छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर किरणदेव का दोबारा चुना जाना लगभग पक्का है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े शुक्रवार को उनके नाम का आधिकारिक ऐलान करेंगे। गुरुवार रात रायपुर पहुंचे विनोद तावड़े का स्वागत खुद किरणदेव ने एयरपोर्ट पर किया। उनके साथ पार्टी के प्रदेश प्रभारी नीतिन नबीन भी मौजूद थे।
हालांकि, कांग्रेस ने इस प्रक्रिया को चुनाव की बजाय औपचारिकता करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि पार्टी ने पहले से ही नाम तय कर लिया था, और यह “चुनाव के नाम पर नौटंकी” मात्र है।
नामांकन प्रक्रिया में सिर्फ किरणदेव का नाम
गुरुवार रात भाजपा के प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की औपचारिक प्रक्रिया पूरी हुई। चुनाव अधिकारी खूबचंद पारख ने बताया कि तीन सेट में नामांकन जमा किए गए, और सभी नामांकन सिर्फ किरणदेव के नाम पर थे।
पारख ने बताया कि भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए किसी व्यक्ति का तीन बार का सक्रिय सदस्य होना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि अंतिम घोषणा दिल्ली से सहमति मिलने के बाद होगी, जिसे विनोद तावड़े करेंगे।
जब पारख से पूछा गया कि क्या किरणदेव का अध्यक्ष बनना तय है, तो उन्होंने सीधे जवाब देने से बचते हुए कहा, “आप कुछ भी समझ सकते हैं।”
अन्य दावेदारों ने खुद को पीछे खींचा
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए धरमलाल कौशिक और नारायण चंदेल जैसे वरिष्ठ नेताओं के नाम चर्चा में थे। लेकिन जब नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई, तो इन नेताओं ने अपने नामांकन नहीं भरे।
नामांकन के समय ये दोनों नेता मंच पर किरणदेव के साथ खड़े नजर आए और किसी ने अपनी दावेदारी पेश नहीं की।
क्यों चुने गए दोबारा किरणदेव?
किरणदेव का दोबारा अध्यक्ष बनना कई कारणों से भाजपा के लिए एक रणनीतिक फैसला माना जा रहा है:
- लोकसभा चुनाव में सफलता:
किरणदेव के नेतृत्व में भाजपा ने बस्तर जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की। यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। किरणदेव खुद बस्तर से विधायक हैं। - निकाय चुनाव की तैयारी:
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने संगठन की स्थिरता बनाए रखने के लिए मौजूदा अध्यक्ष को बनाए रखने का फैसला किया। - आदिवासी नेतृत्व को मजबूती:
बस्तर क्षेत्र से आने वाले किरणदेव को अध्यक्ष बनाए रखना भाजपा के लिए आदिवासी समुदाय के बीच समर्थन बढ़ाने का एक प्रयास है। - संगठन में स्वीकृति:
किरणदेव के प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी का कोई संकेत नहीं मिला, जिससे उनके दोबारा अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हुआ।
कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना साधा
कांग्रेस ने इस पूरी प्रक्रिया को लेकर भाजपा पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, “यह भाजपा का आंतरिक लोकतंत्र है, जहां चुनाव के नाम पर सिर्फ दिखावा किया जाता है। बड़े नेताओं के नाम चर्चा में थे, लेकिन किसी को नामांकन भरने का मौका नहीं दिया गया।”
उन्होंने आगे कहा कि किरणदेव का नाम पहले ही तय कर लिया गया था। शुक्ला ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के चुनाव पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि नड्डा का नामांकन और चुनाव कैसे हुआ, इस पर कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
किरणदेव की चुनौतियां
अपने पिछले कार्यकाल में किरणदेव ने संगठन को मजबूत करने और चुनावी रणनीतियों को अमल में लाने में अहम भूमिका निभाई। अब उनके सामने निकाय चुनाव और अगले विधानसभा चुनाव की बड़ी चुनौती है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का प्रभाव बढ़ रहा है, और भाजपा को अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। खासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में पार्टी को कांग्रेस के प्रभाव का सामना करना पड़ेगा।
चुनाव प्रक्रिया पर सवाल
भाजपा की इस प्रक्रिया को लेकर उठे सवाल स्वाभाविक हैं। वरिष्ठ नेताओं के बीच कोई खुला मुकाबला नहीं हुआ, जिससे यह प्रक्रिया महज सहमति का प्रतीक बनकर रह गई।
भाजपा का कहना है कि संगठन को स्थिर रखना और चुनावी तैयारियों को प्राथमिकता देना इस फैसले का मुख्य उद्देश्य है। वहीं, कांग्रेस इसे आंतरिक लोकतंत्र की कमी के तौर पर देख रही है।
राजनीतिक विश्लेषण
भाजपा इस समय संगठन में स्थिरता और अनुभव को प्राथमिकता दे रही है। कांग्रेस का प्रभाव बढ़ने के कारण भाजपा को एक मजबूत और भरोसेमंद नेतृत्व की जरूरत है।
किरणदेव का दोबारा अध्यक्ष बनना आदिवासी समुदाय के प्रति भाजपा की प्राथमिकता को भी दर्शाता है। यह फैसला पार्टी की चुनावी रणनीति का हिस्सा है, जो निकाय चुनाव और विधानसभा चुनाव पर केंद्रित है।
भविष्य की रणनीति
भाजपा के लिए आने वाले चुनाव आसान नहीं होंगे। कांग्रेस के साथ सीधी टक्कर में भाजपा को जमीनी स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करना होगा। किरणदेव को इस दिशा में अपने अनुभव और नेतृत्व क्षमता का पूरा इस्तेमाल करना होगा।
किरणदेव का दोबारा अध्यक्ष बनना भाजपा की रणनीति में स्थिरता और अनुभव को प्राथमिकता देने का संकेत है। हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर उठे सवाल पार्टी की कार्यप्रणाली पर बहस को बढ़ा सकते हैं। आने वाले चुनावों में किरणदेव के नेतृत्व की प्रभावशीलता तय करेगी कि भाजपा इस फैसले से कितनी लाभान्वित होती है।