टाटा मोटर्स ने सेफ्टी पर फोकस किया, मुनाफा 1000% बढ़ा : चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर बोले- कोशिश है एक्सीडेंट न हो; अगर हो तो कम चोट पहुंचे…!!

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बात 2010 के दशक की है। इंडिका, सफारी और सूमो जैसे सक्सेसफुल मॉडल बनाने वाली कंपनी टाटा मोटर्स के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा था। सेल्स घट रही थी, लॉस बढ़ रहा था, प्रोडक्ट डेवलपमेंट की रफ्तार धीमी थी। आफ्टर सेल्स सर्विस और खराब क्वालिटी से ग्राहक परेशान थे।

बोल्ट और जेस्ट जैसे मॉडल नए जमाने के कस्टमर्स को लुभाने में फेल रहे थे। इसने टाटा को वापस ड्रॉइंग बोर्ड पर जाने और अपने स्ट्रगलिंग बिजनेस को रिवाइव करने के लिए मजबूर कर दिया। फिर आया 2016 का साल टाटा अपनी नई हैचबैक कार टियागो लॉन्च करने वाली थी।

लॉन्चिंग से ठीक पहले कंपनी ने गुएंटर बचेक को CEO और MD के तौर पर हायर किया। बस यहीं से टाटा मोटर्स का कमबैक शुरू हुआ। कंपनी ने डिजाइन, कंफर्ट, क्वालिटी, सर्विस सब पर काम किया। टियागो के बाद कंपनी ने टिगोर और नेक्सॉन जैसे मॉडल लॉन्च किए जो लोगों को काफी पसंद आए।

कंपनी ने नेक्सॉन ईवी के साथ अपने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स भी लॉन्च किए। 2016 में कंपनी का मार्केट शेयर 13.1% था जो अब बढ़कर 39.1% पर पहुंच गया है। यानी मार्केट शेयर में 26% की बढ़ोतरी हुई है। इन मॉडल्स की बदौलत टाटा मोटर्स का प्रॉफिट भी अब लगातार बढ़ रहा है।

हाल ही टाटा मोटर्स ने अपने FY24 के नतीजे भी जारी किए हैं। टाटा मोटर्स का वित्त वर्ष 2024 में मुनाफा 1000% से ज्यादा बढ़कर 31,807 करोड़ रुपए हो गया है। वित्त वर्ष 2023 में मुनाफा 2,689 करोड़ रुपए रहा था। वहीं टाटा मोटर्स का भारतीय कारोबार अब कर्ज मुक्त हो गया है।

1. वो कौन से 5 पैरामीटर हैं, जिनके आधार पर टाटा अपने मॉडल डेवलप करता है, रैंकिंग भी दें?

  1. सेफ्टी
  2. डिजाइन
  3. टेक्नोलॉजी
  4. परफॉरमेंस
  5. यूजेबिलिटी

टाटा अपनी सभी गाड़ियों को इन पांच पैरामीटर्स पर तैयार करती है। लेकिन, मॉडल के अनुसार इनकी रैंकिंग अलग-अलग है, जैसे – टाटा हैरियर-सफारी में टेक्नोलॉजी सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। वहीं, टियागो में स्पेस और यूटीलाइजेशन को ज्यादा भार देना चाहिए।

2. टाटा की कारें NCAP क्रैश टेस्ट में बेहतरीन परफॉर्म करती हैं। इसकी क्या वजह है?

