छत्तीसगढ़ में स्कूल परिसरों में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या को लेकर जारी सरकारी आदेश ने राज्यभर में बहस छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर जारी इस आदेश का विरोध कुछ शिक्षक संगठनों और राजनीतिक दलों ने यह कहते हुए किया कि इससे शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार बढ़ेगा। लेकिन विवाद बढ़ता देख शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव ने मीडिया के सामने आकर साफ कर दिया कि यह आदेश शिक्षकों पर बोझ बढ़ाने का नहीं बल्कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का है।
मंत्री यादव ने सबसे पहले बलौदा बाजार जिले के ग्राम लक्ष्मणपुर की उस भयावह घटना का जिक्र किया, जिसने सरकार को हिला दिया था। यहां 84 बच्चों को कुत्ते का जूठा भोजन परोस दिया गया था, और मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया। अदालत ने इसे अत्यंत गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को 22 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। मंत्री ने कहा कि ऐसी शर्मनाक घटना ने राज्य शासन को मजबूर किया कि स्कूल परिसरों में सुरक्षा के लिए कड़े और स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाएँ। बच्चों की सुरक्षा से बड़ी कोई प्राथमिकता नहीं हो सकती, और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
सरकार द्वारा जारी आदेश को लेकर उठे विवाद पर शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि शिक्षकों को न कुत्तों को पकड़ने का जिम्मा दिया गया है और न भगाने का। आदेश सिर्फ यह कहता है कि यदि स्कूल परिसर में आवारा कुत्ते दिखाई दें तो शिक्षक जिम्मेदार अधिकारियों—ग्राम पंचायत या नगर निगम के नोडल अधिकारी—को तुरंत सूचना दें और बच्चों को खतरे से दूर रखें। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में साफ कहा है कि बच्चों को कुत्तों के हमलों और दूषित भोजन जैसी दुर्घटनाओं से बचाना राज्य की जिम्मेदारी है, और यही आदेश का मकसद है।
विपक्ष और कुछ शिक्षक संगठनों द्वारा यह आरोप लगाया गया कि यह फैसला शिक्षकों के सम्मान के विपरीत है और उन्हें अतिरिक्त बोझ दिया जा रहा है। इस पर शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव ने सीधे शब्दों में कहा कि ऐसे बयान अनावश्यक भ्रम पैदा कर रहे हैं। स्कूल की सुरक्षा की जिम्मेदारी पहले से ही शिक्षकों और स्टाफ की होती है, सरकार ने केवल उस जिम्मेदारी को व्यवस्थित और स्पष्ट रूप दिया है। उन्होंने कहा कि बच्चों की रक्षा करना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है, और किसी भी घटना से पहले रोकथाम करना ही इस आदेश का वास्तविक उद्देश्य है।
इस तरह स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के सरकारी प्रयास के बीच, मंत्री की सफाई ने यह साफ कर दिया है कि यह आदेश किसी भी तरह से शिक्षकों के कार्यभार को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि बच्चों को असुरक्षित परिस्थितियों से बचाने का एक आवश्यक कदम है।