चीन के साथ दोस्ती में पाकिस्तान को कारोबारी घाटा ही हो रहा है। इसे अब बंद होना चाहिए और हमें भावनाओं के आधार पर नहीं बल्कि प्रैक्टिकल सोचना चाहिए। पाक मीडिया ने चीन पर भड़ास निकाली है।
क्या दोस्ती के नाम पर कर्ज में डुबाने की चीन की रणनीति को पाकिस्तान ने समझ लिया है? पाकिस्तान की मीडिया का रुख तो ऐसा ही संकेत कर रहा है। पाकिस्तान के बड़े अखबार डॉन ने चीन के साथ देश के कारोबार पर ही सवाल उठाया है और कहा कि यह दोस्ती तो सिर्फ हमारे घाटे की ही रही है। इकॉनमी की समझ रखने वाले पत्रकार खुर्रम हुसैन ने अपने एक लेख में चीन के साथ पाकिस्तान के कारोबार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं और इसे ही पाक की बदहाली की वजह माना है। वह लिखते हैं कि चीन के लिए पाकिस्तान कुछ अलग नहीं है। वह जो अन्य देशों से चाहता है, वही वह पाकिस्तान से भी ले रहा है। वह चीज है, कारोबार में मुनाफा।
वह लिखते हैं, ‘चीन के साथ 2010 से हमारा कारोबारी असंतुलन 90 अरब डॉलर है। इसका मतलब है कि माल और सर्विसेज के बदले में पाकिस्तान से 90 अरब डॉलर की भारी पूंजी चीन चली गई। इसके बाद हमने बड़ी रकम खाड़ी देशों से तेल खरीदने में खो दी।’ खुर्रम हुसैन कहते हैं कि चीन से बेहतर तो हमारे लिए अमेरिका, यूरोप जैसे देशों से कारोबार करना है। वह लिखते हैं, ‘अमेरिका के साथ हमारा कारोबार 34 बिलियन डॉलर के सरप्लस में है। ब्रिटेन से कारोबार 12 अरब डॉलर के सरप्लस में है। इसका अर्थ हुआ कि हम अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से जो कमा रहे हैं, उसे चीन से कारोबार में खर्च कर देते हैं।’
दिलचस्प बात है कि यह वही चीन है, जिसे पाकिस्तान अपना सदाबहार दोस्त बताता है। बता दें कि कारोबारी घाटे के अलावा चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर और ग्वादर पोर्ट जैसी परियोजनाओं के लिए भी चीन ने पाकिस्तान को बड़ा लोन देकर दबा लिया है। इस कॉरिडोर से भले ही चीन को अफगानिस्तान और फिर आगे मध्य एशिया तक पहुंचने का रास्ता मिल गया है, लेकिन पाकिस्तान को इससे कोई आर्थिक लाभ नहीं दिख रहा। खुर्रम लिखते हैं कि पाकिस्तान के अलावा भी चीन कई देशों से ट्रेड सरप्लस में है, लेकिन अब वे इसे समझ रहे हैं और कदम उठा रहे हैं।
वह लिखते हैं कि भारत से भी चीन ट्रेड सरप्लस में है। लेकिन भारत अपनी व्यापारिक नीति को अब तब्दील कर रहा है। वह कहते हैं कि यही हमारे और दूसरे देशों के बीच अंतर है। खुर्रम कहते हैं कि हमें चीन से भावनाओं के आधार पर रिश्ते नहीं रखने चाहिए बल्कि तथ्यों और जरूरत के हिसाब से बात करनी होगी। वह कहते हैं कि पाकिस्तान तो सतर्क होने की बजाय चीन और कर्ज लेता जा रहा है, जिससे संकट गहरा हो रहा है। वह तो यह भी सुझाव देते हैं कि चीन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पर भी पाक को दोबारा विचार करना चाहिए। इससे चीन को ही फायदा मिल रहा है, जबकि हमारी रकम तो चली ही जा रही है।