रुपया 89.79 पर, अब तक के सबसे निचले स्तर पर—डॉलर की मजबूती, विदेशी निकासी और महंगे इम्पोर्ट का असर

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रुपया आज एक बार फिर इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। सोमवार सुबह कारोबार के दौरान भारतीय मुद्रा सीधे 34 पैसे फिसलकर 89.79 प्रति डॉलर पर आ गई, जिसने दो हफ्ते पहले दर्ज हुए 89.66 के पिछले ऑल-टाइम लो को भी पीछे छोड़ दिया। जबकि शुक्रवार को ही रुपया 89.45 पर बंद हुआ था, लेकिन घरेलू मार्केट में गिरावट और लगातार विदेशी निवेशकों की निकासी ने माहौल इतना दबावभरा बना दिया कि सोमवार की ओपनिंग से ही भारतीय मुद्रा पटरी से फिसलती चली गई।

2025 की शुरुआत में डॉलर के मुकाबले जहां रुपया 85.70 पर खड़ा था, वहीं अब 89.79 का स्तर छूकर यह साफ कर देता है कि इस साल भारतीय मुद्रा करीब 4.77% कमजोर हो चुकी है। डॉलर के मुकाबले यह कमजोरी केवल चार्ट पर दर्ज होने वाली गिरावट नहीं, बल्कि सीधा असर आम लोगों की जेब और घरेलू बजट पर डालने वाला बदलाव है। हर बार रुपये की यह फिसलन भारत के लिए इम्पोर्ट को महंगा बना देती है। कच्चा तेल, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, गोल्ड—सब कुछ ज्यादा कीमत पर आता है। विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों और यात्री समुदाय के लिए भी यह परिस्थिति बोझ बन जाती है। उदाहरण के तौर पर 1 डॉलर पाने के लिए अब भारतीय छात्र 89.79 रुपये दे रहे हैं, यानी फीस से लेकर रहन-सहन का हर खर्च पहले के मुकाबले कई गुना भारी हो जाता है।

डॉलर की बढ़त वैश्विक स्तर पर भी दिखाई दी है। डॉलर इंडेक्स 99.50 पर पहुंच गया और ब्रेंट क्रूड भी लगभग 2% उछलकर 63.60 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड करता दिखा। इतनी मजबूती के बीच भारतीय इंपोर्टर्स की ओर से डॉलर की मांग भी बढ़ी, जिसने रुपये पर और प्रेशर डाल दिया। इस स्थिति को और मुश्किल बना रही है फ़ॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स (FPIs) की भारी निकासी। विदेशी निवेशक कंपनियों के महंगे वैल्यूएशन को देखते हुए लगातार स्टेक बेच रहे हैं। हालात ये हैं कि शुक्रवार को ही FIIs ने लगभग ₹3,800 करोड़ की बिक्री की, जिसने रुपये की कमर और झुका दी।

इसके ऊपर तेल और सोने की खरीद, सरकारी और कॉर्पोरेट रिपेमेंट्स तथा अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं में जारी तनाव ने भी स्थिति को कठिन बना दिया है। ट्रम्प प्रशासन की ओर से लगाए गए टैरिफ ने बातचीत में रुकावट पैदा की है। हालांकि कॉमर्स सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल का कहना है कि 2025 के अंत तक एक फ्रेमवर्क ट्रेड डील की उम्मीद है, जो भारतीय एक्सपोर्टर्स को राहत दे सकती है, लेकिन फिलहाल के लिए इन उम्मीदों की कोई प्रत्यक्ष रोशनी बाजार में नजर नहीं आ रही।

रुपये की गिरावट ने भारतीय बाजारों में भी हलचल बढ़ा दी। सेंसेक्स 64 अंक फिसलकर 85,641 पर बंद हुआ और निफ्टी 27 अंक टूटकर 26,175 के स्तर पर आ गया। विश्लेषकों का कहना है कि आउटफ्लो, महंगे वैल्यूएशन्स और ग्लोबल संकेतों का कॉम्बिनेशन बाजार पर दबाव बनाए हुए है और शॉर्ट टर्म में यह ट्रेंड बदले, यह कह पाना अभी मुश्किल है।

मुद्रा का मूल्य कैसे तय होता है, इसे समझना बहुत जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी करेंसी का डॉलर के मुकाबले गिरना यानी उसका मूल्य कम होना। भारतीय रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति, ग्लोबल ट्रेंड्स, और भारत के व्यापार संतुलन की हालत—ये तीनों चीजें मिलकर तय करती हैं कि रुपया मजबूत होगा या कमजोर। डॉलर की मांग बढ़े तो रुपये पर दबाव आता है। विदेशी मुद्रा भंडार घटे तो यह दबाव और बढ़ जाता है। यही कारण है कि गिरता रुपया सिर्फ विदेशी व्यापार का मामला नहीं, बल्कि हर भारतीय की जेब, आय, खर्च और भविष्य पर सीधे असर डालने वाली घटना है।

दुनिया भर में फैले अनिश्चित माहौल और आर्थिक दबाव के बीच रुपया अभी कमजोर है और निवेशकों की निगाहें इस बात पर होंगी कि आने वाले दिनों में विदेशी निवेश की धार कैसी रहती है, और क्रूड की कीमतें किस दिशा में जाती हैं। फिलहाल के लिए तस्वीर यह कहती है—डॉलर मजबूत है और रुपये पर दबाव जारी।

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