चांदी की कीमतों ने पिछले 10 महीनों में लगभग दोगुनी छलांग लगाई। ₹1.78 लाख प्रति किलो का हाई छूने के बाद सिर्फ एक हफ्ते में यह ₹1.52 लाख पर आ गई – यानी करीब 30 हज़ार रुपए की गिरावट।
सवाल उठता है – क्या आज भी 1980 जैसा Silver Thursday Crash देखने को मिल सकता है?
हंट ब्रदर्स की साज़िश (Chapter 1 – 3)
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1970s में शुरुआत: अमेरिकी अरबपति भाइयों नेल्सन बंकर हंट और विलियम हर्बर्ट हंट ने सिल्वर खरीदना शुरू किया।
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2 डॉलर से 48 डॉलर तक: 1970 के शुरुआती सालों में 2 डॉलर/औंस का सिल्वर, 1980 तक 48–50 डॉलर/औंस पहुंच गया।
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पपेट मास्टर: भाइयों के पास दुनिया का लगभग 1/3 सिल्वर स्टॉक था। यानी वे कीमतों को अपने हिसाब से मैनिपुलेट कर रहे थे।
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बबल फूटना: COMEX (कमोडिटी एक्सचेंज) ने 1980 में मार्जिन ट्रेडिंग पर रोक लगाई। हंट ब्रदर्स उधार का पैसा नहीं चुका पाए और 27 मार्च 1980 को सिल्वर एक ही दिन में 50% गिर गया। इसे इतिहास में Silver Thursday कहा गया।
क्रैश का अंजाम (Chapter 4)
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हंट ब्रदर्स पर क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन हुआ।
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1986 में उनकी कंपनी दिवालिया हो गई।
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1988 में पर्सनल बैंकरप्सी घोषित करनी पड़ी।
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उन पर 130 मिलियन डॉलर हर्जाना और 10-10 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगा।
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हमेशा के लिए कमोडिटी ट्रेडिंग से बैन कर दिए गए।
क्या आज ऐसा संभव है? (Chapter 5)
इतिहास में सिल्वर की दो बड़ी गिरावटें दर्ज हैं –
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1980 – हंट ब्रदर्स क्रैश
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2011 – 31 साल बाद 50 डॉलर/औंस छूने के बाद 26 डॉलर तक गिरावट
लेकिन आज का परिदृश्य अलग है –
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अब रेगुलेशंस सख्त हैं, बड़े स्तर पर मैनिपुलेशन संभव नहीं।
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इंडस्ट्रियल डिमांड कई गुना बढ़ गई है – सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, AI टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स।
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भारत जैसे देशों में फेस्टिव और इन्वेस्टमेंट डिमांड भी लगातार बनी रहती है।
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सप्लाई साइड इश्यूज – कई माइनिंग देशों में प्रोडक्शन कम है।
अभी कीमतें क्यों बढ़ीं?
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फेस्टिवल सीजन: भारत में धनतेरस-दिवाली पर भारी खरीदारी।
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इंडस्ट्रियल बूम: EV और सोलर पैनल्स में सिल्वर का इस्तेमाल।
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सप्लाई बाधाएं: माइनिंग स्लो, डिमांड हाई।
निष्कर्ष
एनालिस्ट मानते हैं कि आज की तेजी स्पेकुलेटिव बबल नहीं, बल्कि फंडामेंटल डिमांड और इन्फ्लेशन हेजिंग की वजह से है।
इसलिए, चांदी में शॉर्ट-टर्म करेक्शन तो संभव है, लेकिन 1980 या 2011 जैसा शार्प क्रैश दोहराना अब मुश्किल है।