गजब का हौसला! 8 प्रत्याशी ऐसे भी जिनकी चल-अचल संपत्ति है ही नहीं, फिर भी लड़ गए चुनाव…!

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विधानसभा चुनाव के दोनों चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं। 90 सीटों पर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों और ढेरों निर्दलीयों ने चुनाव लड़ा है। इनमें से पांच प्रत्याशियों की कुल संपत्ति शून्य है। तीन ऐसे प्रत्याशी भी हैं, जिन्होंने संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। आयोग में जमा हलफनामे के आधार पर इनकी प्रापर्टी की कुल वैल्यू 500 से 1500 रुपए निकाली गई है। चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी को प्रचार-प्रसार सामग्री और जनसंपर्क के दौरान खाने-पीने को लेकर कुछ खर्च करने पड़ते हैं। इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए ही आयोग ने प्रत्याशियों के लिए खर्च की अधिकतम सीमा 40 लाख रुपए तय की है।

यानी एक प्रत्याशी इतना अधिकतम खर्च कर सकता है। इसलिए प्रत्याशी को आर्थिक रूप से भी मजबूत होने की आशा की जाती है। राष्ट्रीय और बड़ी पार्टियां अपने प्रत्याशियों के लिए कुछ फंड देती है, लेकिन निर्दलीय और छोटी पार्टियों के प्रत्याशियों को चुनाव खर्च के लिए पैसे खुद ही जुटाने होते हैं। ऐसे में उनकी संपत्ति के आधार पर प्रत्याशी की आर्थिक संपन्नता का अनुमान लगाया जाता है। चुनाव आयोग में नामिनेशन के दौरान प्रत्याशियों को शपथ-पत्र में अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है। राज्य में सबसे ज्यादा संपत्ति अंबिकापुर से कांग्रेस प्रत्याशी टीएस सिंहदेव ने 500 करोड़ से अधिक घोषित की है। इसके विपरीत पांच प्रत्याशियों ने शपथ-पत्र में शून्य संपत्ति घोषित की है।

शून्य संपत्ति वालों में दो महिलाएं भी

शून्य संपति घोषित करने वाले उम्मीदवारों में दो नाम महिलाएं है। इनमें एक कांकेर से आजाद जनता पार्टी की प्रत्याशी पार्वती तेता और भटगांव से निर्दलीय कलावती सारथी हैं। इसी तरह रायगढ़ सीट से लड़ने वाली आजाद जनता पार्टी की उम्मीदवार कांति साहू की कुल संपत्ति 1000 रुपए है। इनमें तीन निर्दलीय हैं और पांच क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार हैं।

हारे तो अमानत राशि होगी जब्त

इन पांच प्रत्याशियों को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव नामांकन फार्म भरने के लिए इन्हें 10 हजार रुपए भी उधार लेने पड़े होंगे। अगर ये हारते हैं तो ये उधार वो कहां से चुकाएंगे?

गलत जानकारी की जांच सिर्फ शिकायत पर

विशेषज्ञों का कहना है कि नॉमिनेशन फार्म में दी गई जानकारियों को चुनाव आयोग स्वीकार कर लेता है। इसकी जांच इत्यादि तब तक नहीं होती, जब तक किसी प्रत्याशी के संबंध में आयोग को किसी तरह की शिकायत प्राप्त नहीं हो।

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