हाई कोर्ट ने नशे की तस्करी के मामले में ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द किया

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नशे की तस्करी और बिक्री के एक मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने पाया कि जांच में कई खामियां थीं और कानूनी प्रक्रिया का सही तरीके से पालन नहीं किया गया था।

यह मामला 2018 का है, जब डायरेक्टोरेट ऑफ रेवन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) के अधिकारियों को मुखबिर से सूचना मिली थी कि एक ट्रक में भारी मात्रा में गांजा छिपाकर ले जाया जा रहा है। डीआरआई टीम ने ट्रक को पकड़ा और उसमें से 1840 ग्राम गांजा बरामद किया।

इस मामले में चार आरोपियों पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने चारों आरोपियों को दोषी ठहराया था और उन्हें 10-10 साल की जेल की सजा सुनाई थी।

लेकिन हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को अलग करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि बरामद किया गया सामान वास्तव में गांजा ही था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाहों के बयान भी विरोधाभासी थे।

इसके अलावा, हाई कोर्ट ने पाया कि डीआरआई अधिकारियों ने ट्रक की तलाशी के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। नियमों के अनुसार, तलाशी के दौरान गवाहों को मौजूद होना चाहिए था, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया था।

हाई कोर्ट ने कहा कि इन सभी खामियों के कारण ट्रायल कोर्ट का फैसला टिकाऊ नहीं है। इसलिए, हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस ट्रायल कोर्ट भेज दिया।

यह फैसला कानूनी प्रक्रिया के महत्व और नशीली दवाओं से जुड़े मामलों में सबूतों की मजबूती की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

हाई कोर्ट ने कहा है कि जांच एजेंसी को प्रावधानों का सख्ती से पालन करना
प्रावधानों का सख्ती से पालन करना चाहिए। नशे से जुड़े अपराध समाज के बुनियादी ढांचे को कमजोर करते हैं। इस देश के भविष्य की रक्षा के लिए ऐसे अपराध से कानून के अनुसार सख्ती से निपटना होगा। हाई कोर्ट ने फैसले की कॉपी डीआरआई, नागपुर के क्षेत्रीय इकाई को भेजने के आदेश दिए हैं।
डीआरआई ने जांच में की लापरवाही
हाई कोर्ट ने कहा है कि डीआरआई ने एनडीपीएस एक्ट के तहत कानून के अनिवार्य प्रावधानों पर विचार करते हुए जांच नहीं की औरअपने कर्तव्य में विफल रही है। इस कारण भारी मन से हमें अपीलों को स्वीकार करना पड़ रहा है।

 

 

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