रायपुर के अस्पतालों में खून जांच की मशीनें महीनों से बंद, मरीजों को प्राइवेट लैब का सहारा
रायपुर। राजधानी के हमर अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में खून जांच की सुविधा बदहाल स्थिति में है।
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बीते 6-8 महीनों से अस्पतालों में खून जांच की मशीनें बंद पड़ी हैं।
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न तो ओपीडी में आने वाले मरीजों की जांच हो रही है और न ही अस्पताल में भर्ती मरीजों की।
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स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि मरीजों को जांच के लिए प्राइवेट लैब में जाना पड़ रहा है।
क्यों बंद पड़ी हैं खून जांच की मशीनें?
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अस्पतालों में इस्तेमाल हो रही मशीनों को एक खास कोड से लॉक कर दिया गया है, जिसे अस्पताल का स्टाफ खोल नहीं पा रहा।
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इंजीनियरों को बुलाया गया, लेकिन वे भी मशीनों को चालू नहीं कर सके।
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इंजीनियरों ने बताया कि इन मशीनों में ऐसा सिस्टम लगाया गया है जो केवल सप्लाई करने वाली कंपनी का विशेष कोड डालने से ही खुलेगा।
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साथ ही, इन मशीनों में सिर्फ उसी कंपनी का रीएजेंट (रसायन) इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे मशीनों की सप्लाई की गई थी।
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रीएजेंट की कमी के कारण भी मशीनें बंद पड़ी हैं।
कैसे हुई यह समस्या?
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रायपुर के 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और 4 हमर अस्पतालों में 2019 में मोक्षित कंपनी की खून जांच मशीनें लगाई गई थीं।
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कुछ मशीनें 2022 में खराब होने के बाद बदली भी गई थीं।
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8 महीने पहले मोक्षित कंपनी के कुछ कर्मचारी मशीनों की मरम्मत करने आए थे, लेकिन मरम्मत के बजाय सभी मशीनों को लॉक करके चले गए।
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कोड की जानकारी किसी को नहीं दी गई, जिससे अब कोई भी मशीन को चालू नहीं कर पा रहा।
भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट: अस्पतालों की बदहाल स्थिति
1. भनपुरी हमर अस्पताल
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यहां फर्स्ट फ्लोर पर स्थित लैब में खून जांच की मशीन 7-8 महीनों से बंद पड़ी है।
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लैब स्टाफ के अनुसार, मरम्मत करने आए लोग ऐसा लॉक लगाकर चले गए कि आज तक मशीन चालू नहीं हो सकी।
2. रामनगर अस्पताल
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यहां दो खून जांच मशीनें रखी गई थीं।
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पहली मशीन कुछ साल पहले खराब हुई, दूसरी भी अब बंद पड़ी है।
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अस्पताल प्रशासन ने कई बार शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला।
3. गुढ़ियारी अस्पताल
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यहां दो लैब स्टाफ मौजूद थे, जिन्होंने बताया कि 6-7 महीने से जांच पूरी तरह से बंद है।
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मशीनें लॉक हो चुकी हैं और इंजीनियर भी इसे नहीं खोल पा रहे।
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दूसरी कंपनी का रीएजेंट लगाकर भी चालू करने की कोशिश की गई, लेकिन असफलता मिली।
मोक्षित कंपनी की मशीनों में खामियां, सीएमएचओ का बयान
रायपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) मिथिलेश चौधरी ने कहा:
“हां, मशीनें अभी बंद हैं। ये सभी मोक्षित कंपनी की मशीनें हैं, जिनमें कुछ तकनीकी खामियां हैं।
उन्हें सुधारने की प्रक्रिया जारी है। रीएजेंट का इंतजार किया जा रहा है।
रीएजेंट मिलते ही मशीनें चालू कर दी जाएंगी।”
खून जांच मशीनों के घोटाले से जुड़ा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
बिलासपुर हाईकोर्ट ने 411 करोड़ रुपये के मेडिकल उपकरण खरीद घोटाले में शामिल कंपनी रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स से जुड़े चार लोगों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
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इस मामले में शामिल लोग हैं:
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राजेश गुप्ता
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अभिषेक कौशल
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नीरज गुप्ता
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अविनेश कुमार
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क्या है पूरा मामला?
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2021 में छत्तीसगढ़ लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 411 करोड़ रुपये के मेडिकल उपकरणों और मशीनों की खरीद की थी।
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CGMSC (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन) ने महज 26-27 दिनों में इतनी बड़ी खरीदारी कर दी।
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आरोप है कि जरूरत से ज्यादा मशीनें खरीदी गईं और उनमें तकनीकी खामियां थीं।
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इसी मामले में शामिल लोगों ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया।
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हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने कहा कि इन आरोपियों की भूमिका प्रथम दृष्टया (प्रारंभिक रूप से) सामने आई है, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
मुख्य बिंदु:
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राजधानी रायपुर के अस्पतालों में खून जांच की मशीनें 6-8 महीनों से बंद हैं।
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अस्पतालों में लगी मशीनें एक विशेष कोड से लॉक कर दी गई हैं, जिसे कोई खोल नहीं पा रहा।
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मरीजों को खून जांच के लिए प्राइवेट लैब में जाना पड़ रहा है, जिससे इलाज महंगा हो गया है।
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मोक्षित कंपनी के कर्मचारी मरम्मत के नाम पर मशीनों को लॉक करके चले गए थे।
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इंजीनियर और अस्पताल प्रशासन भी मशीनें चालू करने में नाकाम रहे।
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411 करोड़ के मेडिकल उपकरण खरीद घोटाले में हाईकोर्ट ने चार आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी।
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CGMSC ने जरूरत से ज्यादा मशीनें खरीद लीं, जिनमें तकनीकी खामियां थीं।
निष्कर्ष:
रायपुर के अस्पतालों में खून जांच की बदहाल स्थिति सरकार और प्रशासन के लिए चिंता का विषय है।
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मरीजों को बिना वजह प्राइवेट लैब का रुख करना पड़ रहा है, जिससे उनकी जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
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सरकार को इस मामले में जल्द हस्तक्षेप करना होगा, ताकि सरकारी अस्पतालों में इलाज की सुविधाएं फिर से सुचारू रूप से चालू हो सकें।
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स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी ऐसी लापरवाही से मरीजों की जान खतरे में पड़ सकती है, जिसे रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई जरूरी है।