महाभारत, भारत का अनुपम और सबसे विशाल ग्रंथ है, जिसका अध्ययन न केवल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता का गहन स्रोत भी है। हालांकि, इसके बारे में एक भ्रांति फैलाई गई है कि इसे घर में रखने से कलह और अशांति होती है। यह विचार न केवल गलत है, बल्कि यह महाभारत की वास्तविकता से पूरी तरह विपरीत भी है।
महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी, लेकिन इसे भगवान गणेश ने अपने हस्ताक्षर से लिखा। भगवान गणेश, जो विघ्नहर्ता और क्लेशों को दूर करने वाले हैं, क्या उनके द्वारा लिखित ग्रंथ से किसी घर में अशांति हो सकती है? बिल्कुल नहीं। महाभारत में जीवन के चार प्रमुख पहलुओं—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—की गहरी समझ दी गई है, और इसे न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि समाज, राजनीति, न्याय, विज्ञान, और योग जैसे विषयों के संदर्भ में भी देखा जाता है।
यह ग्रंथ भारतीय समाज का मील का पत्थर है, जो न केवल धार्मिक और दार्शनिक विचारों का संकलन है, बल्कि इसमें राजनीति, समाजशास्त्र, विज्ञान, न्यायशास्त्र, चिकित्सा, और ज्योतिष जैसे विभिन्न विषयों का भी विस्तार से विवरण किया गया है। इसलिए महाभारत को घर में रखना और उसका अध्ययन करना भारतीय संस्कृति को समझने और उसे बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
महाभारत के शांति पर्व में जीवन के हर पहलु को सुसंगत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि जो जीवन के सभी पहलुओं को समझता है, वही वास्तव में जीवन के संघर्षों का समाधान खोज सकता है। अत: यह आवश्यक है कि महाभारत को न केवल घर में रखा जाए, बल्कि इसे समझकर पढ़ा जाए ताकि यह समाज को और भी समृद्ध और सशक्त बना सके।