ने तोप से बांध कर उड़ा दिया थाः-
क्या आप जानते हैं भारत के रॉबिनहुड को जो गरीबों के हित के लिए फांसी पर झूल गये। यह वह व्यक्ति है जिसने गरीब देशवासियों की जान के लिए अपनी जान का बलिदान कर दिया। जमींदार होते हुए भी यह साहूकारों से देशवासियों की भूख के लिए लड़ा। इस हुतात्मा का नाम है वीर नारायण सिंह बिंझवार जिन्हें 1857 के स्वातंत्र्य समर में छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद के रूप में जाना जाता है। वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राम राय था। कहते हैं इनके पूर्वजों के पास 300 गांवों की जमींदारी थी।
यह बिंझवार जनजाति के थे। पिता की मृत्यु के बाद 35 वर्ष की आयु में वीर नारायण सिंह अपने पिता के स्थान पर जमींदार बने। उनका स्थानीय लोगों से अटूट लगाव था। 1856 में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा। लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। जो था वह अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार जमाखोरी करके अपने गोदामों में भर लेते थे। भूख से जनता का बुरा हाल था। अपने क्षेत्र के लोगों का इतना बुरा हाल वीर नारायण सिंह से देखा नहीं गया। उन्होंने कसडोल स्थान पर अंग्रेजों से सहायता प्राप्त साहूकार माखनलाल के गोदामों से अवैध और जोर जबरदस्ती से एकत्रित किया हुआ अनाज लूट लिया और भूखमरी से पीड़ित गरीब जनता को बांट दिया। इस कृत्य के कारण अंग्रेजों ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 को बंदी बना कर जेल में डाल दिया।