26-27 अक्टूबर 2007 की रात। गिरिडीह जिले के चिलखारी मैदान में। करीब 15 हजार लोगों की भीड़ के बीच आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘जतरा’ चल रहा था। लोग नाच-गाने का आनंद ले रहे थे।
करीब 1 बजे मंच पर अचानक 15-20 लोग पुलिस की वर्दी में चढ़े। पहले कुछ पल तक इधर-उधर नजर दौड़ाई, फिर अचानक फायरिंग शुरू कर दी। पहले तो दर्शकों को लगा कि ये कोई नाटक का हिस्सा है, लेकिन कुछ ही पलों में हाहाकार मच गया और लोग बेतहाशा भागने लगे।
इसी दौरान 40-45 साल का एक वर्दीधारी शख्स माइक पर बोलता है, “भागो मत… हम तुम्हें मारने नहीं आए हैं। हमें बस बाबूलाल मरांडी का भाई नुनूलाल मरांडी चाहिए। वो जहां है, हमारे हवाले कर दे।” नुनूलाल सामने नहीं आए, तो नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।
सामने की कतार में बैठे 20 लोगों की तुरंत ही मौत हो गई। इनमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी भी शामिल थे। वर्दीधारी लोग असल में नक्सली थे, जिनका मकसद नुनूलाल को मारना था।
झारखंड के ‘महाकांडों’ की शृंखला में ‘चिलखारी नरसंहार’ को जानने के लिए मैं गिरिडीह जिले से लगभग 80 किलोमीटर दूर चिलखारी गांव पहुंचा…
चिलखारी गांव गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड में स्थित है, बिहार की सीमा के पास। यहां आदिवासी समुदाय के लोग बसे हैं। रास्ते में मेरे ड्राइवर ने बताया कि इलाके में अब काफी सुधार है, हालांकि, रात में अभी भी नक्सलियों का आना-जाना जारी है।
गांव के बाहरी क्षेत्र में मैदान वही है, जहां 17 साल पहले 20 लोगों की हत्या हुई थी। मैदान में उगी लंबी-लंबी घास और सूनेपन में एक भयानक सन्नाटा है। पहले इस मैदान में फुटबॉल टूर्नामेंट हुआ करते थे। हादसे के बाद यहां स्टेडियम बनाने का वादा किया गया था।
चिलखारी गांव के तीन कमरों का एक स्कूल है, जहां ताले लटके हैं। इसके बगल में एक खंडहरनुमा पुराना स्कूल है, जिसमें कभी मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम हुआ था।
गांव में मुंशी हेमराम से मुलाकात होती है। वो घटना को याद करते हुए बताते हैं, “मेरे सामने ही सब हुआ। नक्सली मंच पर चढ़े तो लगा कोई डायलॉग होगा, लेकिन उन्होंने गोली चला दी। लोग लुढ़कने लगे।”
इसके बाद मैं सुखू मास्टर के घर पहुंचा, जिनके बेटे की उस हादसे में जान गई थी। वो बताते हैं, “रात में पटाखे जैसी आवाज आई। बेटी भागकर आई और कहा भगदड़ मच गई है। जब बाहर निकला, देखा लोग इधर-उधर भाग रहे हैं। मेरा बेटा कुर्सी पर मरा पड़ा था।”
वह भावुक होकर बताते हैं, “आज भी मेरा बेटा सपनों में आता है।” उनके बेटे की पत्नी को सरकारी नौकरी और एक लाख रुपए मिले थे। वह अब गिरिडीह में रहती हैं।
घटना के दो साल बाद गांव के लोगों ने मृतकों के नाम पर फुटबॉल टूर्नामेंट कराने का फैसला किया, लेकिन अगले दिन धमकी मिली कि मृतकों को शहीद मानकर टूर्नामेंट किया तो अंजाम बुरा होगा।
जब मैंने नुनूलाल मरांडी से पूछा, तो उन्होंने बताया, “दिन में मैंने एसपी से सुरक्षा मांगी थी, पर नहीं मिली। रात के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुछ लोगों ने मुझे आगे बुलाकर पहचानने की कोशिश की। तभी नक्सली मंच पर आए और फायरिंग शुरू कर दी। मैं भाग निकला, पर मेरा भतीजा अनूप मारा गया।”
नक्सलियों का टारगेट नुनूलाल मरांडी थे। इसके पीछे वजह बताई गई कि बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री रहते नक्सलियों के खिलाफ ‘ग्राम रक्षा दल’ बनवाया था, जिसने ग्रामीणों को संगठित किया। नक्सली इससे नाखुश थे।
इसके पहले 11 सितंबर 2005 को भेलवाघाटी गांव में नक्सलियों ने ग्राम रक्षा दल के 17 लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी थी।