भारत इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) टेक्नोलॉजी में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। अब तक इलेक्ट्रिक मोटर बनाने में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मेटल्स पर दुनिया का भारी दबाव चीन की वजह से था। लेकिन भारतीय कंपनियां अब ऐसी मोटर विकसित कर रही हैं, जिनमें परमानेंट मैग्नेट की जगह टाइटली वाइंडेड मेटल कॉइल्स का इस्तेमाल किया जाएगा।
भारत में टेस्टिंग जारी
फरीदाबाद स्थित 3,500 स्क्वायर फीट की लैब में फोटोनिक सॉल्यूशंस और स्टर्लिंग जीटीके ई-मोबिलिटी जैसी कंपनियां ब्रिटेन की Advanced Electric Machines टेक्नोलॉजी पर आधारित इन मोटर्स की टेस्टिंग कर रही हैं। इसमें चुंबक की बजाय कसकर लपेटी हुई कॉइल्स से बिजली पैदा होगी। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो यह ईवी मार्केट में गेम-चेंजर साबित हो सकता है और चीन से रेयर अर्थ मेटल्स की निर्भरता लगभग खत्म हो जाएगी।
क्यों अहम है यह तकनीक?
ईवी मोटर्स में नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम और टरबियम जैसे रेयर अर्थ मेटल्स से बने मैग्नेट्स का इस्तेमाल होता है। ये मोटर को कॉम्पैक्ट, हल्का और ज्यादा एफिशिएंट बनाते हैं, जिससे गाड़ियों की रेंज और परफॉर्मेंस बेहतर होती है। यही कारण है कि इन मेटल्स की वैश्विक मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
चीन की पकड़ सबसे मजबूत
दुनिया भर में रेयर अर्थ मेटल्स की माइनिंग में चीन की हिस्सेदारी लगभग 70% है, जबकि प्रोसेसिंग और प्रोडक्शन में यह आंकड़ा 90% तक पहुंच जाता है। हाल ही में अमेरिका के साथ बढ़ते ट्रेड वॉर के बीच चीन ने सात अहम रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही कार, ड्रोन, रोबोट और मिसाइल बनाने में काम आने वाले मैग्नेट्स की सप्लाई भी रोक दी गई। इससे दुनिया की ऑटोमोबाइल, सेमीकंडक्टर और एयरोस्पेस इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ गया है।
भारत के लिए बड़ा मौका
अगर भारत की यह मैग्नेट-फ्री मोटर टेक्नोलॉजी सफल रहती है, तो देश न सिर्फ ईवी सेक्टर में आत्मनिर्भर बन सकेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक बड़ी वैकल्पिक तकनीक पेश करेगा। इससे आने वाले समय में ‘मेड इन इंडिया’ ईवी मोटर्स दुनिया के बाजारों में नई पहचान बना सकती हैं।