आज इंटरनेशनल योग डे है। Statista के डेटा के मुताबिक पूरी दुनिया में 30 करोड़ लोग नियमित योग करते हैं, जिसमें साढ़े तीन करोड़ अकेले अमेरिका में हैं। भारत में सिर्फ 12% लोग नियमित योग करते हैं। भारत की धरती योग की जन्मभूमि है। 200 ईसा पूर्व में पतंजलि ने योगसूत्र लिखा। तब तो मॉडर्न साइंस भी नहीं था। न आज की तरह आधुनिक मशीनें थीं, जो मानव शरीर और मस्तिष्क के भीतर झांककर ये पता लगा लेतीं कि योग करने से हमारे शरीर में क्या पॉजिटिव बदलाव होते हैं।
विज्ञान किसी हाइपोथिसिस को सत्य मानने से पहले उस पर रिसर्च करता है, फैक्ट्स को देखता है। फिर अंत में कोई थ्योरी प्रतिपादित करता है।
तो सवाल ये है कि साइंस और साइंटिफिक स्टडीज योग के बारे में क्या कहती हैं।
नियमित योग से अल्माइजर्स का रिस्क 37% कम
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की साल 2023 की एक स्टडी के मुताबिक नियमित योग अभ्यास से मेमोरी शार्प होती है, अल्माइजर्स का रिस्क 37% कम होता है और मेंटल हेल्थ इंप्रूव होती है।
कुछ ऐसे ही नतीजों पर पहुंचे थे साल 2002 में स्टैनफोर्ड मेडिकल स्कूल के रिसर्चर्स, जब उन्होंने रेगुलर योग प्रैक्टिस करने वाले 300 लोगों का ब्रेन स्कैन किया और पाया कि उनका ब्रेन किसी सामान्य व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा स्वस्थ था।
हम चीजों को कैसे याद रखते हैं
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस की प्रोफेसर हैं डॉ. वेंडी सुजुकी। आज न्यूरोसाइंस की दुनिया में एक बड़ा नाम। वो एक जीते-जागते ह्यूमन ब्रेन को अपने हाथों में लेकर उसकी बारीकियों की ऐसे व्याख्या करती हैं, जैसे कोई अनुभवी किसान मिट्टी का रंग देखकर बता दे कि उसमें आखिरी फसल कौन सी उगी थी।
ह्यूमन ब्रेन में भी डॉ. सुजुकी की एक्सपर्टीज है ब्रेन के नीचे की ओर स्थित एक बेहद क्रिटिकल हिस्सा ‘हिप्पोकैंपस’। हिप्पोकैंपस वो जगह है, जहां हमारी सारी लाॅन्ग टर्म मेमोरी सेव होती है। जैसे आप किसी से मिले। आपने उसका चेहरा देखा और नाम पूछा। इस नाम और चेहरे को जोड़कर जो एक पहचान बनी, वो आपके हिप्पोकैंपस में सेव हो गई। जब आप अगली बार उससे मिलेंगे तो हिप्पोकैंपस से निकलकर वही इंफॉर्मेशन आपको याद दिलाएगी कि इस व्यक्ति को किस नाम से बुलाना है।
जैसे मान लीजिए बचपन में आपके स्कूल के बगल में एक बड़ा सा आम का पेड़ था। फिर बहुत साल बाद आप उस स्कूल को देखने जाते हैं। अब रास्ते, सड़कें और पूरे शहर का नक्शा बिलकुल बदल चुका है। कुछ भी पुरानी मेमोरी से मेल नहीं खा रहा। तभी आपको आम का एक पेड़ दिखता है और आपके हिप्पोकैंपस से वो मेमोरी निकलकर आपको याद दिलाती है कि अरे, इसी पेड़ के बगल वाली बिल्डिंग तो है मेरा स्कूल।
सेब क्या कोई गेंद है
बचपन में जब पहली बार आपको सेब खाने के लिए दिया गया तो आपको पता नहीं था कि इसका क्या करना है। क्या ये कोई गेंद है, जिससे खेलना है या इसे खाना है। फिर धीरे-धीरे हिप्पोकैंपस में ये मेमोरी सेव हो गई कि ये एक सेब है और इसे धोकर खाते हैं। जीवन में दोबारा कोई ये बताता या याद नहीं दिलाता कि सेब को कैसे खाना है। सेब सामने आते ही सारे एक्शन ऑटोमैटिक होते हैं।
लेकिन अब कल्पना करिए एक अक्यूट अल्जाइमर पेशेंट की। अगर उसके सामने एक सेब रखा हो तो उसे समझ में नहीं आएगा कि ये क्या है और इसका क्या करना है क्योंकि उसके हिप्पोकैंपस में सेव सारी मेमोरी डिलिट हो चुकी है।
हिप्पोकैंपस ही डिमेंशिया और अल्जाइमर्स जैसी मेमोरी से जुड़ी बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार है। हम जो कुछ भी याद रखते हैं या भूल जाते हैं, वो सब इसी हिप्पोकैंपस में हो रहा होता है।
