लोकमंथन केवल आयोजन नहीं, एक आंदोलन है’’ -जे नंदकुमार

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लोकमंथन 2024 के सफल आयोजन के बाद प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक और लोकमंथन आयोजन समिति के महासचिव जे नंदकुमार से पाञ्चजन्य ने विस्तार से बातचीत की। इस चर्चा में उन्होंने लोकमंथन के आयोजन की विशिष्टताओं, इसके वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रभाव और भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान से जुड़ी अंतर्दृष्टियों को साझा किया। प्रस्तुत हैं उन्हीं विचारों के संपादित अंश:

लोकमंथन का चौथा संस्करण इस बार भाग्यनगर (हैदराबाद) में हुआ। इस आयोजन की विशेषताएं क्या रहीं? लोकमंथन, जो 2016 में भोपाल से शुरू हुआ था, अब भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जिसमें प्रतिभागियों की बढ़ती संख्या, विविध कला रूपों की प्रस्तुतियां और नए विषयों की चर्चाएं शामिल हैं। इसने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को बौद्धिक और सांस्कृतिक विमर्श के केंद्र में रखा है। पहले संस्करण का ध्यान ‘डिकोलोनाइजिंग इंडियन माइंड्स’ पर था, जो बाद में व्यापक रूप से चर्चा का विषय बना। रांची में आयोजित दूसरे संस्करण ने भारतीय मन की उपनिवेशवादी जकड़न से मुक्ति की बात की, जबकि गुवाहाटी में तीसरे संस्करण ने इस चर्चा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख बना दिया। अब यह आयोजन भारतीय संस्कृति और परंपराओं के सम्मान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

स्वदेशी कला और कलाकारों की गरिमा पुनर्स्थापित करने में लोकमंथन की भूमिका क्या रही है? लोकमंथन ने ‘लोक’ के परंपरागत अर्थ से परे स्वदेशी कला और कलाकारों की पहचान को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इसके कारण इन परंपराओं को मुख्यधारा में प्रमुख स्थान मिल रहा है। लोक शब्द को अब सिर्फ एक उपेक्षित कला के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह स्वदेशी संस्कृति की गहराई और गरिमा को पहचानने का प्रतीक बन गया है। लोकमंथन ने लोक कला को शास्त्रीय और आधुनिक कलाओं से अलग नहीं बल्कि एक समृद्ध, वैज्ञानिक और प्राकृतिक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया है।

‘लोकावलोकनम्’ के इस संस्करण के विषय के बारे में विस्तार से बताएंगे? ‘लोकावलोकनम्’ का मतलब है समग्र वैश्विक दृष्टिकोण, जिसका उद्देश्य स्वदेशी संस्कृतियों और परंपराओं के गहरे विश्लेषण और मूल्यांकन को समझना है। इस बार के आयोजन का केंद्रीय विषय ‘विश्वमेकम् भवत्येक नीडम्’ यानी ‘द वर्ल्ड बिकम्स वन नेस्ट’ था, जो सांस्कृतिक एकता और विविधता के बीच समन्वय की भावना को उजागर करता है।

इस आयोजन में विदेशी देशों की भागीदारी का क्या महत्व है? लोकमंथन सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक भारत की खोज में है, जो सीमाओं से परे है। इस वर्ष यजीदी और आर्मेनियाई जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों की भागीदारी ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक संदर्भ में रखा। यजीदी समुदाय के सूर्य पूजा अनुष्ठान और आर्मेनियाई अग्नि अनुष्ठान ने भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के साथ गहरे संबंध को उजागर किया। यह विविधता के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देने का एक प्रयास था।

लोकमंथन की पूर्व-इवेंट श्रृंखला के बारे में आप क्या कहेंगे, और इसके प्रभाव को कैसे बनाए रखने की योजना है? लोकमंथन 2024 का एक महत्वपूर्ण संदेश सांस्कृतिक एकता था, जिसे राष्ट्रपति जी ने भी अपने संबोधन में रेखांकित किया। इस सांस्कृतिक संदेश को ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए छोटे लोकमंथन-शैली के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसके साथ ही, शिक्षा प्रणाली में सुधार पर भी ध्यान दिया जाएगा, ताकि हम भारतीय संस्कृति और पहचान को पाठ्यपुस्तकों में सही तरीके से प्रस्तुत कर सकें।

इस वर्ष के विषय ‘लोक विचार, लोक व्यवस्था और लोक व्यवहार’ के महत्व के बारे में विस्तार से बताएं। यह विषय भारत की सभ्यता के दार्शनिक और आध्यात्मिक आयामों को छूने की कोशिश करता है। लोक विचार हमारे समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक धाराओं को समझने की दिशा में है, जबकि लोक व्यवस्था स्वदेशी शासन और आत्मनिर्भर समुदायों के परीक्षण को दर्शाता है। लोक व्यवहार हमारी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों, त्योहारों और परंपराओं को समझने का माध्यम है। इसका उद्देश्य भारतीय विश्व दृष्टिकोण को पुनः स्थापित करना है।

लोकमंथन सांस्कृतिक मार्क्सवाद या बाजार-संचालित वैश्विकता जैसी विचारधाराओं का कैसे सामना करता है? लोकमंथन एक समावेशी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो सांस्कृतिक मार्क्सवाद और वैश्विकता जैसे विचारों से उत्पन्न विभाजन को चुनौती देता है। यह दर्शाता है कि जनजातीय समुदाय, ग्रामीण परंपराएं और शहरी प्रथाएं एक सभ्यतागत लोकाचार के अंग हैं, और इनका एकता में समावेश भारतीय संस्कृति की वैश्विक प्रासंगिकता को उजागर करता है।

भविष्य में लोकमंथन किस दिशा में विकसित होगा? लोकमंथन का मुख्य उद्देश्य उपनिवेशवाद से मुक्ति के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक शक्तियों का पुनर्निर्माण है। भविष्य में इसे समसामयिक चुनौतियों के साथ जोड़ते हुए स्वदेशी कृषि, पर्यावरण संरक्षण और समग्र स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। इसे एक आंदोलन के रूप में देखा जा सकता है, जो भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण को प्रज्वलित करेगा।

प्रज्ञा प्रवाह जैसे संगठन लोकमंथन के सांस्कृतिक पुनरुत्थान में क्या भूमिका निभाते हैं? प्रज्ञा प्रवाह का योगदान आयोजन के साथ-साथ सांस्कृतिक अनुसंधान, कार्यशालाओं और जमीनी स्तर पर पहल करने में भी है। इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा क्षेत्र में सुधार है, ताकि भारतीय संस्कृति की सही समझ और पहचान को बच्चों और युवाओं के बीच प्रसारित किया जा सके।

लोकमंथन के माध्यम से भारत के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं? लोकमंथन एक सांस्कृतिक आंदोलन है, जो भारत को सांस्कृतिक आत्मविश्वास से परिपूर्ण और वैश्विक समुदाय में सार्थक योगदान देने के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय सभ्यता के अमूल्य ज्ञान और परंपराओं को पुनः स्थापित करने का प्रयास है, जो पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जुड़ने और एक उज्जवल भविष्य की कल्पना करने के लिए प्रेरित करेगा।

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