जो दवाइयां कभी मेडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांतिकारी खोज थीं, अब वही मानव स्वास्थ्य के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। एंटीबायोटिक दवाइयों का असर कम होता जा रहा है। बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन में ये दवाइयां बेअसर साबित हो रही हैं। मेडिसिन की भाषा में इसे कहते हैं- एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR)। इसमें सबसे ज्यादा कॉमन कंडीशन है एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस। इस मेडिकल कंडीशन का कारण है एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल, जिसमें सभी प्रकार की एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल्स, एंटीफंगल्स दवाएं शामिल हैं।
आज सेहतनामा में बात एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस की। जानेंगे कि-
- एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस क्या होता है?
- यह किन कारणों से होता है?
- जीवन रक्षक एंटीबायोटिक दवाइयां कब स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाती हैं?
- इस खतरे से बचने के लिए क्या सावधानियां जरूरी हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चेतावनी
WHO के हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को इतनी ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई गईं कि उससे एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और ज्यादा बढ़ गया है।
WHO के मुताबिक महामारी के दौरान जितने लोगों को कोविड हुआ, उनमें से महज 8% लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत थी, लेकिन डर का माहौल इतना था कि सारे लोगों को बहुत ज्यादा मात्रा में यह दवाएं दी गईं। तकरीबन 75% लोगों ने पैंडेमिक के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया। भारत में कोविड के दौरान लोग सिर्फ डॉक्टरी सलाह पर ही नहीं, बल्कि थोड़ी भी सर्दी-खांसी होने पर खुद ही मेडिकल स्टोर से खरीदकर एंटीबायोटिक दवाइयां खा रहे थे।
इन सबका नतीजा ये हुआ है कि सुपरबग में दवाइयों के प्रति एक रेजिस्टेंस डेवलप हो गया है। यह समस्या कोविड के पहले भी गंभीर थी, लेकिन अब और ज्यादा हो गई है।
30 करोड़ लोगों पर है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का खतरा
WHO के मुताबिक AMR मानव स्वास्थ्य पर मंडरा रहा सबसे बड़ा ग्लोबल खतरा है और 30 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी जद में हैं। WHO के ही मुताबिक वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण 12 लाख लोगों की मौत हुई और तकरीबन 49 लाख लोगों की मौत में कहीं-न-कहीं AMR की बड़ी भूमिका थी।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्या होता है
आसान भाषा में इसे ऐसे समझिए। शरीर में जब किसी वायरस या बैक्टीरिया का हमला होता है तो शरीर बीमार पड़ जाता है। अगर वह वायरस इतना शक्तिशाली है कि शरीर खुद उसका मुकाबला करने में सक्षम नहीं है तो डॉक्टर उससे लड़ने के लिए हमें दवाएं देते हैं, जिसे हम एंटीबायोटिक दवाएं कहते हैं। एंटीबायोटिक ड्रग्स वायरस को मारकर शरीर को प्रोटेक्ट करते हैं।
लेकिन अगर हम जानकारी के अभाव में बार-बार एंटीबायोटिक ड्रग्स लेते रहें, तब भी जब हमारे शरीर को उसकी जरूरत नहीं है तो शरीर में मौजूद वायरस उस ड्रग से इम्यून हो जाता है। फिर उस पर एंटीबायोटिक्स का कोई असर नहीं पड़ता। इसी स्थिति को एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस कहते हैं।
दवाइयों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के कारण ये रेजिस्टेंस जब एंटीबैक्टीरियल, एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल्स, एंटीफंगल्स सभी प्रकार की दवाइयों के लिए डेवलप हो जाता है तो उसे एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्यों होता है
आपने वो ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ वाली कहानी तो सुनी होगी। लड़का रोज बिना बात के चिल्लाकर लोगों को बुलाता रहा और जब सचमुच भेडि़या आया तो उसे बचाने कोई नहीं आया।
कुछ ऐसी ही कहानी एंटीबायोटिक ड्रग्स की भी है। हम हर मामूली सी बात पर दवा खा रहे हैं। थोड़ा सा सिरदर्द हुआ, थोड़ा सा बुखार हुआ, थोड़ा सा जुखाम हुआ, छींक आई, खांसी आई, तुरंत एजिथ्रोमाइसिन, क्रोसिन, पैरासिटामॉल गटक ली।
डॉक्टर के पास जाने की भी जरूरत नहीं है। सीधे मेडिकल स्टोर पहुंचे, उसे समस्या बताई और मेडिकल स्टोर वाले ने हैवी एंटीबायोटिक दवाएं थमा दीं और हमने भी बिना सोचे-समझे बस खा ली।
जो सर्दी-जुखाम, बुखार दो दिन में वैसे भी अपने आप ठीक हो जाना था, उसे दवाइयां खाकर भी दो दिन में ठीक कर लिया और ये सोचकर खुश हो गए कि ये दवा का असर है।
शरीर को इतनी दवाएं खिलाई हैं कि अब बैक्टीरिया और वायरस पर दवाओं का कोई असर ही नहीं हो रहा।
इसके अलावा भी कई कारण हैं, जो एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट सुपरबग के पैदा होने के लिए जिम्मेदार हैं।
एंटी बैक्टीरियल ड्रग्स सिर्फ दवाओं के जरिए ही नहीं, खाने-पीने की हर चीज के जरिए पेट में जा रहे हैं। हर फल-सब्जी, पेड़, हवा, पानी, मिट्टी सब जगह केमिकल मौजूद है, जो बग्स को इन सबके प्रति इम्यून बना रहा है।
सुपरबग्स ऐसे शातिर अपराधी हैं, जो किसी बंदूक की गोली से नहीं मर रहे। जिन पर किसी बम, गोले का कोई असर नहीं हो रहा। ऐसे सुपरबग्स अगर पैदा हो गए हैं तो वो खुद भी संक्रमण के जरिए एक शरीर से दूसरे शरीर में पहुंच सकते हैं।
इसके अलावा दवाओं को लेकर हमारा रवैया भी बहुत लापरवाही भरा रहता है। अगर डॉक्टर ने पांच दिन की डोज दी है तो दो दिन के बाद ही हमें लगता है कि हम ठीक हो गए और दवाई खाना बंद कर देते हैं। ऐसे में संबंधित वायरस या बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं होता और दोबारा उभर आता है।