प्राचार्य ने कबाड़ में बेच दी 550 किलो किताबें:छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए आई थीं; जांच के आदेश…!!

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छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में सरकारी स्कूल की किताबों को किलो के भाव में बेच दिया गया। स्कूल के प्राचार्य ने करीब 550 किलो किताबों को 20 रुपए किलो के भाव से रद्दी में बेचा। मामला सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं। जिले के छुईंखदान विकासखंड के ग्राम ठाकुरटोला स्थित शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में बलदाऊ जंघेल प्राचार्य पद पर हैं। आरोप है कि उन्होंने छात्र-छात्राओं के लिए आई किताबों और उनकी प्रायोगिक फाइलों को रद्दी में बेच दिया है।

स्थानीय लोगों के अनुसार, कबाड़ी 20 रुपए प्रति किलो के हिसाब से किताबें खरीदता है। ऐसे में प्राचार्य को इन किताबों को रद्दी में बेचने के बदले करीब 11 हजार रुपए मिले होंगे। हालांकि इन किताबों की छपाई में लाखों रुपए का खर्च हर साल आता है।

विद्यालय के पुस्तक प्रभारी ने की शिकायत

प्राचार्य के किताबें बेचने की शिकायत स्कूल के ही पुस्तक प्रभारी मनोहर चंदेल ने जिला शिक्षा अधिकारी खैरागढ़ से की है। इसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने गंडई के प्राचार्य को जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच करने के निर्देश दिए हैं। जांच अधिकारी ने 24 जुलाई को दोपहर 12 बजे प्राचार्य को जांच के लिए स्कूल में उपस्थित होने के लिए कहा है। बताया जा रहा है कि जो किताबें प्राचार्य ने बेची हैं, वो पिछले सत्र की हैं। हालांकि इस सत्र में पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में ये किताबों बहुत सारे बच्चों के काम आ सकती थीं।

साल 2023 में भी रद्दी के भाव बेची गई थीं किताबें

पिछले साल मई 2023 में भी खैरागढ़ शहर के ही स्वामी आत्मानंद स्कूल की किताबों को रद्दी के भाव बेच दिया था। आरोप है कि प्राचार्य कमलेश्वर सिंह ने बच्चों को बांटी जाने वाली करीब 100 किलो पुस्तकें कबाड़ी को बेची थी। मामला सामने आने के बाद कमलेश्वर सिंह को प्रभारी प्राचार्य के पद से हटाकर अस्थाई रूप से शासकीय विद्यालय कांचरी में ट्रांसफर कर दिया गया था।

1 साल बाद भी जांच नहीं

इस मामले में करीब एक साल बीत चुका है, लेकिन विभाग जांच नहीं करवा पाया है। आरोप है कि, जांच के नाम पर विभागीय लीपापोती आज तक चल रही है। वहीं जांच का हवाला देकर जिम्मेदार बचते नजर आ रहे हैं।

स्कूलों में निशुल्क बांटी जाती है किताबें

सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर इन किताबों को छपवाया जाता है और निशुल्क बांटा जाता है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे किताबों के अभाव में पढ़ाई से वंचित ना रह जाए। ऐसे में थोड़े से पैसों के लालच में आकर बच्चों की किताबें रद्दी के भाव बेची जा रही है।

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