नई दिल्ली। पिछले दो दशक में सरकार चौथी बार पेट्रोलियम उत्पादों की खोज व उत्पादन को कंपनियों के लिए आकर्षक बनाने की कोशिश में जुटी है। 11 जुलाई, 2024 को पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आयोजित ऊर्जा वार्ता कांफ्रेंस में इस क्षेत्र की निजी और सरकारी कंपनियों, पेट्रोलियम मंत्रालय और हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) के अधिकारियों को मिला कर एक कार्य समूह गठित करने का फैसला किया।
8 हफ्तों में आएगी रिपोर्ट
कार्य समूह हाइड्रोकार्बन सेक्टर की मौजूदा नीतियों की समीक्षा करेगा और इसे ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए सुझाव देगा ताकि देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खोज व खनन के लिए ज्यादा कंपनियों को निवेश के लिए तैयार किया जा सके। ये समूह सिर्फ आठ हफ्तों में अपनी रिपोर्ट दे देगा। भारत सरकार ने देश के तेल सेक्टर में देशी-विदेशी कंपनियों को बुलाने के लिए वर्ष 1999 में पहली बार एनईएलपी नीति लागू की थी। इसके बाद चार बार अलग अलग समितियां बनी और इनके सुझाव पर देश में पेट्रोलियम खनन को बढ़ावा दिया गया। लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है। कुछ इक्का-दुक्का निजी कंपनियों ने ही भारत के इस सेक्टर में निवेश किया है।
पेट्रोलियम उत्पादों पर लगातार बढ़ रही निर्भरता
अभी तक कोई भी दिग्गज बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी ने भारत में तेल निकालने में पैसा नहीं लगाया है। इसके लिए भारत ने पर्यावरण को होने वाली संभावित क्षति की डर से संरक्षित एक बड़े भू-भाग को भी इस सेक्टर की कंपनियों के लिए खोल दिया है। दूसरी तरफ आयातित पेट्रोलियम उत्पादों पर भारत की निर्भरता 70 फीसद से बढ़ कर 85 फीसद हो गई है। स्वयं पेट्रोलियम मंत्री पुरी ने इस बात का जिक्र किया। हालांकि वह यह भी बताते हैं कि भारत के हाइड्रोकार्बन खोज व उत्पादन में 100 अरब डॉलर के निवेश का अवसर है। भारत में जितनी संभावनाओं वाले क्षेत्र में तेल की खोज हो सकती है, उसमें सिर्फ 10 फीसद हिस्से में ही यह हो रहा है।