पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षा में इस बार भी बीसीए का रिजल्ट कमजोर रहा। फर्स्ट ईयर में 20 प्रतिशत, सेकंड ईयर में 12 प्रतिशत और थर्ड ईयर में सिर्फ 27 फीसदी छात्र ही पास हुए हैं। रिजल्ट की यही स्थिति अन्य राजकीय विश्वविद्यालयों में भी रही।
कोरोना काल को छोड़कर पिछले कई वर्षों से बीसीए में बड़ी संख्या में छात्र फेल हुए। हर साल बिगड़ते रिजल्ट को सुधारने के लिए पासिंग मार्क्स में कटौती 7 प्रतिशत तक की कटौती की गई है। इसके अनुसार 40 प्रतिशत की जगह पास होने के लिए छात्रों को 33 प्रतिशत अंक ही लाने होंगे। इसी तरह कुछ अन्य बदलाव भी हुए हैं।
प्रदेश के कुछ राजकीय विश्वविद्यालयों में बीसीए का नया नियम लागू हो चुका है। इसके अनुसार ही बीसीए की वार्षिक परीक्षा यानी 2023-24 के रिजल्ट तैयार होंगे। जबकि पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में यह नियम अगले सत्र यानी 2024-25 से लागू होगा। कमजोर रिजल्ट को लेकर पड़ताल की गई तो पता चला कि वर्ष पिछले दस वर्षों में बीसीए का रिजल्ट 30 प्रतिशत से कम रहा है। हालांकि, कोरोना अपवाद है। इस दौरान छात्रों ने घर से पेपर लिखकर जमा किया था। इसलिए अधिकांश छात्र पास हुए थे। पिछले वर्षों में इस कोर्स में सबसे ज्यादा छात्र मैथ्स व इंग्लिश मंे फेल हुए हैं। बीसीए के तीन वर्ष में छात्र तीन पेपर मैथ्स के पढ़ते हैं। यह उन छात्रों के लिए कठिन रहता है, जो मैथ्स बैकग्राउंड से नहीं हैं।
कुछ विवि में नियम लागू, रविवि में अगले सत्र से
जानकारी के मुताबिक रविवि के ऑडिनेंस के मुताबिक बीसीए के प्रत्येक पेपर में पास होने के लिए 33 प्रतिशत नंबर थ्योरी में, 40 प्रतिशत सेशनल और प्रैक्टिकल में 50 प्रतिशत नंबर जरूरी है। इसके तहत एग्रीगेट 40 प्रतिशत होना जरूरी है। तभी छात्र पास होते हैं। इससे कम होने पर छात्र को फेल घोषित किया जाता है। लेकिन नए नियम के अनुसार 100 नंबर के पेपर में थ्योरी और इंटर्नल मिलाकर 33 प्रतिशत नंबर चाहिए। रविवि के ऑडिनेंस में सुधार नहीं हुआ है। इसलिए पासिंग मार्क्स से संबंधित निर्देश अगले सत्र से लागू होगा। वहीं दूसरी ओर यह भी जानकारी सामने आ रही है कि कुछ विवि ने ऑडिनेंस में संशोधन के बगैर ही बीसीए का नया कोर्स लागू कर दिया है।
2018 में हुआ था बदलाव, मैथ्स का पेपर कम किया
कुछ साल पहले बीसीए के छात्र तीन वर्ष में मैथ्स के 6 पेपर पढ़ते थे। उस समय भी फर्स्ट ईयर में 25 से 30 प्रतिशत छात्र ही पास होते थे। सेकंड व थर्ड ईयर का रिजल्ट भी कम रहता था। इसका असर प्रवेश पर पड़ने लगा था। बाद में 2018 में बीसीए के सिलेबस में बदलाव हुआ। मैथ्स के पेपर को छह की जगह तीन किया गया। इसके तहत अब हर साल छात्रों को मैथ्स का एक पेपर देना होता है। हालांकि, मैथ्स के पेपर कम हुए लेकिन इसका स्तर कठिन ही रहा। इसलिए अब भी बीसीए में ज्यादा छात्र फेल हो रहे हैं। फेल होने वाले छात्रों में उनकी संख्या अधिक रही, जिन्होंने बारहवीं की पढ़ाई आर्ट्स या कामर्स से किया है।