भारत में आज रविवार, 7 सितंबर 2025 को साल का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण यानी ब्लड मून होगा और इसे पूरे देश में कहीं से भी देखा जा सकेगा। यह 2022 के बाद भारत में सबसे लंबा पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा।
चंद्र ग्रहण का नजारा रात करीब 10 बजे से शुरू होकर 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा, जिसमें से 82 मिनट पूर्ण ग्रहण रहेगा। इस दौरान पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाएगी, जिससे चांद पर उसकी छाया पड़ेगी और लाल-नारंगी रंग में दिखाई देगा। इसे ब्लड मून कहा जाता है।
विशेष: 27 जुलाई 2018 के बाद यह पहली बार है जब ग्रहण को देश के सभी हिस्सों से देखा जा सकेगा। इसे सीधे आंखों से देखा जा सकता है, कोई विशेष चश्मा या फिल्टर की जरूरत नहीं है। दूरबीन या टेलीस्कोप से देखने पर दृश्य और भी स्पष्ट रहेगा।
ग्रहण दुनिया के अन्य हिस्सों में
चंद्र ग्रहण भारत के अलावा एशिया, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अफ्रीका में भी दिखाई देगा। विशेषज्ञों के अनुसार एशिया और ऑस्ट्रेलिया में लोग इसे सबसे शानदार दृश्य के रूप में देख पाएंगे।
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बैंकॉक: 12:30 – 1:52 बजे
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बीजिंग/हांगकांग: 1:30 – 2:52 बजे
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टोक्यो: 2:30 – 3:52 बजे
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सिडनी: 3:30 – 4:52 बजे
विश्व की करीब 77% आबादी ग्रहण को देख पाएगी।
चंद्र ग्रहण क्या है और क्यों होता है
पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण घूमते हैं। कभी-कभी ऐसी स्थिति बनती है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं। इस समय सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। यही चंद्र ग्रहण कहलाता है।
चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन ही होता है।
चंद्र ग्रहण के प्रकार
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पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse / ब्लड मून)
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पृथ्वी की पूरी छाया चंद्रमा पर पड़ती है।
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चंद्रमा पूरी तरह अंधेरा दिखाई देता है।
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आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse)
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पृथ्वी की छाया चंद्रमा के एक हिस्से को ही ढकती है।
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चंद्रमा का केवल एक भाग अंधेरा दिखाई देता है।
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उपछाया चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse)
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पृथ्वी की हल्की छाया चंद्रमा पर पड़ती है।
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इसे देखना मुश्किल होता है।
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ग्रहण और पृथ्वी की छाया
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पूर्ण छाया (Umbra): चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की गहरी छाया में हो, तब पूर्ण ग्रहण दिखता है।
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आंशिक छाया (Penumbra): चंद्रमा केवल हल्की छाया में हो, तब आंशिक ग्रहण दिखाई देता है।
वैज्ञानिक महत्व
चंद्र ग्रहण के दौरान कई खोज हुई हैं:
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150 ईसा पूर्व: ग्रीक वैज्ञानिकों ने चंद्र ग्रहण की मदद से पृथ्वी का व्यास मापा।
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400 ईसा पूर्व: अरिस्तर्खुस ने चंद्र ग्रहण से पृथ्वी और चंद्रमा की दूरी निर्धारित की।
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2nd सदी: क्लाडियस टॉलमी ने इस आधार पर दुनिया का प्राचीन वर्ल्ड मैप तैयार किया।
ग्रहण से जुड़े मिथक और सच्चाई
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राहु चंद्रमा को निगलता है: NASA ने इसे खारिज किया है।
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ग्रहण सुनामी या प्राकृतिक आपदा लाता है: ऐसा नहीं होता।
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ग्रहण के दौरान खाना खराब हो जाता है: यह मिथक है, खाना सुरक्षित रहता है।
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ग्रहण अशुभ संकेत देता है: विज्ञान इसे स्वीकार नहीं करता।
सारांश:
चंद्र ग्रहण एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है। इसे देखकर आप सीधे आकाश का अद्भुत दृश्य देख सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह न केवल रोचक है बल्कि कई खगोलीय खोजों का स्रोत भी बनता है।