छत्तीसगढ़ में नकली होलोग्राम और शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर और अरुणपति त्रिपाठी को मेरठ जेल से प्रोडक्शन वारंट पर रायपुर लाया गया है। दोनों को आज रायपुर की स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया। जहां ED दोनों की रिमांड मांग सकती है। जानकारी के मुताबिक दोनों आरोपियों को यूपी से प्रिजन वैन से रायपुर के ED दफ्तर में लाया गया। वैन में CCTV कैमरा, वाइस रिकॉर्डर और जीपीएस सिस्टम भी लगा है। जिससे उनकी निगरानी की गई।
18 जून को यूपी STF ने किया था गिरफ्तार
शराब घोटाले मामले में EOW ने अनवर को गिरफ्तार कर पूछताछ के बाद न्यायिक रिमांड पर रायपुर जेल भेज दिया था। इसी बीच हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद अनवर ढेबर को जेल से बाहर आते ही 18 जून की रात यूपी एसटीएफ की टीम ने प्रोडक्शन वारंट पर गिरफ्तार कर लिया था।
19 जून को अपने साथ ले गई थी। वहीं, न्यायिक रिमांड पर जेल भेजे गए एपी त्रिपाठी को भी साथ लेकर गई थी। तब से दोनों मेरठ जेल में बंद थे।
शराब घोटाले में ED करेगी पूछताछ
शराब घोटाले मामले में अप्रैल 2024 को ED ने नई ECIR दर्ज की थी। जिसके बाद रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा को गिरफ्तार कर पूछताछ की और बाद में न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया था। लेकिन ED अनवर और एपी त्रिपाठी को हिरासत में लेकर पूछताछ नहीं कर पाई थी।
2 जुलाई को कोर्ट में चार्टशीट पेश
छत्तीसगढ़ में 2000 करोड़ के लीकर स्कैम में जुलाई के पहले हफ्ते में PMLA स्पेशल अदालत में चार्जशीट पेश की थी। ED ने 10 हजार पन्नों के साथ 200 पेज का आरोप पत्र भी पेश किया था। जिसमें रिटायर्ड IAS अनिल टुटेजा, कारोबारी अनवर ढेबर, त्रिलोक ढिल्लन और आबकारी विभाग में अधिकारी रह चुके एपी त्रिपाठी को घोटाले का मास्टर माइंड बताया था।
इन दस्तावेजों में बताया गया है कि इन लोगों ने मिलकर सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग करते हुए बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया। चार्जशीट में इस बात का भी जिक्र है कि इन रुपए को कुछ राजनीतिक साझेदारी के साथ बांटा भी गया। चार्जशीट में कारोबारियों और अधिकारियों के बीच हुए वॉट्सऐप चैट से लेकर शराब घोटाले के सिंडिकेट के बीच कामकाज का ब्योरा भी है।
एक साल पहले AAP ने कहा था- ये 9000 करोड़ का घोटाला
छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले मामले पर एक साल पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को घेरा था। तब पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कोमल हूपेंडी ने कहा था कि, प्रदेश में 2 हजार करोड़ का नहीं, बल्कि 9 हजार करोड़ से अधिक का शराब घोटाला हुआ है। हूपेंडी ने दस्तावेजों के साथ महासमुंद जिले का उदाहरण भी दिया।
उन्होंने बताया था कि इस मामले को लेकर पार्टी के सह सचिव अभिषेक जैन ने 2 जुलाई 2020 को कलेक्टर महासमुंद से शिकायत की थी। इसमें बताया गया कि जिले के सरकारी शराब दुकानों में अवैध रूप से बिना परमिट के डुप्लीकेट सरकारी हॉलमार्किंग वाली शराब उत्पादक से सीधे शराब दुकानों में खाली होती है और बिना स्कैनिंग के उसे बेचा जाता है।
अब जानिए क्या है शराब घोटाला…
पार्ट A के तहत IAS अनिल टुटेजा और कारोबारी अनवर ढेबर को शामिल किया गया है। ED की FIR के मुताबिक अवैध वसूली के मुख्य आरोपी अनवर ढेबर को IAS की नजदीकियों का पूरा फायदा मिला। CSMCL के MD के रूप में अरुणपति त्रिपाठी की नियुक्ति IAS अफसर के प्रभाव की वजह से ही हो सकी।
राज्य की नौकरशाही में प्रभाव के कारण, IAS ने अनवर ढेबर और बाकी अधिकारियों के जरिए महत्वपूर्ण नियुक्तियों और सिंडिकेट को नियंत्रित किया। वहीं अनवर ढेबर वो व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे कैश कलेक्शन को नियंत्रित किया। इसके अलावा सिंडिकेट को संरक्षण देने का काम पूर्व IAS विवेक ढांढ ने किया। जिन्हें अवैध राशि का शेयर दिया जाता था।
