भास्कर एक्सप्लेनर- क्या राज्यपाल बर्खास्त करेंगे ममता की सरकार

Spread the love

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या मामले में घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए ममता सरकार पर कई सवाल खड़े किए।

सवाल-1: सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता रेप और मर्डर केस में पश्चिम बंगाल सरकार को कैसे आड़े हाथों लिया?
जवाबः सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा…

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल सरकार से कानून-व्यवस्था बनाए रखने और घटनास्थल को सुरक्षित रखने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन ये समझ नहीं आ रहा कि राज्य ऐसा करने में क्यों फेल रहा।’
  • पेरेंट्स को पीड़िता का शव देरी से क्यों सौंपा गया और उपद्रवियों को अस्पताल में कैसे घुसने दिया गया?
  • ऐसा लगता है कि तड़के क्राइम का पता चलने के बाद प्रिंसिपल ने इसे सुसाइड बताने की कोशिश की।
  • पश्चिम बंगाल सरकार को अपनी शक्ति का प्रयोग प्रदर्शनकारियों पर नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह नेशनल लेवल पर आत्म-चिंतन का समय है।
  • अदालत ने आरजी कर के प्रिंसिपल की दूसरे कॉलेज में नियुक्ति पर सवाल उठाया, जबकि उनका आचरण अभी भी जांच के दायरे में है।
  • अदालत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि पीड़िता की पहचान, उसका नाम और फोटो सार्वजनिक रूप से उजागर कर दिए गए हैं।

डॉक्टर से रेप और हत्या मामले में ममता सरकार पहले ही कठघरे में थी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद आम लोगों में ममता सरकार के खिलाफ परसेप्शन को मजबूती मिलेगी।

सवाल-2: इस पूरे मामले में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी बोस क्या कर रहे हैं?
जवाबः 9 अगस्त 2024 की घटना के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस लगातार एक्टिव नजर आए…

15 अगस्त 2024ः राज्यपाल आरजी कर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। घटनास्थल का जायजा लेने के बाद यहां उन्होंने प्रदर्शनकारी डॉक्टरों को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया।

17 अगस्त 2024ः राज्यपाल ने कहा, ‘मैं पीड़ित परिवार से मिलना चाहता हूं। मैं उनके साथ हूं और हर संभव मदद के लिए तैयार हूं।’ साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस और हेल्थ दोनों विभाग किसके हाथ में है…यदि CM के हाथ में है तो यह उनका फेलियर है।

19 अगस्त 2024ः राज्यपाल ने कहा, ‘कोलकाता का आरजी कर सिर्फ टिप ऑफ द आइसबर्ग है। पूरे पश्चिम बंगाल के हालात खराब हैं। पश्चिम बंगाल एक सॉफ्ट स्टेट हो गया है।’ राष्ट्रपति शासन के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन के बारे में मैं कुछ नहीं बोल सकता, लेकिन अपनी बात तो मैं रखूंगा ही सही जगह पर। राष्ट्रपति से क्या कहूंगा ये मैं बाहर नहीं कह सकता।

20 अगस्त 2024ः राज्यपाल ने ट्रेनी डॉक्टर के पिता से फोन पर बात की और उन्हें न्याय का भरोसा दिलाया। वह दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और फिर गृहमंत्री अमित शाह से मिले। उन्होंने कहा कि कोलकाता के रेप केस और लॉ एंड ऑर्डर को लेकर उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है। वह दिल्ली में ये रिपोर्ट राष्ट्रपति और गृहमंत्री को सौंपेंगे।

सवाल-3: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के पास क्या-क्या विकल्प हैं?
जवाबः राज्यपाल ने अपने बयानों में राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ने की बात कही है। जानकार इसे राष्ट्रपति शासन का इशारा मानते हैं। अगर किसी राज्यपाल को लगता है कि उसके प्रदेश में कानून व्यवस्था सही नहीं है तो वो राष्ट्रपति और केंद्र सरकार को हालात की रिपोर्ट भेजता है। केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं…

पहला– वो कानून व्यवस्था अपने हाथ में ले ले। दूसरा– प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।