हिप्पोकैंपस की कहानी ऐसी है कि इसका कोई निश्चित आकार या क्षमता नहीं है। ये लगातार बदलता रहता है और यह बदलाव हम मनुष्यों के एक्शन पर निर्भर करता है। जैसेकि हम क्या खाते हैं और कितनी एक्सरसाइज करते हैं।
हिप्पोकैंपस का योग से क्या है कनेक्शन
अब वापस आते हैं योग पर। तो डॉ. सुजुकी की हाइपोथिसिस ये थी कि योग या कोई भी फिजिकल एक्सरसाइज करने से हिप्पोकैंपस का आकार बड़ा हो जाता है। उसमें करोड़ों की संख्या में नए न्यूरॉन कनेक्शन बनते हैं। इससे हमारी मेमोरी शार्प होती है और उम्र बढ़ने के साथ हम डिमेंशिया का शिकार नहीं होते।
साल 2013 की इस स्टडी में उन्होंने पाया कि रेगुलर योग और एक्सरसाइज करने वाले लोगों के ब्रेन में हिप्पोकैंपस का आकार बड़ा था। उसकी फ्लेक्सिबिलिटी और न्यूरॉन्स की संख्या योग न करने वाले लोगों के मुकाबले 26% ज्यादा थी।
हालांकि यह अपनी तरह की पहली और इकलौती स्टडी नहीं थी। यूसी, बर्कले में साल 1960 में हुई एक स्टडी दुनिया की पहली ऐसी स्टडी थी, जिसने वैज्ञानिकों के बीच ब्रेन इलास्टिसिटी की थ्योरी को प्रूव किया। ब्रेन इलास्टिसिटी का अर्थ है ब्रेन के आकार का बदलना।
नियमित योग करने पर कैसे बदलता है ब्रेन
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की वर्ष 2021 की एक स्टडी इस पर थोड़ा डीटेल में रौशनी डालती है।
इस स्टडी के मुताबिक योग के तीन प्रमुख आयाम है-
- शरीर की फ्लेक्जिबिलिटी या लचीलापन
- ब्रीदिंग एक्सरसाइज
- फोकस या ध्यान केंद्रित करना
जैसे रेगुलर हैवी फिजिकल एक्सरसाइज करने, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करने या हैवी वेट उठाने से मसल्स डेवलप होती हैं, वैसे ही योग और ब्रीथिंग एक्सरसाइज खासतौर पर ब्रेन के दो हिस्सों पर असर डालती है- हिप्पोकैंपस और एमिग्डला। यानी ब्रेन का मेमोरी सेंटर और स्ट्रेस रिस्पांस सेंटर या इमोशनल सेंटर।
हार्वर्ड की स्टडी के मुताबिक योग करने से दिमाग में ये बदलाव होते हैं-
- ब्रेन का आकार बढ़ता है।
- ब्रेन में नए न्यूरॉन कनेक्शंस बनते हैं।
- ब्रेन सेल्स की इलास्टिसिटी यानी उनका लचीलापन बढ़ता है।
- कॉग्निटिव फंक्शन बेहतर होता है।
- ब्रेन का सेरिबेलम इंप्रूव होता है।
- सेरिबेलम वह हिस्सा है, जो मोटर सेंसेज को कंट्रोल करता है। जैसे चलना, लिखना, दौड़ना, गाड़ी ड्राइव करना, बॉल कैच करना या कोई पत्थर सामने से आए तो तुरंत खुद को बचाने के लिए झुक जाना। जितने मोटरी सेंसर रिस्पांस होते हैं, सब सेरिबेलम से कंट्रोल होते हैं और सेरिबेलम योग करने से ज्यादा एक्टिव रहता है।
- योग करने से ब्रेन का सेरिब्रल कॉरटेक्स बेहतर होता है। ये ब्रेन का वो हिस्सा है, जो इंफॉर्मेशन को प्रॉसेस करता है।
बाकी शरीर की तरह ब्रेन के इन हिस्सों का उम्र के साथ कमजोर होना स्वाभाविक है। लेकिन हार्वर्ड की इस स्टडी में देखा गया कि जो लोग 90 की उम्र के बाद भी नियमित रूप से योग का अभ्यास कर रहे थे, उनके ब्रेन के कॉग्निटिव डिक्लाइन की गति बहुत धीमी थी। हालांकि बाकी शरीर और मांसपेशियां कमजोर हो रही थीं, लेकिन उनका मेमोरी लॉस नहीं हुआ था, वह बिना किसी सहारे के चल सकते थे, सीढ़ियां चढ़ सकते थे और रोजमर्रा की जिंदगी के सारे काम खुद करने में सक्षम थे।
एक आर्टिकल में हम कुछेक हेल्थ स्टडीज और रिसर्च ही कवर कर सकते हैं। लेकिन सच तो ये है कि दुनिया भर में पिछले दो दशकों में इस विषय पर 50 से ज्यादा रिसर्च हो चुकी हैं और हर रिसर्च इस नतीजे पर पहुंची है कि योग का नियमित अभ्यास सिर्फ शरीर ही नहीं, दिमाग को भी स्वस्थ रखता है।
फिर देर किस बात की है। योग करने के लिए सिर्फ एक योगा मैट ही तो चाहिए। नहीं तो दरी से भी काम चल जाएगा। रोज सुबह उठिए और सिर्फ 20 मिनट योग करने से शुरुआत करिए।
आपका जीवन बदल जाएगा।