भारत ने कनाडा के साथ चल रही दुश्मनी को भुलाकर संयुक्त राष्ट्र में उसके एक प्रस्ताव का समर्थन किया है। दरअसल, हमास के इजरायल पर हमले की निंदा के लिए कनाडा की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव आया था। इस प्रस्ताव को भारत ने अपना समर्थन दे दिया।
वॉशिंगटन: खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। खालिस्तान के हमदर्द कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारतीय एजेंटों पर निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाने के बाद भारत ने भी सख्त ऐक्शन लेते हुए कनाडा के 41 राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। दोनों देशों के बीच चल रही इस तनातनी के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कनाडा के एक प्रस्ताव का खुलकर समर्थन कर दिया है। जी हां, यह प्रस्ताव हमास को लेकर कनाडा की ओर से आया था। कनाडा ने प्रस्ताव रखा था कि हमास के इजरायल पर आतंकी हमले की निंदा की जाए। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इसके समर्थन में वोट किया। माना जा रहा है कि दोस्त इजरायल की मदद के लिए भारत ने यह कदम उठाया। हालांकि भारत ने फलस्तीन देश बनाने का भी खुलकर समर्थन करके संतुलन को कायम रखा।
इससे पहले जॉर्डन ने इजरायल और फलस्तीन पर प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव पर कनाडा ने संसोधन प्रस्ताव रखा और कहा कि हमास के इजरायल पर हमले की निंदा की जाए। भारत ने इस संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो तिहाई वोट हासिल नहीं होने की वजह से कनाडा का यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। कनाडा के इस प्रस्ताव पर 88 देशों ने समर्थन किया लेकिन 55 देशों ने विरोध किया। वहीं 23 देश ऐसे भी थे जो तटस्थ रहे। कनाडा के इस प्रस्ताव का पाकिस्तान, कतर समेत कई मुस्लिम देशों ने विरोध किया। कनाडा को भारत के अलावा फ्रांस, जापान, अमेरिका समेत कई देशों का समर्थन मिला।
भारत ने नहीं किया बिना हमास की निंदा के प्रस्ताव का समर्थन
इससे पहले भारत ने पहली बार फिलिस्तीन मुद्दे का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है। शुक्रवार को प्रस्ताव पर भारत ने इसलिए विरोध किया, क्योंकि इसमें हमास के आतंकवादी हमले की निंदा नहीं की गई थी। महासभा ने नई दिल्ली द्वारा समर्थित एक संशोधन को खारिज कर दिया, जिसमें आतंकवादी समूह का नाम दिया गया था। भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने मतदान के बाद कहा, ”इजरायल में 7 अक्टूबर को हुए आतंकी हमले चौंकाने वाले थे और निंदनीय हैं।” उन्होंने कहा, ‘दुनिया को आतंकी कृत्यों के औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए। आइए हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवादियों के प्रति शून्य सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाएं।’
इजरायल-हमास युद्ध में संघर्ष विराम और गाजा के लोगों को सहायता प्रदान करने का आह्वान करने वाला प्रस्ताव 120 वोटों से पारित हुआ, जबकि इसके खिलाफ 14 वोट पड़े और 45 देश अनुपस्थित रहे। इससे इसे उपस्थित और मतदान करने वालों का दो-तिहाई बहुमत मिला। भारत ने कनाडा द्वारा लाए गए प्रस्ताव में संशोधन का समर्थन किया, जिसमें हमास का नाम था और उसके हमले की निंदा की गई थी, लेकिन यह पारित होने में विफल रहा। इसके पक्ष में 88 वोट पड़े, जबकि इसके खिलाफ 54 वोट पड़े, 23 अनुपस्थित रहे। पटेल ने कहा, ‘आतंकवाद एक घातक बीमारी है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती।’ उन्होंने कहा, ‘हमास के हमले इतने बड़े पैमाने और तीव्रता के थे कि यह बुनियादी मानवीय मूल्यों का अपमान है।’
गाजा के लोगों के पक्ष में भारत ने बुलंद की आवाज
पटेल ने कहा, ‘राजनीतिक उद्देश्यपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा, अंधाधुंध क्षति पहुंचाती है, और किसी भी टिकाऊ समाधान का मार्ग प्रशस्त नहीं करती है।’ उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि इस सभा के विचार-विमर्श से आतंक और हिंसा के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश जाएगा और हमारे सामने मौजूद मानवीय संकट का समाधान करते हुए कूटनीति और बातचीत की संभावनाओं का विस्तार होगा।’ महासभा की कार्रवाई सुरक्षा परिषद द्वारा गाजा पर चार प्रस्तावों को पारित करने में विफल रहने के बाद हुई, इनमें से एक पर रूस और अमेरिका ने वीटो किया था, और दो को पारित होने के लिए न्यूनतम नौ वोट नहीं मिले थे। असेंबली का प्रस्ताव केवल प्रतीकात्मक है, क्योंकि सुरक्षा परिषद के विपरीत उसके पास इसे लागू करने की शक्ति नहीं है।’
भारतीय प्रतिनिधि पटेल ने गाजा में संघर्ष से नागरिकों पर पड़ने वाले नुकसान के बारे में भी बात की और कहा, ‘इस मानवीय संकट के समाधान की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और नागरिकों के मारे जाने को लेकर बेहद चिंतित है।’ उन्होंने कहा, ‘गाजा में चल रहे संघर्ष में हताहतों की संख्या एक गंभीर और चिंता का विषय है; नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।’ उन्होंने दो-राष्ट्र समाधान के लिए भारत के समर्थन को भी दोहराया, इसमें इज़राइल और फिलिस्तीन स्वतंत्र, संप्रभु राज्यों के रूप में एक साथ रहेंगे। जो प्रस्ताव पारित हुआ वह अरब समूह की ओर से जॉर्डन द्वारा प्रस्तावित किया गया था और पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन सह-प्रायोजकों में से थे।
संशोधन प्रस्ताव पर क्या बोला पाकिस्तान ?
पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने मतदान से पहले संशोधन के खिलाफ कहा कि इसमें ‘समता और संतुलन और निष्पक्षता’ का अभाव है। उन्होंने कहा, अगर हमास का नाम लिया जाना चाहिए, तो इज़रायल का भी होना चाहिए, उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद द्वारा सह-प्रायोजित प्रस्ताव में दोनों में से किसी का भी नाम न लेना उचित है। संशोधन के लिए मतदान करने वाले कई देशों ने संशोधन के बिना भी प्रस्ताव के लिए मतदान करना शुरू कर दिया या अनुपस्थित रहे, जिससे यह पारित हो सका। ब्रिटेन और फ्रांस उन पश्चिमी देशों में से थे, जिन्होंने प्रस्ताव के लिए मतदान किया। फ्रांस के स्थायी प्रतिनिधि निकोलस डी रिवियेर ने बदलाव की व्याख्या करते हुए कहा कि वह गाजा के नागरिकों के लिए सहायता चाहते हैं।