दोनों ही परिस्थितियों में फैसला लेने का अधिकार संविधान के भाग 18 के तीन आर्टिकल्स में किया गया है…

1. आर्टिकल 355: केंद्र सरकार बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से किसी भी राज्य की रक्षा के लिए कानून व्यवस्था अपने हाथों में ले सकती है।

2. आर्टिकल 356: इसके तहत इन परिस्थितियों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात कही गई है…

  • जब राज्य विधानसभा में कोई भी दल बहुमत ना सिद्ध कर सके।
  • आपातकालीन स्थिति जैसे बाढ़, महामारी, युद्ध, हिंसा या प्राकृतिक आपदा के चलते समय पर विधानसभा नहीं होने पर।
  • अगर सरकार का सदन में संख्या बल कम हो जाता है और वह बहुमत खो देती है तो उस स्थिति में।
  • अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति को लगे कि राज्य सरकार संविधान के अनुरूप शासन चलाने में समर्थ नहीं है या संविधान के मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है।

3. आर्टिकल 365: जब किसी राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो जाए तो राष्ट्रपति अपनी पावर का इस्तेमाल करके वहां राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।

सवाल-4: क्या पश्चिम बंगाल में हालात इतने खराब हैं कि राष्ट्रपति शासन लगाया जा सके?
जवाबः पश्चिम बंगाल के केस में दो स्थितियों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है…

1. अगर राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट को स्वीकार कर लें कि राज्य सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चल रही है।

2. केंद्र सरकार की ओर से जो निर्देश दिए गए हैं, उसका पालन करने या उसे लागू करने में राज्य विफल रहता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक कोलकाता रेप मामले में राज्य सरकार की विफलता के बाद हाईकोर्ट ने मामले को राज्य पुलिस से CBI को ट्रांसफर कर दिया है। इसके बाद मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के साथ सरकार की साठगांठ, भीड़ का हमला और सबूतों को नष्ट करने की साजिश के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बेंच ने राज्य सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणियां की हैं।

संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने की परिस्थितियों और वैधता के बारे में सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों में विस्तार से चर्चा की गई है। उनके अनुसार किसी एक मामले में प्रशासन और पुलिस की विफलता के आधार पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई भी प्रस्ताव असंवैधानिक होगा।

इससे पहले भी कोर्ट ने कहा है कि कानून और व्यवस्था के कुछ मोर्चों में प्रशासन और पुलिस की विफलता को संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत राज्य में संवैधानिक मशीनरी की विफलता नहीं माना जा सकता।

संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत कानून व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन डॉक्टरों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को हर दो घंटे में अपडेट भेजने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने अनेक महत्वपूर्ण तर्क दिए हैं। उन्होंने कहा है कि रेप मामले की निष्पक्ष जांच और कानून व्यवस्था की बहाली के लिए नए पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति होनी चाहिए। राष्ट्रपति शासन लगाने की बात में अभी ज्यादा दम नहीं लगता है।

सवाल-5: अगर राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश हुई, तो ममता सरकार के पास क्या विकल्प है?
जवाबः वकील विराग गुप्ता के मुताबिक संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति अधिकांश मामलों में केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर ही काम करते हैं। कुछ दिनों पहले राज्यपालों के सम्मेलन और उसमें हुई चर्चा के अनुसार राज्यपालों की भूमिका और अधिकारों का क्रमशः विस्तार हो रहा है।

इसलिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केंद्र सरकार और राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंप सकते हैं, लेकिन राज्यपाल की दिल्ली यात्रा या उनकी रिपोर्ट को फिलहाल आर्टिकल-355 या 356 के तहत केंद्र सरकार की भूमिका के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उसके दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अगर कोई पहल होती है तो ममता सरकार केंद्र सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है।

सवाल-6: राष्ट्रपति शासन लगने से राज्य में क्या-क्या बदल जाता है?
जवाबः किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर वहां सरकार और शासन के स्तर पर कुछ इस तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं…

