भारत और रूस के बीच समुद्री व्यापार का नया रास्ता मंंजूरी के अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। भारत के चेन्नै बंदरगाह से समुद्री मालवाहक जहाज माल लेकर रूस के व्लादिवोस्तोक पहुंचा है। इसे यह सफर तय करने में मात्र 17 दिन का समय लगा। भारत की इस सफलता से चीन को झटका लगा है।
मास्को: यूक्रेन युद्ध के बीच भारत और रूस की दोस्ती अब और मजबूत होने जा रही है। भारत और रूस के बीच व्यापार का नया रास्ता बनकर तैयार हो गया है। अक्टूबर महीने में भारत के चेन्नै बंदरगाह से रूस के व्लादिवोस्तोक पोर्ट के बीच पहली बार जहाजों का ट्रायल हुआ है और यह सफल रहा है। यह समुद्री रास्ता सोवियत संघ के समय प्रचलन में था लेकिन बाद में यह बंद हो गया। इस ट्रायल के दौरान चेन्नै से व्लादिवोस्तोक तक पहुंचने में मात्र 17 दिन का समय लगा। विश्लेषकों का कहना है कि इस ईस्टर्न मेरीटाइम कॉरिडोर से आने वाले समय में व्यापार का पूरा रास्ता ही बदल सकता है।
भारत में रूस के काउंसल जनरल ओलेग एन अवदीव के मुताबिक एक जहाज का चेन्नै से व्लादिवोस्तोक के बीच ट्रायल किया गया था। दोनों देश सोवियत संघ के समय प्रचलन में मौजूद रास्ते को फिर से शुरू करना चाहते हैं। ओलेग ने कहा कि इस जहाज को रूस तक सफर करने में मात्र 17 दिन का समय लगा। अब तक भारत को रूस का रास्ता तय करने में 35 से 40 दिन का समय लगता था। भारत के बंदरगाहों से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के बीच व्यापार होता है। इस दौरान जहाज स्वेज नहर से होकर जाते हैं जिसमें 35 से 40 दिन का समय लगता है।
भारत की क्यों होगी बल्ले-बल्ले ?
इससे पहले भारत के जहाजरानी मंत्री सर्वानंद सोनेवाल ने कहा था कि भारत और रूस के बीच जल्द ही ईस्टर्न मेरीटाइम कॉरिडोर के जरिए जहाजों का आवागमन शुरू होगा। अधिकारियों का इससे पहले अनुमान था कि चेन्नै से व्लादिवोस्तोक के बीच व्यापार होने में मात्र 16 दिन का समय लगेगा। हालांकि ट्रायल के दौरान इसमें 17 दिन लगे। अब तक रूस के इस सुदूरपूर्व इलाके में भारत को अपना सामान भेजने में 40 दिन का समय लगता था। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक इस रास्ते कोयला, कच्चा तेल, एलएनजी और फर्टिलाइजर का व्यापार करेगा।
चेन्नै से व्लादिवोस्तोक के बीच यह दूरी 5600 नॉटिकल मील है और इसे सामान्य कंटेनर शिप मात्र 10 से 12 दिन में पूरा कर सकता है। रूसी अधिकारियों का कहना है कि वह चाहते हैं कि भारत उनके सुदूरपूर्व इलाके में अपना निवेश बढ़ाए। दरअसल, इस इलाके में अब चीन की गतिविधि बहुत तेजी से बढ़ रही है। चीनी मूल के लोग व्लादिवोस्तोक के सटे हुए इलाके में बढ़ रहे हैं। चीन के कई विश्लेषक इस पूरे इलाके को चीन का मानते हैं जिसे उसने एक संधि के बाद सोवियत संघ को दे दिया था।
चीन के खतरे से जूझ रहा रूस
विस्तारवादी चीन के इसी खतरे को भांपते हुए रूस चाहता है कि दोस्त भारत व्लादिवोस्तोक के आसपास अपना सैटलाइट शहर बसाए और इस पिछड़े इलाके का विकास करे। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी है लेकिन इसके बाद भी मास्को के साथ भारत का व्यापार लगातार बहुत तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। भारत का इस इलाके में प्रभाव बढ़ना जहां उसके लिए लाभदायक होगा, वहीं चीन के लिए झटका होगा जो रूस के साथ बिना किसी सीमा के साथ दोस्ती का दावा करता है।