अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे वाली याचिका ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया है। इस पर विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दरगाह का इतिहास 800 साल पुराना है और उस समय यह स्थल कच्चा था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गरीब नवाज के आगमन के समय यह स्थान कच्चा मैदान था और उस समय कब्र भी कच्ची थी।
उन्होंने कहा कि 150 साल तक दरगाह कच्ची थी, और अब यह पक्की है, इसलिए वहां मंदिर होने का सवाल ही नहीं उठता। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को अदालत के फैसले और लिखित कानून का पालन करना चाहिए, और दरगाह के वंशजों को मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया। वे यह भी कहते हैं कि मीडिया को शांति बनाए रखनी चाहिए और किसी भी विवादास्पद मामले में उनकी पत्नी का नाम घसीटना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
अजमेर दरगाह की ऐतिहासिक स्थिति पर कई दस्तावेज और रिपोर्टें मौजूद हैं, जिनमें 1950 में किए गए आयोग की जांच, 1829 में कमांडर साहब की रिपोर्ट, और जेम्स टॉड की किताब शामिल हैं, जो दरगाह के इतिहास को स्पष्ट करती हैं। 1961 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और अन्य सरकारी रिपोर्टें भी दरगाह के इतिहास और इसके धार्मिक महत्व को प्रमाणित करती हैं।
वहीं, अंजुमन दरगाह कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने भी कहा कि दरगाह एक आध्यात्मिक स्थल है, और धार्मिक स्थल अधिनियम सभी जगह लागू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी धार्मिक स्थान पर बिना ठोस प्रमाण के मामले उठाना उचित नहीं है।
अजमेर दरगाह में मंदिर होने के दावे की याचिका अब अदालत में सुनवाई के लिए रखी गई है, जिसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने याचिका दायर कर कहा है कि यह स्थल पहले शिव मंदिर था और यहां पूजा करने का अधिकार हिंदुओं को मिलना चाहिए।