  • एक चुनी हुई सरकार के बजाय राष्ट्रपति या उनके प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल प्रदेशों में शासन और प्रशासन चलाते हैं। इस काम में उनकी मदद मुख्य सचिव और अन्य अधिकारी करते हैं।
  • राष्ट्रपति के आदेश पर राज्य विधान सभा को निलंबित या भंग किया जाएगा।
  • राष्ट्रपति एक नोटिफिकेशन जारी कर राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप सकते हैं। इसके बाद संसद राज्य के बजट को पेश करने के अलावा कोई महत्वपूर्ण कानून भी बना सकती है।
  • जब संसद सत्र भी नहीं चल रहा होता है तो राष्ट्रपति राज्य के प्रशासन के संबंध में अध्यादेश जारी कर सकते हैं।

सवाल-7: किसी राज्य में अधिकतम कितने दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लग सकता है?
जवाबः केंद्र के पास 6 महीने तक राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार है। अगर 6 महीने से ज्यादा समय के लिए आगे बढ़ाना हो तो संसद के दोनों सदनों से मंजूरी लेना जरूरी है। इसे हर 6 महीने में संसद की मंजूरी से आगे बढ़ाया जा सकता है।

सवाल-8: मोदी सरकार ने इससे पहले किन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया?
जवाबः 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अब तक 10 बार आर्टिकल 356 का इस्तेमाल हो चुका है। इससे पहले मनमोहन सिंह सरकार के समय में 9 राज्यों में 10 बार राष्ट्रपति शासन लगाए गए थे। मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में अलग-अलग राज्यों में कुल 1518 दिन राष्ट्रपति शासन लगे थे।

राष्ट्रपति शासन लगाने पर मोदी सरकार को दो बार झटका लगा…

पहला: अरुणाचल प्रदेश में सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा
दिसंबर 2014 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री कालिखो पुल को मंत्रिमंडल से हटा दिया। इसके बाद से वहां की राजनीति गरमा गई। बढ़ते विवादों के बीच 16 दिसंबर, 2015 को नबाम तुकी सरकार ने विधानसभा भवन पर ताला जड़ दिया। समय से पहले आयोजित विधानसभा सत्र की बैठक दूसरे भवन में कराई गई। बैठक में 33 विधायकों ने हिस्सा लिया, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाने का प्रस्ताव पारित हुआ और नया अध्यक्ष नियुक्त कर लिया गया। 17 दिसंबर, 2015 को बागी विधायकों ने होटल में ही विधानसभा सत्र बुला लिया और मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ मतदान किया। फिर कालिखो पुल को मुख्यमंत्री बनाया गया। जनवरी 2016 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिसके बाद केस को संविधान पीठ को सौंप दिया गया। इस बीच, 26 जनवरी को मोदी मंत्रिमंडल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में केंद्र द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश के संबंध में राज्यपाल की रिपोर्ट मांगी। 11 फरवरी को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा स्पीकर की शक्तियां नहीं छीन सकता है। 19 फरवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन समाप्त हो गया। कालिखो पुल फिर से मुख्यमंत्री बन गए।

दूसरा मौका: जब उत्तराखंड में मोदी सरकार के फैसले को कोर्ट ने पलटा
मार्च 2016 में उत्तराखंड में हरीश रावत की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार उस समय अल्पमत में आ गई जब विजय बहुगुणा के नेतृत्‍व में कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए। बागी गुट भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल गया।

मुख्‍यमंत्री हरीश रावत को बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च तक का वक्‍त दिया गया, लेकिन इससे पहले ही गर्वनर की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की, जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वीकार कर लिया। फैसले के खिलाफ राज्य सरकार उत्तराखंड हाईकोर्ट चली गई, जहां कोर्ट ने केंद्र के फैसले को गलत ठहराया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और वहां भी मोदी सरकार के फैसले को गलत करार दिया गया। सरकार के बहुमत के लिए विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराया गया और मई में हरीश रावत सरकार बच गई। पूरी प्रक्रिया में केंद्र की खासी किरकिरी हुई थी। इसी तरह निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने वाले फैसले को 13 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। हालांकि, मोदी सरकार ने कानून व्यवस्था के आधार पर आर्टिकल 356 का इस्तेमाल कर किसी भी चुनी हुई सरकार को बर्खास्त नहीं किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *