जशपुरनगर। पूरे भारत में सनातन को मनाने वाले नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा बड़ी धूमधाम से करते हैं लेकिन झारखंड सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक अलग हैरान करने वाली परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यहां दुर्गा नहीं, बल्कि राक्षसराज महिषासुर का पूजा की जाती है। अपने को महिषासुर के वंशज बताने वाले असुर समुदाय के लोग महिषासुर को कोई असुर नहीं, बल्कि पूजनीय पूर्वज मानते हैं।
जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड में विशेष संरक्षित जनजाति समुदाय जो खुद को राक्षसराज महिषासुर का वंशज बताते हैं। यहां महिषासुर की अनोखी ढंग से पूजा पाठ होती है। समुदाय के लोग महिषासुर की पूजा करते हैं और इसे अपने पूर्वज के प्रति श्रद्धांजलि मानते हैं। इतना ही नहीं इस समुदाय को लोग इस परंपरा को बड़े गर्व के साथ निभाते हैं।
पहाड़ों पर करते हैं निवास
इस समुदाय के लोगों की जनजाति जशपुर के हाड़ीकोना, जरहापाठ, बुर्जुपाठ, और दौनापठा जैसे स्थानों पर निवास करती है। इस समुदाय के लोगों का मानना है कि महिषासुर का वध केवल एक छल था, जिसमें मां दुर्गा ने देवताओं के साथ मिलकर उनके पूर्वज की हत्या कर दी थी।
नवरात्रि में नहीं करते दुर्गा पूजा
इस जनजाति समुदाय के लोग नवरात्रि में दुर्गा पूजा उत्सव में शामिल नहीं होते हैं। उनके अनुसार देवी की पूजा से दूरी बनाए रखते हैं, बल्कि महिषासुर को अपना आराध्य देव मानकर उसकी पूजा करते हैं। उनके लिए महिषासुर राजा है और उसकी मृत्यु पर खुशी मनाना उनके लिए कदाचित संभव नहीं है।
बुनियादी सुविधाओं का है अभाव
इस समुदाय की जनजातियों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव का दंश आज भी झेलना पड़ रहा है। न ही पीने का शुद्ध पानी, न ही रहने के लिए घर, न बच्चों की पढ़ाई की सुविधा और न ही बीमारी में बेहतर स्वस्थ सुविधा उपलब्ध है।
दीपावली, होली में करते है भैंसासुर की पूजा
इस समुदाय के लोग दिवाली और होली के दिन भैंसासुर की भी पूजा करते हैं। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस जनजाति के लोग नवरात्रि के दौरान किसी भी प्रकार के रीति-रिवाज या परंपरा का पालन नहीं करते हैं। वे अपने पूर्वजों की स्मृति में गहरे शोक में डूबे रहते हैं, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण भावना है। इन लोगों को अपने पूर्वज महिषासुर को लेकर काफी गर्व है और वह उसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मानते हैं।