इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन की कहानी

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तीन जुलाई 2007 को हिंसा की शुरुआत तब हुई, जब इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में पढ़ रहे छात्रों ने पास के एक दफ़्तर पर हमला कर दिया. उस दौरान उनकी वहाँ तैनात पुलिसवालों से झड़प हुई.

पुलिस ने छात्रों को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़े. लाल मस्जिद में घिरे हुए छात्रों ने इसका जवाब ऑटोमैटिक हथियारों से गोलीबारी करके दिया. इसमें एक गोली लांस नायक मुबारिक हुसैन को लगी और उनकी मौत हो गई. लाल मस्जिद साल 1965 में तैयार हुई थी. कुछ लोगों का मानना है कि इसका नाम लाल मस्जिद इसलिए रखा गया क्योंकि इसकी दीवारें लाल रंग से रंगी हुई हैं लेकिन कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि इसका नाम सम्मानित सिंधी सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लंदर के नाम पर रखा गया था.

शुरुआत से ही ये मस्जिद कराची के कट्टरपंथी धार्मिक विचारक जामिया बिनोरिया के कार्यकलापों का केंद्र रही. इसको पाकिस्तान की ‘जिहाद फ़ैक्ट्री’ का भी नाम दिया गया क्योंकि कई कट्टरपंथी नेता जैसे जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अज़हर और पाकिस्तान तालिबान के कमांडर अब्दुल्लाह महसूद यहीं से निकले थे. इमेज कैप्शन,मौलाना राशिद गाज़ी ने इमाम बनने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन अपने कई गुणों की वजह से लाल मस्जिद के सार्वजनिक चेहरा बन गए. अब्दुल अज़ीज़ अपने पिता के आज्ञाकारी बेटे थे, इसलिए उन्होंने बचपन से ही धर्म का रास्ता चुना. राशिद जन्म से ही विद्रोही थे. वो पश्चिमी कपड़े पहनते थे. उन्होंने इस्लामाबाद के क़ायदे आज़म विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की डिग्री ली.

बाद में वो यूनेस्को में सहायक निदेशक हो गए. उनके पिता उनसे इतने खिन्न हुए कि उन्होंने अपनी वसीयत में अपने बड़े बेटे को अपनी पूरी संपत्ति का वारिस घोषित कर दिया था. जब 1998 में मौलाना अब्दुल्लाह की हत्या कर दी गई और उनके हत्यारों को कोई सज़ा नहीं मिली तो राशिद का जीवन एक तरह से बदल सा गया. वो एकदम से धार्मिक हो गए और लाल मस्जिद के प्रशासन में अपने भाई मौलाना अब्दुल अज़ीज़ का हाथ बँटाने लगे. उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली और पाँचों वक्त की नमाज़ पढ़ने लगे. हालांकि उन्होंने इमाम बनने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन उनके विश्लेषणात्मक कौशल, मृदुभाषी शख़्सियत और अंग्रेज़ी बोलने की क्षमता ने उन्हें लाल मस्जिद का सार्वजनिक चेहरा बना दिया. 20 मार्च, 2007 में ‘गार्डियन’ में ‘द बिज़नेस इज़ जेहाद’ शीर्षक से प्रकाशित अपने लेख में डिलन वेल्श ने लिखा, ‘राशिद ने दावा किया कि वो अपने पिता के साथ कंधार में ओसामा बिन लादेन से मिले थे. बैठक के बाद उन्होंने उस गिलास से उठाकर पानी पी लिया, जिससे लादेन पानी पी रहे थे.

लादेन ने मुस्कराते हुए उसने पूछा कि उन्होंने ये हरकत क्यों की?

गाज़ी का जवाब था- मैंने आपके गिलास से पानी इसलिए पिया ताकि अल्लाह मुझे आप जैसा बहादुर बना दे.’

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