रिस्क पहचानने में चूक, ज्यादातर केस रेफर करने का नतीजा : प्रदेश में पिछले साढ़े चार साल में 2247 गर्भवती-शिशुवती महिलाओं की मौत…!!

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जनवरी 2019 से जून 2023 के अवधि यानी करीब साढ़े 4 साल में 2247 गर्भवती और शिशुवती महिलाओं की मौत हुई है। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव समेत 8 जिले ऐसे हैं जहां गर्भवती शिशुवती महिलाओं की मौत का आंकड़ा इस अवधि में 100 के पार तक पहुंच गया। पड़ताल में पता चला है कि गर्भावस्था में हाईरिस्क की पहचान के लिए 4 बार की एंटी नेटल चेकअप यानी एएनसी सिस्टम में जमीनी स्तर पर कई तरह की खामियां हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के जरिए गर्भवती का एएनसी किया जा रहा है। हमारी टीम ने जब स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रजिस्टर की एंट्रियां देखी। तो सभी में एक जैसी एंट्रियां दिखी। दरअसल, गर्भवती महिलाओं का पहला चेकअप 12 हफ्ते में होना चाहिए। दूसरा 14 से 26, तीसरा 28 से 34 और चौथी जांच 36 वे हफ्ते के बाद कभी भी होनी की जानी चाहिए। जानकार भी कहते हैं कि इस दौरान अगर जांच सही तरीके से की जाए तो काफी हद तक मौतों को रोका जा सकता है।

जमीनी सच्चाई: 47 डिग्री तापमान में एसी न कूलर

प्रसव के आपरेशन थिएटरों में कूलर-एसी जैसी सुविधाएं भी नहीं भास्कर टीम ने 31 मई को दुर्ग जिले के कोहका पीएचसी का दौरा किया। उस दिन यहां करीब 47 डिग्री टैंप्रेचर था। प्रसव के लिए बनाए ओटी रूम में जब हमारी टीम गई तो यहां स्टाफ ने बताया कि करीब दस साल से ओटी में कूलर, एसी जैसी सुविधाएं नहीं है। अभी एसी लगाने की तैयारी हो रही है। इतने अधिक तापमान में प्रसव के लिए आई महिला बगैर कूलर के कक्ष में दिखाई दी।

सरकारी एंबुलेंस में देरी

गर्भवती और नवजात बच्चों के लिए 325 महतारी जतन सेवा यानी 102 एंबुलेंस है। इमरजेंसी में फोन करने पर कॉल 112 से राउटिंग होकर कॉल महतारी गाड़ियों तक पहुंचता है। जिससे गर्भवती या नवजात का गोल्डन टाइम यानी शुरूआती 40-45 मिनट का वक्त बर्बाद हो जाता है। इससे भी मौत की आशंकाएं बढ़ जाती है।

मृत्युदर में कमी लाने सरकार प्रतिबद्ध: स्वास्थ्य मंत्री

मृत्यु दर में कमी लाने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। जहां भी खामियां पाई जा रही है। वहां तत्काल एक्शन लेने के लिए निर्देश दिए गए हैं। वार्मर,बेड और जरूरी उपकरण बढ़ाने के लिए पहले ही कहा जा चुका है।
-श्यामबिहारी जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री

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