राजधानी के आउटर मंदिर हसौद और धरसींवा में फर्जी रजिस्ट्रेशन करने वाले सिंडिकेट से फ्यूल कंपनी में ट्रांसपोर्टेशन करने वाले कारोबारियों का भी लिंक मिला है। कारोबारी दूसरे राज्यों से 4-5 लाख रुपए में पुराने फ्यूल सप्लाई करने वाले टैंकर खरीदकर डेंटिंग-पेंटिंग कर नया जैसा बना रहे हैं।
फिर नार्थ-ईस्ट के राज्यों में उनका फर्जी रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद राजधानी के आउटर में चेसिस नंबर बदलवाते हैं। इसमें कुल मिलाकर सात-आठ लाख खर्च होते हैं जबकि नया टैंकर 40-45 लाख में आता है। इस तरह लगभग 30 लाख बचाकर कारोबारी पुराने टैंकर को नया बताकर फ्यूल कंपनी में ट्रांसपोटेशन के लिए अटैच करवा रहे हैं और मोटी रकम पा रहे हैं। पूरा खेल इसी के लिए किया जा रहा है। पड़ताल में पता चला है कि फ्यूल कंपनी ट्रांसपोटेशन के लिए मोटी रकम तो देती है लेकिन 8 साल से ज्यादा पुराने टैंकर का उपयोग नहीं करती।
क्योंकि पेट्राेल डीजल की सप्लाई के लिए पुराने टैंकर को खतरनाक माना जाता है। फ्यूल लीक होने से हादसा हो सकता या फिर अनफिट गाड़ी से दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। इसलिए कंपनी नई गाड़ियों को ही पेट्रोल डीजल की सप्लाई का ठेका देती है। नई गाड़ी खरीदने की बजाए पुरानी गाड़ी से ही ज्यादा पैसे कमाने के लिए कारोबारी जालसाजी कर रहे हैं। इसके लिए पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। चूंकि ये जालसाजी पिछले लगभग 7 वर्ष से चल रही है इसलिए इससे लिंक रखने वाले सभी को मालूम है कि फर्जी रजिस्ट्रेशन कहां और कैसे होगा? इसलिए सिंडिकेट के सदस्य पुरानी गाड़ी को नया कर पेट्रोल-डीजल सप्लाई का ठेका ले रहे हैं। पड़ताल में खुलासा हुआ है कि इसमें फ्यूल ट्रांसपोर्टेशन करने वाले कारोबारी के अलावा कुछ आरटीओ के बाबू और एजेंट भी शामिल हैं। दुर्ग-भिलाई के आरटीओ में इस सिंडिकेट का बड़ा लिंक मिला है।
पुरानी और अनफिट गाड़ियां की जा रहीं सप्लाई
सिंडिकेट से जुड़े लोगों का कहना है कि इस तरह फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कई पुराने टैंकरों से पेट्रोल-डीजल की सप्लाई हो रही है लेकिन कंपनी के जिम्मेदारों को भनक नहीं है। चूंकि टैंकर को अटैच करने के पहले उसे बाहर से देखने के अलावा दस्तावेजों की जांच की जाती है। दस्तावेजों में पुराने टैंकरों को नया दिखाने के लिए इतनी प्लानिंग से काम किया जा रहा है कि फ्यूल कंपनी के जिम्मेदार धांधली को पकड़ नहीं पा रहे हैं। ट्रांसपोर्टर जिस समय गाड़ी को अटैच करते है। रजिस्ट्रेशन उसी साल या एक साल पहले का दस्तावेज बनाते है। इससे कंपनी आसानी से उन्हें ट्रांसपोर्टेशन का ठेका देती है।
बस और पिकअप का भी री रजिस्ट्रेशन
पुरानी यात्री बस, पिकअप का भी फर्जी दस्तावेज तैयार किया जा रहा है। सिंडिकेट के सदस्य 2023 और 2024 का दस्तावेज बना रहे हैं। उसे नई गाड़ी बनाकर चलाया जा रहा है। सभी का लिंक नार्थ-ईस्ट के राज्यों में बैठे एजेंटों से है, जो फोन पर ही उनके लिए रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं।
कई गाड़ियों का एक जैसा नंबर
कमर्शियल गाड़ियों के अलावा अब लोग निजी गाड़ियों का भी फर्जी रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। गाड़ी पुरानी होने पर उसका फर्जी रजिस्ट्रेशन कराकर चला रहे हैं। कुछ लोग अपनी चार-पांच गाड़ियों का नए जैसा नंबर रखने के लिए भी ऐसा कर रहे है। बिलासपुर के एक कांग्रेसी नेता के खिलाफ भी इस तरह की लंबी शिकायत हुई है। उनके पास दो गाड़ियां है, उसका नंबर एक ही है। दोनों गाड़ियों के दस्तावेज में भी गड़बड़ी है। दस्तावेज में एक ही गाड़ी के मालिक का नाम भी अलग-अलग कर दिया गया है। इसकी पुलिस, परिवहन से लेकर सरकार में शिकायत हुई है।
आरटीओ में होता है बड़ा खेल
रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ समेत सभी जिलों के आरटीओ में बिना सरकार के अनुमति के निजी व्यक्ति काम कर रहे है। आरटीओ के बाबू अपने सहयोग के लिए खुद के खर्च पर तीन-चार कर्मचारी रखकर काम करवा रहे हैं। बैरियर में 50-70 निजी कर्मचारियों को रखा गया है। यही निजी कर्मचारी ही फर्जीवाड़ा कर रहे है। क्योंकि ये निजी कर्मचारी अधिकारियों के लिए काम कर रहे हैं। इनके पास आरटीओ की आईडी और पासवर्ड है। इनमें से कुछ लोग सिंडिकेट से जुड़े हैं।