ढेबर के करीबियों को FL10A लाइसेंसधारी, मैनपावर, कैश कलेक्शन जैसे सभी महत्वपूर्ण जगहों पर रखा गया। उनके सहयोगियों ने हजारों करोड़ रुपए का कमीशन कलेक्ट किया। ED की FIR में IAS के बेटे यश का भी नाम है।
सिंडिकेट के पार्ट B थे अरुणपति त्रिपाठी
CSMCL के MD अरुणपति त्रिपाठी को अवैध शराब की बिक्री रोकनी थी लेकिन नियुक्ति के बाद वे रिश्वत-कमीशन को लेकर सिंडिकेट का हिस्सा हो गए। देशी शराब की एक केस पर 75 रुपए कमीशन दिया जाना था। जिसे त्रिपाठी डिस्टिलर और सप्लायर से कमीशन लेकर इसका हिसाब रखते थे। इसके बाद उसे अनवर ढेबर को दिया जाता था।
बदल दी गई आबकारी नीति
ED ने अपनी चार्जशीट में बताया था कि किस तरह रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर के आपराधिक सिंडिकेट के जरिए आबकारी विभाग में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ। ED ने चार्जशीट में कहा है कि पहले साल 2017 में बनी आबकारी नीति को बदलकर CSMCL के जरिए शराब बेचना शुरू किया गया था।
लेकिन 2019 के बाद अनवर ढेबर ने अरुणपति त्रिपाठी को CSMCL का MD नियुक्त कराया, उसके बाद अधिकारी, कारोबारी, राजनीतिक रसूख वाले लोगों के सिंडिकेट के जरिए भ्रष्टाचार किया गया। जिससे 2161 करोड़ का घोटाला हुआ।
चार्जशीट के मुताबिक, बीजेपी सरकार के समय ये नियम बनाया गया था कि सभी एजेंसियों से शराब खरीदी कर इसे दुकानों में बेचा जाएगा। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने इसे बदलकर अपने खास फर्मों को सप्लाई की जिम्मेदारी दे दी।
आर्किटेक्ट ऑफ लिकर स्कैम
ED ने अनिल टुटेजा की गिरफ्तारी के कई आधार बताए थे। ED ने कहा था कि शराब घोटाले में अनवर ढेबर ने सिंडिकेट बनाया और उस सिंडिकेट को सबसे ज्यादा पावर अनिल टुटेजा से मिलती थी, जो कंट्रोलर की भूमिका में थे। ED ने उन्हें आर्किटेक्ट ऑफ लिकर स्कैम बताया था।
तत्कालीन आबकारी मंत्री और आयुक्त को मिलते थे 50-50 लाख
ये पूरा सिंडिकेट सरकार के इशारों पर ही चलता रहा। तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी इसकी जानकारी थी और कथित तौर पर कमीशन का बड़ा हिस्सा आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास भी जाता था। चार्जशीट के मुताबिक मंत्री कवासी लखमा और तत्कालीन आबकारी आयुक्त निरंजन दास को 50-50 लाख हर महीने दिए जाते थे।
अब जानिए शराब केस में नकली होलोग्राम मामला
FIR के मुताबिक, नोएडा स्थित PHSF नाम की कंपनी को टेंडर मिला था। यह टेंडर छत्तीसगढ़ के एक्साइज डिपार्टमेंट ने होलोग्राम की आपूर्ति करने के लिए अवैध रूप से दिया गया। कंपनी टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र नहीं थी।
आरोप है कि, आबकारी विभाग के विशेष सचिव AP त्रिपाठी, तत्कालीन आबकारी कमिश्नर निरंजन दास, तत्कालीन IAS अनिल टुटेजा ने टेंडर के लिए उसकी शर्तों में संशोधन किया। बदले में कंपनी के मालिक विधु गुप्ता से प्रति होलोग्राम 8 पैसे का कमीशन लिया गया। छत्तीसगढ़ में सरकारी दुकानों से अवैध देसी शराब की बोतल बेचने के लिए बेहिसाब डूप्लीकेट होलोग्राम लिए गए।
फर्जी ट्रांजिट पास से होती थी सप्लाई
टेंडर मिलने के बाद विधु गुप्ता डूप्लीकेट होलोग्राम की सप्लाई छत्तीसगढ़ के सक्रिय सिंडिकेट को करने लगा। यह सप्लाई CSMCL के तत्कालीन एमडी अरुणपति त्रिपाठी के निर्देश पर हुई। सिंडिकेट के सदस्य डूप्लीकेट होलोग्राम को विधु गुप्ता से लेकर सीधे तीनों शराब निर्माता कंपनियों को पहुंचा देते थे।
इन डिस्टलरीज में होलोग्राम को अवैध शराब की बोतलों पर चिपकाया जाता था। इसके बाद अवैध बोतलों को फर्जी ट्रांजिट पास के साथ CSMCL की दुकानों तक पहुंचाया जाता था। फर्जी ट्रांजिट पास का काम छत्तीसगढ़ के 15 जिलों के आबकारी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की ओर से होता था।
तीन साल तक हर महीने 400 ट्रक अवैध शराब बेची
इन दुकानों पर गैंग के कर्मचारी रहते थे। जो अवैध शराब को असली शराब के साथ बेच देते। इसका पैसा अलग से इकट्ठा करते। अवैध शराब से आया पैसा गैंग सदस्य अलग से कलेक्ट करते। इसके बाद पैसे को बड़े अधिकारियों के पास पहुंचाया जाता। गैंग में शामिल सभी सदस्यों का कमीशन फिक्स था। 2019 से 2022 तक हर महीने 400 ट्रक की अवैध शराब की सप्लाई की गई।