बस्तर के खेत आज भी प्यासे: मानसूनी बारिश पर निर्भर किसानों की चिंता

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बस्तर के किसान आज भी मानसूनी बारिश पर अपनी खेती निर्भर रखते हैं। आजादी के बाद से इस क्षेत्र में कोई बड़ी सिंचाई योजना विकसित नहीं हो सकी है। बस्तर की प्रमुख नदी इंद्रावती है, जो बस्तर पठार से बहकर गोदावरी नदी में मिलती है। इसके अलावा मारकंडी, कोटरी, नारंगी, शंखिनी, डंकिनी, चिंतावागु और शबरी जैसी सहायक नदियाँ भी हैं।

फिर भी जिले में सिर्फ 12 प्रतिशत ही सिंचाई योग्य भूमि है। इंद्रावती और इसकी सहायक नदियों में अब तक कोई बड़ी सिंचाई परियोजना पूरी नहीं हो पाई है। उदाहरण के तौर पर, 1979 में प्रस्तावित बोदघाट सिंचाई योजना अभी तक शुरू नहीं हो पाई।


किसान अब भी मानसून के भरोसे

सिंचाई विभाग ने पिछले 20 साल में करीब 300 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन सिर्फ 20,000 हेक्टेयर का सिंचित रकबा बढ़ पाया। लक्ष्य 50,000 हेक्टेयर था। छत्तीसगढ़ गठन के बाद बस्तर में केवल 12 प्रतिशत भूमि सिंचित हो सकी है, जबकि 82 प्रतिशत किसान अब भी मानसून पर निर्भर हैं।


विभाग परियोजनाओं को संचालित नहीं कर पा रहा

सिंचाई विभाग पुराने प्रोजेक्ट्स भी सही तरह से नहीं चला पा रहा है। वर्तमान में केवल कोसारटेडा मध्यम सिंचाई परियोजना ही किसानों को रबी सीजन में पानी उपलब्ध करा पा रही है, और वह भी निर्धारित रकबे के लिए पर्याप्त नहीं है। हर साल केवल लगभग 1,000 हेक्टेयर भूमि ही अतिरिक्त सिंचित हो पाती है।


नुकसान उठाते किसान

वर्ष 2003 में बस्तर में 11,925 हेक्टेयर भूमि सिंचित थी, जो 2019 में बढ़कर 32,000 हेक्टेयर हुई। वर्तमान में यह केवल 35,000 हेक्टेयर के आसपास ही रह गई है। सिंचाई सुविधा में कमी के कारण किसानों को रबी सीजन में खेती करने में कठिनाई होती है। कई जगहों पर नहरें खराब होने के कारण पानी नहीं मिल पाता।

विभाग के तहत बस्तर में 1 माध्यम, 7 व्यपवर्तन योजना, 7 उदवहन परियोजना, 31 लघु सिंचाई योजना और 40 एनीकट एवं स्टापडेम बनाए गए हैं। ये योजनाएँ खरीफ और रबी दोनों सीजन में सिंचाई सुविधा प्रदान करती हैं।


प्रस्तावित परियोजनाएँ और भविष्य

जल संसाधन विभाग के ईई वेद पांडे के अनुसार, बस्तर में व्यपवर्तन और बैराज सिंचाई योजनाओं पर कार्य जल्द शुरू होगा। इन योजनाओं के पूरा होने के बाद सिंचाई रकबे में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी और किसान मानसून पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहेंगे।

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