जब हम गाड़ी बनाना भी नहीं जानते थे, तब से टाटा के पास क्रैश टेस्ट लैब है। हमने 1997 में पहले क्रैश टेस्ट लैब बनाई, फिर अपनी पहली कार इंडिका बनाई। उस वक्त से आज तक हमारी हर गाड़ी सेफ्टी के पहलुओं को सबसे ज्यादा महत्व देते हुए बनाई जाती हैं। हमें इतने वर्षों की प्रेक्टिस है, इसलिए हमारे सभी इंजीनियर्स सेफ कार बनाने में एक्सपर्ट हो गए हैं। इस वजह से हमें सेफ गाड़ी बनाने में दिक्कत नहीं होती।

हर गाड़ी को बनाने में तीन से पांच साल लगते हैं। गाड़ी जब ड्राइंग बोर्ड पर होती है, तब से लेकर आखिर तक सेफ्टी का हर पहलु हमारे हर इंजीनियर्स के हाथ से होकर गुजरता है। जब CAE जैसी कंप्यूटर प्रणाली को अपनाया जाता है, तब भी कंप्यूटर पर ही क्रैश टेस्ट के परफॉर्मेंस की जांच होती है। जब तक कंपनी के स्टैंडर्ड के ऊपर वो ठीक न हो पाए तब तक फिजिकल मॉडल नहीं बनता है।

जब फिजिकल मॉडल बनता है तो उसका भी क्रैश टेस्ट किया जाता है और इंजीनियर्स हर बार ये ढूंढ कर निकालते हैं कि और अच्छा क्या हो सकता है। इस तरह से गाड़ी को सेफ्टी के पैमाने पर अच्छा बनाया जाता है। इसके बाद GNCAP (ग्लोबल क्रैश टेस्ट एजेंसी) और BNCAP (भारतीय क्रैश टेस्ट एजेंसी) को क्रैश टेस्ट के लिए मॉडल भेजा जाता है। क्रैश टेस्ट में रेटिंग मिलने के बाद कार को मार्केट में लॉन्च किया जाता है।

1997 से अब तक सेफ्टी के फील्ड में काफी ज्यादा प्रगति हो गई है। शुरुआत में हम फ्रंटल क्रैश टेस्ट करते थे और देखते थे कि सामने से गाड़ी के टकराने पर क्या होता है। लेकिन, अब इसमें काफी चीजों की बढ़ोतरी हो गई है।

3. टाटा कितनी तरह के क्रैश टेस्ट करता है?

कार में बड़ा व्यक्ति बैठा हो या छोटा बच्चा दोनों के लिए सेफ्टी का प्रावधान किया जाता है…

  • ऑफसेट फ्रंटल क्रैश टेस्ट : रियल कंडीशन में अचानक गाड़ी के सामने आने पर ड्राइवर अपना बचाव करता है। ऐसे में ज्यादातर एक्सीडेंट के समय कार पूरी तरह से एक-दूसरे के सामने आती नहीं है और गाड़ी का करीब 40% हिस्सा ही कॉन्टेक्ट में आ पाता है। ऐसी कंडीशन के लिए अब ऑफसेट फ्रंटल क्रैश टेस्ट किया जाता है।
  • स्पीड टेस्ट : सिटी में आज भी गाड़ियों की एवरेज स्पीड 30kmph के नीचे है, लेकिन जैसे-जैसे हाइवे बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे गाड़ियों की स्पीड भी बढ़ती जा रही है और उसी तरह जिस स्पीड पर क्रैश टेस्ट होना चाहिए। उस स्पीड पर गाड़ियों का क्रैश टेस्ट किया जाता है। अब GNCAP और BNCAP 64kmph की स्पीड से क्रैश टेस्ट करते हैं, जो एक जमाने में बहुत कम स्पीड पर करते थे।
  • साइड इम्पैक्ट क्रैश टेस्ट : सामने ही नहीं साइड से भी गाड़ी से कोई टकराए या गाड़ी किसी पोल से टकरा जाए तो उस कंडीशन में भी गाड़ी और उसमें बैठे अंदर के सभी लोग सेफ होने चाहिए।
  • फ्रंटल इम्पैक्ट : अगर सामने से कोई इंसान गाड़ी से टकराता है तो उस कंडीशन में एनर्जी एब्जॉर्ब करने के लिए गाड़ी में प्रावधान करना पड़ता है, ताकि उस आदमी को कम से कम चोट आए। इसके अलावा और भी टेस्ट किए जाते हैं, तब जाकर गाड़ी सेफ बनती है और हम कॉन्फिडेंस के साथ में GNCAP या BNCAP में गाड़ी को दे पाते हैं।

4. किसी मॉडल को क्रैश टेस्ट में भेजने के लिए क्या तैयारी की जाती है?

