अंबेडकर अस्पताल में जीरियाट्रिक्स यानी बुजुर्गों के इलाज का अलग वार्ड। वक्त सुबह 10.30 बजे। गेट के पास काउंटर पर 3 नर्स बैठी हैं। उनमें से एक मरीजों की पर्ची बना रही है। बाजू टेबल पर बुजुर्ग मरीज बैठे हैं। आगे एक कमरे के बाहर मेडिसिन लिखा है। यहां एक जूनियर डॉक्टर मरीजों की जांच कर रहे हैं। महिला बुजुर्ग ने हाथ-पैर में दर्द की तकलीफ बताई। कहा- चल नहीं पा रही हूं। डाक्टर ने कहा- इसका इलाज बड़ी ओपीडी में होगा। उसने पर्ची लौटाई और वहीं जाने कहा। दर्द के बावजूद बुजुर्ग धीरे-धीरे चलकर बाहर आईं। फिर करीब 100 मीटर दूर अंबेडकर अस्पताल की ओपीडी पहुंची।
जहां करना था इलाज, उस कमरे से बांट रहे हैं दवाइयां
जीरियाट्रिक्स वार्ड के एक कमरे के बाहर नाक, कान और गला विभाग लिखा है। कमरे के भीतर पहुंचने पर पता चला यहां इलाज होना बंद हो गया है। अब इस कमरे का उपयोग बुजुर्गों को दवा बांटने के लिए किया जा रहा है। कमरे में एक फ्रिज और एक बड़ा टेबल दिखाई दिया। उसमें दवाइयों का ढेर था। एक टेबल पर बुजुर्ग मरीज बैठे थे।
कर्मचारी हाथ में पर्ची लेकर उनके लिए दवा निकाल रहा था। दवा लेने बैठे बुजुर्ग और कर्मचारी के बीच में कुछ कहासुनी हो रही थी। बुजुर्ग कह रहे थे कि आपने जिस दिन बुलाया हम उसी दिन आए हैं, उसके बाद भी हमारी दवाई नहीं मिल रही है। अंदर बैठा कर्मचारी कह रहा था कि आपको मैंने कल आने कहा था, आप एक दिन पहले ही आ गए हैं। इसलिए पूरी दवाई नहीं आ पाई। आप कल आइए। बुजुर्ग कह रहे थे, बार-बार आना-जाना कर परेशान हो जाता हूं। आप ढूंढ़कर दीजिए। अंत में उन्हें दवाई नहीं मिली। बुजुर्ग मन मसोसकर चले गए।
मनोरोग, हड्डी रोग के कमरे की टेबल कुर्सी मिली खाली जीरियाट्रिक्स वार्ड के एक कमरे के बाहर हड्डी रोग, मनोरोग और सर्जरी लिखा है। पर्दा भी लगा है। पर्दा हटाने पर कमरे का दरवाजा बंद मिला। दरवाजा खोलकर देखने पर कमरे में अंधेरा नजर आया। लाइट चालू करने पर एक टेबल पर दो छोटी पर्ची कॉपियां, तीन कुर्सी एक खंड में लगी थीं। वहीं दूसरे खंड में दो कुर्सी और एक टेबल रखा था। देखने से लग रहा था कई दिनों से कमरा खोला ही नहीं गया है।
मशीनें खरीदीं, अभी तक उपयोग नहीं इसलिए खराब
पड़ताल के दौरान पता चला कि जीरियाट्रिक्स वार्ड की ओपीडी में लगी एक्स-रे मशीन खराब हो गई। इसकी खरीदी करने के बाद से आज तक इसे इंस्टॉल नहीं किया गया है। इस वजह से यह उपयोग में नहीं आ रही है। पैथालॉजी लैब के उपकरण कैसे हैं, ये किसी को पता नहीं। क्योंकि कई दिनों से इनका उपयोग ही नहीं किया गया है। ईसीजी मशीन भी ताले में बंद है। यहां हर माह औसतन 10 हजार बुजुर्ग मरीज आते हैं।
अस्पताल में सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं इसकी जवाबदारी डीन की हैं। उन्हें ही इसकी व्यवस्था बनानी है। ऐसा नहीं हो रहा है तो हम रिपोर्ट लेंगे। यूएस पैकरा, चिकित्सा शिक्षा संचालक
अस्पताल की व्यवस्था देखने का काम अधीक्षक है। कहां-क्या कमी है वे ही बता सकते हैं। फिलहाल मुझे इसकी जानकारी नहीं है। डॉ. तृप्ति नागारिया, डीन मेडिकल कॉलेज रायपुर