भारतीय अर्थव्यवस्था की गति को लेकर आरबीआई का नवीनतम अनुमान एक मजबूत और सकारात्मक संकेत देता है। नीतिगत ब्याज दर में 0.25% की कटौती के साथ केंद्रीय बैंक ने FY26 के लिए GDP ग्रोथ अनुमान को 6.8% से बढ़ाकर 7.3% कर दिया है। यह संशोधन सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि इस बात का भरोसा है कि देश की आर्थिक नींव इस समय काफी मजबूत हो चुकी है और आने वाले महीनों में विकास की गति और भी तेज हो सकती है।
हालांकि, महंगाई को लेकर थोड़ी चिंता बनी हुई है। Q3 और Q4 FY26 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान क्रमशः बढ़ाकर 7% और 6.5% कर दिया गया है। इसके बावजूद FY27 की शुरुआत के लिए भी RBI का स्वर आशावादी है—Q1 में 6.7% और Q2 में 6.8% की वृद्धि का अनुमान इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था अपनी मजबूती बनाए रखेगी।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा का कहना है कि भारत इस समय ‘गोल्डीलॉक्स’ स्थिति में है—न विकास धीमा है, न महंगाई बेकाबू। विनिर्माण क्षेत्र की लगातार बेहतर होती गतिविधियां, कृषि उत्पादन का मजबूत प्रदर्शन और खरीफ-रबी फसलों का अनुकूल अनुमान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दे रहे हैं। बांधों में अच्छा जलस्तर और बेहतर बुवाई का प्रभाव आने वाले महीनों में ग्रामीण मांग को भी मजबूत करेगा।
वैश्विक स्तर पर अभी भी अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार संबंधी चुनौतियां और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लक्ष्य से अधिक बनी हुई महंगाई दुनिया की आर्थिक स्थिति को डगमगाए हुए है। मजबूत डॉलर और सीमित ट्रेजरी यील्ड्स भी आर्थिक अस्थिरता का संकेत देती हैं। लेकिन इसके बावजूद भारत की घरेलू परिस्थितियां स्थिर दिखाई देती हैं—कंपनियों की बेहतर बैलेंस शीट, स्थिर महंगाई और उद्योगों का विस्तार विकास को आगे बढ़ा रहा है।
Q2 FY26 में 8.2% की ग्रोथ दर इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की असल ताकत को दर्शाती है। यह न सिर्फ RBI के अनुमान से अधिक रही, बल्कि अधिकांश अर्थशास्त्रियों के पूर्वानुमानों को पीछे छोड़ गई। विनिर्माण, सेवाएं, वित्त, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सर्विसेज जैसे क्षेत्रों ने उम्मीद से अधिक मजबूत प्रदर्शन किया। हालांकि नाममात्र GDP 8.7% रहा, जो थोड़ा नरम है, लेकिन वास्तविक वृद्धि की मजबूती इसके प्रभाव को काफी हद तक संतुलित कर देती है।
कुल तस्वीर देखें तो आरबीआई का नया अनुमान उस बदलते भारत की ओर इशारा करता है जिसकी विकास गति स्थिर ही नहीं, बल्कि बहुत तेजी से मजबूत हो रही है। आंकड़ों में यह बदलाव आने वाले समय में आर्थिक आत्मविश्वास को और गहरा कर सकता है—और शायद यही कारण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी मजबूती से खड़ी दिखाई दे रही है।