GNCAP और BNCAP में गाड़ी क्रैश टेस्ट के लिए भेजने की अलग से तैयारी नहीं की जाती है। क्योंकि, वे लाइनअप में शामिल किसी भी मॉडल को रेंडमली सिलेक्ट करते हैं और उसे सील भी कर देते हैं। फिर उस मॉडल को उसी कंडीशन में क्रैश टेस्ट के लिए भेजा जाता है।

कंपनी की ओर से अप्रोच करने पर एजेंसी काफी सवाल करती है। इनमें वैरिएंट, कीमत और फीचर्स की जानकारी आदि की जानकारी मांगी जाती है। इसके बाद वे सेफ्टी के लिए सबसे कम फीचर वाले वैरिएंट को चुनते हैं और उसका क्रैश टेस्ट किया जाता है।

भारत एनकैप (BNCAP) में सबसे कम फीचर वाले वैरिएंट को क्रैश टेस्ट के लिए चुना जाता है और उस वैरिएंट के हिसाब से पूरे मॉडल को सेफ्टी रेटिंग दी जाती है। यानी जब गाड़ी मार्केट में आएगी तो उसके सभी वैरिएंट एक ही सेफ्टी रेटिंग के साथ बिकेंगे।

5. टाटा मोटर्स यह कैसे तय करती है कि उसकी कारों का डिजाइन सेफ्टी पैमाने पर टॉप प्रायोरिटी पर रहे?

हमारे इंजीनियर्स को ब्रीफिंग भेजी जाती है कि इस गाड़ी को सेफ बनाना है और सेफ्टी की परिभाषा भी हर बार बदलती रहती है। इंजीनियर्स को बताया जाता है कि आगे आने वाले सालों में किन चिजों पर ज्यादा गौर किया जाए। आजकल सेफ्टी को तीन पहलुओं में देखना चाहिए।

  • सबसे पहले एक्सीडेंट न ही हो – इसके लिए गाड़ी में कम से कम एडवांस्ड ब्रेकिंग सिस्टम (ABS) और इमरजेंसी ब्रेकिंग सिस्टम (EBS) जैसे फीचर होना चाहिए। ये फीचर्स कार के बैलेंस को बनाए रखते हैं। यानी अगर आप इमरजेंसी में तेज ब्रेक लगाएं तो इसके लिए गाड़ी में कैपेबिलिटी होना चाहिए कि वह बहके न और बैलेंस बनाए रखे।
  • क्रैश हो तो कम से कम चोट पहुंचे – इसके लिए कार का स्ट्रक्चर मजबूत हो, अंदर एयर बैग और सीट बेल्ट जैसे फीचर्स होना चाहिए। ताकि कार में बैठा व्यक्ति अपनी जगह पर बना रहे और डैशबोर्ड या स्टीयरिंग व्हील से न टकराए।
  • क्रैश के बाद जल्द से जल्द मदद मिले – अभी SOS जैसी नई चीजें आ गई हैं, जिससे इमरजेंसी कॉल किया जा सकता है। इससे एम्बुलेंस या अन्य कोई आपकी मदद के लिए आ सकता है। इस तरह के फीचर्स एंट्री लेवल गाड़ी में भी जल्द ही देखने को मिलेंगे।

इन्हीं तीन चीजों पर ही टाटा की आने वाली गाड़ियां डेवलप की जाएंगी।

6. CNG के साथ ट्विन सिलेंडर टेक्नोलॉजी देने का आइडिया कहां से आया। इस टेक्नीक को कैसे डेवलप किया? कस्टमर के लिए ये कितने रिलायबल हैं? टाटा के CNG मॉडल अन्य ब्रांड्स को कितना कॉम्पिटिशन दे पा रहे हैं।

