छत्तीसगढ़ के जंगलों में दो दिन में 734 अग्नि हादसे:वन विभाग ने नशेड़ी और असामाजिक तत्वों को बताया जिम्मेदार; जन जागरूकता अभियान चलाएंगे….!!

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मई महीने की भीषण गर्मी में छत्तीसगढ़ के जंगल भी धधक रहे हैं। प्रदेश के जंगलों में बीते दो दिन में आग लगने की 734 घटनाएं हुई हैं। पिछले पांच महीने में यहां के जंगलों में 14 हजार से ज्यादा जगहों पर आग लगी है। वन विभाग के अधिकारी आग लगने की वजह नशेड़ी और असामाजिक तत्वों को बता रहे हैं।

​​​​​अधिकारियों का कहना है कि जंगलों में आग की बड़ी वजह यही है। इसके अलावा जंगल घूमने पहुंच रहे पर्यटकों की जलती सिगरेट से भी आग लग रही है। विभाग के अधिकारी इसे लेकर जन जागरूकता अभियान चलाने की बात कह रहे हैं। इससे समाज प्रमुखों को भी जोड़ा जाएगा। वे अपने समाज के लोगों से जंगलों में आग न लगाने की अपील करेगे।

कंट्रोल रूम से मॉनिटरिंग कर रहे वन विभाग के अधिकारी

वन विभाग के अधिकारी जंगलों में लगने वाली आग की मॉनिटरिंग सैटेलाइट, फायर वॉचर, बीट प्रभारी और समिति की मदद से कर रहे है। आग लगने की सूचना मिलने पर कंट्रोल रूम की ओर से फौरन ़संबंधित बीट प्रभारियों को सूचना दी जाती है और आग बुझाने का कोशिश की जाती है।

अधिकारियों के अनुसार कोई भी व्यक्ति कंट्रोल रूम के टोल फ्री नम्बर- 18002337000 पर आग लगने की सूचना दे सकता है।

वनकर्मियों के अलर्ट मोड पर रखा गया है

PCCF वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल ने मीडिया से कहा सभी अधिकारियों को जंगलों की अग्नि सुरक्षा के लिए जरूरी निर्देश दिए गए हैं, उन्हें अलर्ट मोड पर रखा गया है। कहा गया है कि वे कर्मचारियों, वन सुरक्षा समितियों, वन सुरक्षा श्रमिक और अग्नि प्रहरियों के साथ अग्नि हादसों को लेकर सजग रहें और लगातार सक्रिय रहें।

वन क्षेत्रों में जहां कहीं भी धुआं दिखे, वहां पहुंच कर फौरन आग बुझाई जाए। वन प्रबंधन समितियों को सक्रिय जवाबदारी दी जाए। अग्रवाल के अनुसार इस बार आगजनी की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कम हो रही है।

सबसे ज्यादा बस्तर के इन जिलों के जंगलों में लगी आग

वन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा आग बीजापुर के जंगलों में लगी आग। जनवरी से अब तक बीजापुर के जंगलों में 2228 स्थानों पर आग लगी है। वहीं, सुकमा के जंगलों में 1673 तो बस्तर के जंगलों में 564 स्थानों पर आग लगी है। नारायणपुर के जंगलों में 511 स्थानों पर आग लगने की खबर सामने आई।

महुआ-तेंदूपत्ता के कारण आगजनी

जंगलो में आग लगने की एक बड़ी वजह महुआ और तेंदूपत्ता संग्रहण है। वन क्षेत्र से सटे गांवों के ग्रामीण जंगल में महुआ बीनने जाते हैं। पेड़ से गिरे महुआ फूल के पत्तों से ढके होने की वजह से वे सूखे पत्तों में आग लगा देते हैं। इसी तरह से कई बार तेंदूपत्ता बीनने वाले लोग जंगल में जलती बीड़ी फेंक देते हैं, जिसके चलते सूखे पत्ते तेजी से जलते हुए जंगल में फैल जाते हैं।

शिकारी- तस्कर भी लगाते है आग

वन अफसरों को आशंका है कि जंगल में वन्यजीवों के शिकार करने वाले शिकारी और पेड़ों की कटाई करने वाले तस्कर भी जंगल में आग लगाने का काम करते हैं। जिस क्षेत्र में बहुतायत में वन्य जीवों के होने की जानकारी मिलती है, उस क्षेत्र में शिकारी आग लगा देते हैं। आग लगने की वजह से वन्यजीव सुरक्षित जगह की तलाश में जंगल से भागते हैं, इसका फायदा उठाकर शिकारी वन्यजीवों का शिकार करते हैं। इसी तरह जिन इलाको में तस्करों द्वारा पेड़ काटा जाता है, वहां साक्ष्य मिटाने की दृष्टि से आग लगा देते है।

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