प्रदेश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने सड़कों के लिए तीन साल में 2000 करोड़ से अधिक का कर्ज बैंकों से लिया था। अब मौजूदा भाजपा सरकार को इस कर्ज का करीब 150 करोड़ रुपए ब्याज हर साल चुकाना होगा। मामला सड़क विकास निगम का है। यह निगम 2014 में भाजपा सरकार ने बनाया था। उस समय पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत थे। उनके मुताबिक निगम का मकसद था कि जहां कामर्शियल वर्क अधिक हो, वहां की सड़कों को मजबूत बनाया जाए और टोल लगाकर खर्चे की भरपाई की जाए। भाजपा के कार्यकाल में निगम ने राज्य सरकार के बजट से रायपुर के एक्सप्रेसवे जैसी 26 सड़कें बनाई। 2018 में सरकार बदली और मंत्री ताम्रध्वज साहू बने। पहले उन्होंने निगम को बंद करने का आदेश दिया।
फिर उनके निर्देश पर 2020 में निगम ने बैंकों से लोन लेने की प्रक्रिया शुरू की। 5,225 करोड़ रुपए का लोन फ्रीज भी कर दिया गया। यानी इतना कर्ज निगम को मिल सकता था। 2021 में इन पैसों से सड़कें बनना शुरू हुईं और 2023 तक 2000 करोड़ रुपए का कर्ज निगम पर चढ़ गया। सबसे अधिक पैसा 2022-23 में निकाला गया। इस दौरान राज्य में 400 से अधिक सड़कें बनीं। 140 सड़कों का काम पूरा भी हो गया। अ
फसर दबी जुबान से बताते हैं कि भूपेश सरकार ने सड़कों का पैसा गौठान, रीपा जैसी योजनाओं में लगा दिया। यही वजह है कि पीडब्ल्यूडी के पास बजट ही नहीं रहा और सड़क निर्माण का अधिकतम काम निगम के कर्जे से किया गया। अब साय सरकार ने इस वित्त वर्ष में ब्याज के लिए 150 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा है। सवाल ये है कि ब्याज तो इस साल का चुका दिया जाएगा, लेकिन बैंकों का मूल सरकार कैसे चुकाएगी।
राहत: केंद्र ने योजना शुरू की, वरना 3500 करोड़ हो जाता
2023 में केंद्र सरकार ने स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस स्कीम लॉन्च की। इसमें राज्यों से कहा कि जिससे प्रदेश की आय बढ़ती हो, ऐसे कार्यों का खर्च केंद्र उठाने को तैयार है। निगम ने राज्य में चल रही करीब 250 सड़कों को इस योजना में डाल दिया। इससे अब तक 1500 करोड़ रुपए की सड़कें तैयार हो गई हैं। अगर यह योजना न आती तो निगम का कर्ज 3500 करोड़ रुपए हो जाता।
सवाल: सीएम अध्यक्ष बनेंगे या पुरानी व्यवस्था चलेगी
जब निगम का गठन हुआ था, तो इसके अध्यक्ष सीएम और उपाध्यक्ष विभागीय मंत्री व मुख्य सचिव को बनाया गया। 2018 तक डॉ. रमन सिंह अध्यक्ष और राजेश मूणत उपाध्यक्ष रहे। लेकिन कांग्रेस सरकार ने व्यवस्था बदल दी। सीएम ने खुद को निगम से दूर करते हुए मुख्य सचिव अमिताभ जैन को अध्यक्ष बना दिया। अब भाजपा सरकार लौटी है। तो सवाल है कि क्या सीएम अध्यक्ष बनेंगे।
बाहरी एजेंसी को मिलनी थी भूमिका, पर पीडब्ल्यूडी की चलने लगी
कांग्रेस सरकार में सड़क विकास निगम अपने बनाए नियमों से इतर जाकर काम करने लगा। उसने पीडब्ल्यूडी का मूल काम करना शुरू कर दिया। जबकि निगम में ये तय हुआ था कि जो भी सड़क बनेगी, उसे इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट कंस्ट्रक्शन के तहत बनाया जाएगा। इसमें बाहर की एजेंसी सड़क का डीपीआर बनाती, उसकी मॉनिटरिंग करती। लेकिन 2021 के बाद निगम टेंडर निकालता था और पीडब्ल्यूडी काम करवाता था। पीडब्ल्यूडी ईएनसी बिल बनाकर भेज देते थे और निगम ठेकेदार को चेक जारी कर देता।
हमें सड़क विकास निगम को स्वपोषित संस्था बनाना था
मैंने सड़क विकास निगम को एक विजन के साथ बनाया था। कोयला, रेत खनन जैसे काम जहां होते हैं, वहां की सड़कें जल्दी टूट जाती हैं। ऐसी सड़कों की स्ट्रेथिंग की जाए और टोल लगाकर रेवेन्यू जनरेट किया जाए। इसी रेवेन्यू से सड़कों का निर्माण हो और मरम्मत भी। निगम को स्वपोषित संस्था के तौर पर विकसित करने का विजन था।
-राजेश मूणत, तत्कालीन मंत्री, पीडब्ल्यूडी
अभी पुराने प्रोजेक्ट्स चल रहे
सड़क विकास निगम का लोन सरकारी गारंटी पर है। वित्त विभाग से अनुदान मिलता है, उससे इसे चुकाया जाएगा। पुरानी सरकार ने कर्ज के माध्यम से सड़क निर्माण का निर्णय लिया था। अब नई सरकार जो तय करेगी, वैसे काम किया जाएगा। अभी निगम में पुराने प्रोजेक्ट्स ही चल रहे हैं।
कमलप्रीत सिंह, एमडी, सड़क विकास निगम