किसी भी गाड़ी में कुछ नया लाना होता है तो हमेशा कोशिश रहती है कि हमारे कस्टमर्स की कुछ समस्या हल हो। CNG की बात करें तो पहले माना जाता था कि CNG गाड़ी सिर्फ टेक्सी के लिए होती है या सिर्फ सिटी में चलाया जा सकता है बाहर नहीं। अगर हमको कस्टमर्स के लिए CNG गाड़ियां भी नॉर्मल गाड़ियां जितनी फ्लैक्सिबल या यूजफुल बनानी है तो हमारे लिए उसमें बड़ा सिलेंडर रखना योग्य नहीं था।

हमारी कोशिश थी कि कार में नॉर्मल कार जितना ही यूजेबल बूट स्पेस और उतनी ही उतनी ही CNG कैपेसिटी कस्टमर्स को दे पाए तो उनकी समस्या हल हो जाएगी। क्योंकि CNG तो अच्छा है ही, क्योंकि इससे CO2 तो कम होता ही है, साथ में रनिंग कॉस्ट भी कम हो जाता है। तो दो सिलेंडर इसका सॉल्यूशन निकला। इससे प्रदूषण और रनिंग कॉस्ट दोनों समस्याएं हल हो गईं।

हमारी कारों के हर हायर वैरिएंट में CNG अवेलेबल है। इससे CNG कारों को इस्तेमाल करने की जो भी थोड़ी बहुत शर्म थी, वह हमने खत्म कर दी। अब अच्छे से अच्छा आदमी भी CNG गाड़ी लेकर बेझिझक चला सकता है। हमने हाल ही में टियागो और टिगोर में CNG के साथ ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन का भी ऑप्शन दिया है। इससे कस्टमर को एडवांस फीचर्स और CNG दोनों ऑप्शन एक ही गाड़ी में मिल गए हैं।

ट्विन सिलेंडर वाली कारें लोगों को पसंद आ रही हैं। हमारा भारतीय बाजार में जो मार्केट शेयर है, उससे कहीं ज्यादा मार्केट शेयर CNG गाड़ियों का है।

7. CNG कार कितनी सेफ हैं?

CNG गाड़ियों में सेफ्टी को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है। हमने CNG गाड़ियों का रियर कॉलिजन टेस्ट किया है। इसमें देखा गया है कि अगर कार में पीछे से कोई टक्कर होती है तो भी वह सेफ है या नहीं।

इसके अलावा CNG भरने के लिए फ्यूल फ्लैप को खोला तो गाड़ी में CNG की सप्लाई बंद हो जाती है। इससे आग लगने जैसी घटना की गुंजाइश ही नहीं रहती है। वहीं कार में किसी और वजह से भी कोई फायर होता है तो सबसे पहले CNG सिस्टम शटऑफ हो जाता है। अगर CNG में कोई रिसाव भी होता है तो वह बाहर के बाहर निकल जाए, इसका भी प्रबंध किया गया है।

हमने पेट्रोल टैंक को भी कम नहीं किया है। अगर आपको आउट स्टेशन जाना है तो आप पेट्रोल पर भी गाड़ी चला सकते हैं। कार को सिंगल क्लिक से पेट्रोल से CNG और CNG से पेट्रोल में कनवर्ट किया जा सकता है। इसके पावर में भी कोई कमी नजर नहीं आती है। इस तरह के कई फीचर्स हमने कार में दिए हैं, जिससे गाड़ी चलाने का मजा भी किसी तरह कम न हो और सेफ्टी भी बनी रहे।

8. मार्केट में सबसे ज्यादा डिमांड SUV की है, क्या सेडान और हेचबैक का मार्केट खत्म हो जाएगा?
भारतीय सेडान और हेचबैक दोनों ही सेगमेंट की कारों को कम खरीद रहे हैं। इसकी जगह छोटी SUV पसंद कर रहे हैं। इसका एक कारण ये हो सकता है कि, जब आप SUV में बैठते हैं तो आपको चारों तरफ अच्छी तरह से दिखता है। आप एक कमांड ड्राइविंग पॉजिशन में बैठते हैं, जिससे सारी चीजें आपसे नीचे दिखती हैं। दूसरा कारण- लोगों को लगता है कि छोटी गाड़ी से SUV ज्यादा सेफ होती हैं। इसलिए लोग चाहे सेकेंड हैंड गाड़ी लें, लेकिन SUV ही पसंद करते हैं।

9. भारत में ड्राइवर लेस कारों को कैसे देखते हैं? इस तरह की गाड़ी क्या भारतीय सड़कों पर फिट बैठेंगी?
कोई भी टेक्नोलॉजी आज नहीं तो कल आनी ही है। फिलहाल, ADAS लेवल 3 को समझने की जरूरत है। इसमें गाड़ी चलाने वाला हाथ और आंखें सामने से हटा सकता है और अपना काम कर सकता है। लेकिन, इसमें काफी सारे लीगल चैलेंजेस हैं, जैसे- एक्सीडेंट होने पर जिम्मेदारी किसकी होगी- गाड़ी चलाने वाले की, या जिसने सॉफ्टवेयर बनाया, या जिसने कैमरा बनाया।

ड्राइवर लेस कारें अमेरिका और चीन जैसे देशों में अब तक नहीं है। टेस्ला की जो कारें हैं, उनमें भी लेवल 2.X तक फीचर दिए गए हैं। टेस्ला की कारें भी लेवल 3 तक नहीं पहुंची हैं। टेस्ला के मैन्युअल में कहीं नहीं लिखा कि आप गाड़ी छोड़कर कोई और काम कर सकते हो। ADAS का मतलब ही एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम होता है, न कि ड्राइवर रिप्लेस सिस्टम। ड्राइवर लेस कारों के लिए आज की परिस्थिति ठीक नहीं है, शायद भविष्य में हो सकती है और कंपनियां इसे लाने की कोशिश करेंगी।

10. पश्चिमी देशों में ऑटो कंपनियां कारों में चैटजीपीटी जैसी जेनरेटिव AI टेक्नीक शामिल कर रही हैं। क्या कारों में जेनरेटिव AI की कोई जरूरत है, खासकर भारत में?
चैटजीपीटी को लार्ज लेंग्वेज मॉडल कहा जाता है। ये एक प्रकार का एनालिसिस का जरिया होता है। यानी इसमें जब आप कोई सवाल डालेंगे तो ये सोचकर या सब जगह सर्च कर जवाब देता है। गाड़ी चलाने की परिस्थिति में इसे लाना अभी ठीक नहीं है। क्योंकि, अगर सामने से कोई आ रहा है तो मैं ब्रेक लगाऊं या न लगाऊं, ये सवाल चैटजीपीटी से नहीं पूछ सकते हैं। क्योंकि, इसमें आपको रिसपॉन्स के लिए टाइम ही नहीं मिल पाता है।

वैसे भी चैटजीपीटी इंटरनेट पर चलता है, तो हर जगह इंटरनेट की स्पीड एक जैसी नहीं रहती है। फिलहाल, गाड़ी चलाने या सेफ्टी के मामले में कम ही चीजें चैटजीपीटी से की जा सकती हैं। लेकिन सर्विस सपोर्ट जैसी कुछ चीजों के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे- सर्विस कहां अच्छी मिलती हैं, कौन सा सर्विस सेंटर नजदीक है या कहां कितनी कॉस्ट लगेगी आदि सवाल किए जा सकते हैं। इस तरह के फीचर्स आने वाले दिनों में कारों में दिख सकते हैं।

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