CJI चंद्रचूड़ आदेश देख हुए मुरीद; हाई कोर्ट जज ने मंत्री की फिर खोली फाइल….!

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 मंत्री पोनमुदि और उनकी पत्नी के खिलाफ केस साल 1996 और 2001 के बीच का है। उस दौरान पोनमुदि डीएमके सरकार में परिवहन मंत्री थे। उनपर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे थे। तमिलनाडु सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुदि और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के पुराने मामले को दोबारा उठाने पर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के जज की जमकर तारीफ की है। साथ ही कहा कि शुक्र है कि आपके जैसे जज भी हैं। शीर्ष न्यायालय ने जज की तरफ से दाखिल कारणों को सही माना और मंत्री की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है।

क्या है ताजा मामला?
दरअसल, उच्च न्यायालय के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की ओर से एक आदेश जारी किया गया था, जिसमें मंत्री पोनमुदि और उनकी पत्नी के मामले को ट्रायल कोर्ट में ट्रांसफर करने और बाद में उनके बरी होने के मुद्दे को उठाया गया था। अब मंत्री ने याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनकी ओर से कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी पेश हुए।

जस्टिस वेंकटेश की ओर से कारण भी बताए गए कि उन्होंने मंत्री और उनकी पत्नी के खिलाफ आपराधिक पुनरीक्षण का मामला क्यों शुरू कराया है। खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी जस्टिस की ओर से बताए गए कारणों को सही माना है। बेंच ने कहा, ‘हमें ऐसा लगता है कि जज एकदम सही हैं। यह एक सही आदेश है…। भगवान का शुक्र है कि हमारे पास ऐसे जज हैं।’
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘शुक्र है कि हमारे पास सिस्टम में जस्टिस आनंद वेंकटेश जैसे जज हैं। देखिए तो कि चीफ जस्टिस (हाईकोर्ट के) ने क्या किया। उन्होंने ट्रायल को एक जिले से दूसरे जिले में ट्रांसफर किया? मुख्य न्यायाधीश के पास यह ताकत आई कहां से? और अंत में ट्रायल की वजह से वे बरी हो गए।’

सीजेआई के अलावा बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल रहे। बेंच ने मंत्री की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।

मंत्री के खिलाफ क्या था केस..
मंत्री और उनकी पत्नी के खिलाफ केस साल 1996 और 2001 के बीच का है। उस दौरान पोनमुदि डीएमके सरकार में परिवहन मंत्री थे। उनपर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे थे और साल 2002 में डायरेक्टोरेट ऑफ विजिलेंस एंड एंटी करप्शन यानी DVAC की तरफ से केस दर्ज किया गया था।

खास बात है कि शुरुआत में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट से पोनमुदि को राहत मिल गई थी, लेकिन साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने डिस्चार्ज ऑर्डर को रद्द कर दिया था। इसके बाद साल 2015 में पोनमुदि और अन्य के खिलाफ फिर आरोप तय किए गए। अब बीते साल चीफ जस्टिस मुणीश्वर नाथ भंडारी की तरफ से मंजूरी मिलने के बाद मंत्री के खिलाफ जारी ट्रायल को विल्लुपुरम से वेल्लूर लाया गया। यहां 28 जून को मंत्री और पत्नी को बरी कर दिया गया था।

जस्टिस वेंकटेश ने ट्रांसफर पर भी उठाए सवाल..
जस्टिस वेंकटेश ने 10 अगस्त को ही आदेश जारी किए और इस आपराधिक मामले को दोबारा खोला। उनका कहना था कि मामले को ट्रांसफर करना आपराधिक न्याय व्यवस्था में हेरफेर करने की एक कोशिश थी।

खास बात है कि जज सुओ मोटो शक्ति का इस्तेमाल कर तमिलनाडु के कई अन्य मंत्रियों के खिलाफ भी ऐसे मामले दोबारा खोले, जहां उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया गया था। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम के खिलाफ भी आय से अधिक संपत्ति का मामला देबारा खोल दिया था।

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