हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत को गहरा आघात पहुँचा है। पद्म विभूषण से सम्मानित दिग्गज गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार, 2 अक्टूबर की सुबह 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन की खबर सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, “पंडित छन्नूलाल जी का जाना संगीत और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है।”
संगीत की शुरुआत
3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में जन्मे छन्नूलाल मिश्र का बचपन धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल में बीता। उनके पिता पंडित बद्री प्रसाद मिश्र स्वयं गायक थे और वही उनके पहले गुरु बने। बचपन से ही भजन-कीर्तन और लोकगीतों के बीच पले-बढ़े मिश्र ने संगीत को ही जीवन का उद्देश्य बना लिया।
बनारस घराने से गहरा नाता
आगे चलकर उन्होंने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान से प्रशिक्षण लिया और फिर वाराणसी पहुंचे। बनारस की घाटों और मंदिरों में बहती संगीत की परंपरा ने उन्हें और गहराई से साधना का अवसर दिया। यहीं पर उनका परिचय पद्मभूषण ठाकुर जयदेव सिंह से हुआ, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें शिष्य के रूप में अपनाकर शास्त्रीय संगीत की बारीकियों की शिक्षा दी।
ठुमरी और भजनों के बेमिसाल गायक
पंडित छन्नूलाल मिश्र ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ख्याल गायन, पूरब अंग ठुमरी और भजनों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी आवाज़ की मधुरता और भावनाओं की गहराई ने उन्हें देश-विदेश में लोकप्रिय बनाया। उन्हें “ज्वेल ऑफ ठुमरी” की उपाधि भी मिली।
देश-विदेश में सम्मानित
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पद्म विभूषण
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सुर सिंगार संसद शिरोमणि अवॉर्ड
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नौशाद अवॉर्ड
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यश भारती सम्मान
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बिहार संगीत शिरोमणि अवॉर्ड
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लंदन म्यूजिक फेस्टिवल में विशेष सम्मान
AIR और दूरदर्शन से जुड़ा योगदान
वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के टॉप ग्रेड आर्टिस्ट रहे और संस्कृति मंत्रालय के कई कार्यक्रमों में उनकी सक्रिय भूमिका रही। वाराणसी के निवासी होने के कारण उनका प्रधानमंत्री मोदी से भी गहरा परिचय था।
परिवार भी संगीत साधना से जुड़ा
उनके दामाद पंडित अनोखे लाल मिश्र तबला वादक थे और उनके बेटे पंडित रामकुमार मिश्र तबला वादन की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जीवन भारतीय संगीत जगत के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनकी ठुमरी और भजनों की गूंज आने वाले समय में भी लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी।