छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में खूंखार आवारा कुत्तों का खौफ बढ़ता जा रहा है। रामनगर इलाके में 19 नवंबर को घर के बाहर खेल रही ढाई साल की बच्ची पर कुत्तों ने ना सिर्फ हमला किया बल्कि उसे घसीटते हुए भी ले जाने लगे थे। बड़ी मुश्किल से उनके जबड़े से मासूम को बचाया गया। यही आलम शहर के कई इलाकों की गली का है। देर शाम को लोग गुजरने से भी कतराने लगे हैं।
सड़क से गुजरने वाले लोगों को कुत्ते दौड़ाने के साथ काटने भी लगे हैं। अंबेडकर अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक इस साल 1500 से ज्यादा लोगों को एंटी रैबीज वैक्सीन लग चुकी है। ये आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि अभी एक महीना बाकी है। वहीं निगम का दावा है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी की जा रही है! लेकिन इस दावे की जमीनी हकीकत को जानने समझने
राष्ट्रबोध ने पड़ताल की तो पता चला कि रायपुर के शास्त्री बाजार, बांसटाल मार्केट ,गोल बाजार ,जवाहर मार्केट के चिकन-मटन मार्केट जैसे इलाकों में आवारा कुत्ते बड़ी संख्या में थे। जिन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है !
मौके पर यह देखने को मिला कि दुकान संचालक खराब सड़ा कच्चा मांस वहीं फेंक रहे थे जिसे कुत्ते खाते दिखाई दिए। जानकारों का कहना है कि सड़ा गला कच्चा मांस खाने के कारण भी कुत्ते आक्रामक हो जाते हैं। ऐसी नस्ल के कुत्तों की बढ़ती तादाद पूरे रायपुर शहर के लिए खतरे का सबक बनती जा रही है !
पशु चिकित्सकों का मानना है कि कोई भी पशु हिंसक तभी होता है जब उसकी जरूरत पूरी नहीं होती है। स्ट्रीट डॉग को खाना सही ढंग से नहीं मिलता और जब वे भूखे प्यासे रहते हैं तो ऐसी स्थिति में वे किसी पर हमला करते हैं। हालांकि रायपुर में बहुत से NGO स्ट्रीट डॉग के लिए काम कर रहे हैं। वह रोजाना सुबह-शाम सड़कों पर आवारा कुत्तों को खाना देते हैं।
ऐसी एनजीओ का स्थानीय जनता कई जगह विरोध करती है क्योंकि पशु प्रेमी तो अपना काम कर रहे हैं लेकिन आवारा कुत्तों की खूंखार होने से आम जनता की जान को जो खतरा हो गया है उसका समाधान नहीं मिल रहा है।
यदि रायपुर में ऐसी विषम हाल से निपटने के लिए नगर निगम में कोई ठोस को हल नहीं की तो हालात और खराब हो सकते हैं।