पारंपरिक अंदाज में ज्योति- जंवारा विसर्जन: नाचते- गाते हुए धार्मिक अनुष्ठान करते दिखे पंडा

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मोहला – छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्र मोहला- मानपुर जिले में ज्योति- जंवारा का विसर्जन हुआ। नौ दिनों की उपासना के बाद बुधवार धार्मिक अनुष्ठान का सिलसिला जारी है। जिले के कई गांवों में पारंपरिक तरीके से गाजे- बाजे के साथ जंवारा विसर्जन किया गया। यहां के शीतला मंदिर समेत अन्य मंदिरों में नवरात्रि के पहले दिन से ज्योति कलश और जंवारा की स्थापना की गई थी।

छत्तीसगढ़ में चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि को पारंपरिक अंदाज में मनाया जाता है। दोनों ही नवरात्रि में यहां ‘जंवारा’ बोने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जंवारा को नवरात्रि के प्रथम दिवस माता के मंदिर या घर में ज्योति स्थापित कर ‘जंवारा’ बोया जाता है। इसे विशेष रूप से ‘शीतला मंदिरों’ में भी रखा जाता है। इस दौरान अखंड ज्योति कलश की भी स्थापना की जाती है।

क्या है जंवारा
जंवारा गेहूं या जौ का बीज होता है इसे नवरात्रि के प्रथम दिवस बांस की टोकरी (झेंझरी) और कलश में मिट्टी डालकर बोया जाता है। चार- पांच दिन के बाद बीज पौधे के रूप में विकसित हो जाते हैं, इसे ही ‘जंवारा’ कहा जाता है। जंवारा पर्व अच्छे फसल की कामना के लिए मनाया जाता है और जंवारा का स्वरूप उस वर्ष के मौसम व फसल की अच्छी- बुरी पैदावार का संकेत देता है।

देवी को प्रसन्न करने के लिए गाते हैं जस गीत
रन बन रन बन हो, तुम खेलव दुलरवा, रन बन रन बन हो…यह एक जस गीत है जिसे नौ दिनों तक भक्ति भाव से गाया जाता है। इसके माध्यम से लोग देवी की महिमा का बखान करते हुए उन्हें प्रसन्न करते हैं। नवरात्र पर्व के नवमी के दिन पूजा- अर्चना यज्ञ अनुष्ठान की जाती है। इसके बाद दशमी के दिन महिलाएं या पुरुष जंवारा को सिर में रखकर आकर्षक झांकी के साथ सामूहिक रूप से स्थानीय नदी और तालाबों में विसर्जित करते हैं। इस दौरान जंवारा विसर्जन गीत गाया जाता है।

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