H-1B वीजा शुल्क को लेकर जारी विवाद के बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो की मुलाकात न्यूयॉर्क में हुई। यह बैठक संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर आयोजित हुई, ऐसे समय जब अमेरिका ने H-1B वीजा पर $100,000 अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है, जिससे भारतीय आईटी सेक्टर में हलचल मची हुई है।
रणनीतिक साझेदारी पर चर्चा
मार्को रुबियो ने बैठक को भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए निर्णायक बताया। उन्होंने कहा कि दोनों देश रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, दवाइयां और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे अहम क्षेत्रों में सहयोग और मजबूत करेंगे। इसके अलावा, इंडो-पैसिफिक रणनीति और क्वाड साझेदारी में भारत की भूमिका को भी उन्होंने अहम माना।
एस. जयशंकर ने भी बैठक को सकारात्मक और रचनात्मक बताया। अपने सोशल मीडिया अकाउंट (X, पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने लिखा,
“हमारी बातचीत में कई द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में प्रगति के लिए निरंतर जुड़ाव आवश्यक है। हम संपर्क में रहेंगे।”
H-1B वीजा शुल्क विवाद क्या है?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर $100,000 शुल्क लागू किया है, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। भारत H-1B वीजा का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। पिछले साल जारी वीजा में से 71% भारतीय नागरिकों को मिले, जबकि चीन को मात्र 12% से भी कम वीजा मिला।
IT सेक्टर और नौकरियों पर असर
विश्लेषकों के अनुसार, शुल्क में यह वृद्धि भारतीय आईटी कंपनियों की लागत बढ़ा सकती है और घाटे का कारण बन सकती है। इससे नौकरियों की स्थिति पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। ऐसे में जयशंकर और रुबियो की मुलाकात एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखी जा रही है।
ट्रंप टैरिफ के बाद कूटनीतिक कदम
जुलाई में ट्रंप प्रशासन ने भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया था। हालांकि सितंबर में दोनों पक्षों ने व्यापार समझौते पर फिर से बातचीत शुरू की। यह संकेत है कि दोनों देश रिश्तों को पटरी पर लाना चाहते हैं।
लगातार संवाद जारी
यह बैठक दिखाती है कि वीजा और व्यापार विवाद के बावजूद, भारत और अमेरिका अपने कूटनीतिक संबंध और सहयोग को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जुलाई में जयशंकर और रुबियो की पिछली मुलाकात क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान हुई थी।