छत्तीसगढ़ का सरगुजा इलाका, जो अपनी घनी हरियाली और प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है, अब लकड़ी माफियाओं के कब्जे में आता जा रहा है। अफसरों और नेताओं की मिलीभगत ने हालात ऐसे बना दिए हैं कि हजारों पेड़ कट चुके हैं और आने वाले वक्त में सरगुजा का हरा-भरा जंगल खतरे में पड़ सकता है।
केंद्रीय सरकार का “एक पेड़ मां के नाम” अभियान सिर्फ फोटो खिंचवाने और दिखावे तक सीमित रह गया है। हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर अफसर और कर्मचारी खुद माफियाओं की जेब में बैठे हैं।
थाने से गायब हुए जब्त ट्रक
ताजा मामला बतौली का है, जहां नायब तहसीलदार की कार्रवाई में बेलकोटा से दो ट्रक जब्त किए गए थे।
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पहला ट्रक (UP 51 AT 4464) लकड़ी से भरा हुआ था।
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दूसरा ट्रक (CG 04 QB 5194) खाली था।
दोनों को बतौली थाने में खड़ा किया गया, लेकिन देर रात रहस्यमयी तरीके से ये ट्रक थाने से ही गायब हो गए। अब सवाल उठता है कि थाने में खड़े वाहन आखिर बिना अधिकारियों की मदद के कैसे गायब हो सकते हैं?
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई छोटी चूक नहीं, बल्कि अधिकारियों और माफियाओं की मिलीभगत का सीधा सबूत है। थाना हो, राजस्व विभाग हो या वन विभाग—किसी ने भी इस मामले पर खुलकर कुछ नहीं कहा। चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव और कमीशनखोरी का खेल चल रहा है।
यूपी तस्करों का गढ़ बन चुका है बतौली
बतौली इलाका आज उत्तर प्रदेश के लकड़ी तस्करों का ठिकाना बन चुका है।
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यूपी से मजदूरों और ट्रैक्टर-हाइड्रा मशीनों के जरिए यहां नीलगिरी के पेड़ बड़ी संख्या में काटे जा रहे हैं।
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हर रोज लकड़ी से भरे ट्रक यूपी भेजे जाते हैं।
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सरगुजा बॉर्डर पर भी “सेटिंग” के जरिए यह तस्करी आसानी से पार हो जाती है।
बिना अफसरों की मदद के यह संभव ही नहीं है। यही वजह है कि तस्करों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि अब वे खुलेआम जंगलों को उजाड़ रहे हैं।
सियासी हाथ की आशंका
सूत्रों का दावा है कि इस धंधे के पीछे किसी बड़े राजनीतिक चेहरे का हाथ है। अधिकारी दबाव में हैं और इसलिए कोई भी इस तस्करी पर ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा।