सीएम साय बोले-वन नेशन वन इलेक्शन से खर्च बचेगा:कहा- बार-बार आचार संहिता लगने से विकास रुकता है; सिंहदेव ने बताया था असंभव…!!

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देश में वन नेशन वन इलेक्शन की चर्चा जोरो पर है। इस पर छत्तीसगढ़ में भी सियासी दिग्गजों के बीच बयानबाजी हो रही है। गुरुवार को वन नेशन वन इलेक्शन को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एक अच्छा फैसला बताया है। उन्होंने इसे लागू करने का समर्थन किया। जबकि एक दिन पहले छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी CM टीएस सिंहदेव ने कह दिया था ये करना असंभव है।

मीडिया से चर्चा में गुरुवार को CM विष्णुदेव ने कहा कि इससे देश को बहुत लाभ होगा। एक तो समय की बचत होगी, खर्च की बचत होगी। जो बार-बार चुनाव होता है आचार संहिता लगती है तो विकास रुकता है। यदि लोकसभा-विधानसभा का चुनाव एक साथ संपन्न हो जाएगा तो निश्चित रूप से इस प्रदेश को बहुत बड़ा लाभ होगा।

यह संभव ही नहीं- टीएस सिंहदेव

देश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव (वन नेशन वन इलेक्शन) कराने के प्रस्ताव को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस पर छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इसे असंभव बताया है। उन्होंने कहा कि, यह प्रैक्टिकली नजर नहीं आ रहा है। आज के समय में संविधान में जो व्यवस्थाएं हैं, उसके तहत यह संभव ही नहीं है।

सिंहदेव ने कहा कि, सरकारों का कार्यकाल 5 साल होगा। मान लीजिए 1 जनवरी 2025 को वन नेशन वन इलेक्शन के तहत सरकार बन जाती है, तो उन राज्यों का क्या होगा, जहां पर सरकार बीच में गिर जाती है। हो सकता है कि सरकार 2 साल बाद अगर गिर जाए, तो उनके लिए क्या किया जाएगा? अगला इलेक्शन तो 5 साल बाद होगा तो उन राज्यों का क्या होगा?

क्या हुआ मोदी कैबिनेट में

18 सितंबर 2024 को मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसका बिल शीतकालीन सत्र यानी नवंबर-दिसंबर में संसद में पेश किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि एक साथ चुनाव दो फेज में होंगे। पहले फेज में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे और दूसरे फेज में सभी निकाय चुनाव। यदि कोई विधानसभा समय से पहले भंग हो जाती है, तो सिर्फ बचे हुए कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएं, जिससे फिर सभी चुनाव एक साथ हो सकें।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?

भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

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