रायपुर। सेंट्रल जेल रायपुर के बंदियों में नैतिक मूल्य विकसित करने देशभतक्ति के साथ प्रेरणादायी मूवी दिखाने का नया प्रयोग किया जा रहा है। जेल प्रबंधन का मानना है कि जेल के ऐसे बंदी जो अनजाने में किए गए अपराध बोध से अवसाद में हैं, उनका पिक्चर देखने से मूड फ्रेश होगा और काफी हद तक ऐसे बंदियों को फिल्म के माध्यम से स्ट्रेस से उबारने में मदद मिलेगी। जेल प्रशासन का मानना है कि मूवी के माध्यम से बंदियों में जहां नैतिक मूल्य विकसित किया जाएगा, वहीं जेल से छूटने के बाद उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने मदद मिलेगी।
सेंट्रल जेल रायपुर में करीब 850 विचाराधीन के साथ सजायाफ्ता बंदियों को 1962 के भारत पाकिस्तान की लड़ाई में लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के अदम्य शौर्य और साहस पर बनी फिल्म बॉर्डर दिखाई गई। फिल्म जेल परिसर के भीतर सभा भवन में प्रोजेक्टर पर दिखाई गई। इस दौरान जेल प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे। जेल अधीक्षक अमित शाडिल्य ने बताया कि प्रत्येक शनिवार को जीवन मूल्यों, आत्मसुधार, राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति से ओतप्रोत एवं प्रेरणादायक और शार्ट फिल्में दिखाई जाएंगी, ताकि कैदियों के भीतर सकारात्मक सुधार के साथ ही देशप्रेम की भावना बढ़े। साथ ही वे आपराधिक प्रवृतियों से नफरत करें। सभी को रोटेशन के आधार पर फिल्म देखने का मौका मिलेगा।
तकनीकी विशेषज्ञों की मदद
जेल में मूवी दिखाने जेल मुख्यालय से स्वीतृति मिलने के बाद एक बड़े हाल में प्रोजेक्टर लगाने और संचालन के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। इन एक्सपर्ट्स के सहयोग से प्रोजेक्टर, बड़ी स्क्रीन, साउंड सिस्टम जैसी सभी तकनीकी व्यवस्थाएं की जा रही हैं, ताकि कैदी और बंदी अनुशासित रूप से फिल्में और शिक्षाप्रद शॉर्ट फिल्में देख सकें।
चयन के बाद फिल्म का प्रसारण
जेल में बंदियों को किस तरह की फिल्में दिखाई जाएंगी, इसका जेल प्रशासन पहले चयन करेगा। इसके लिए तीन सदस्यी कमेटी बनाई गई है। कमेटी की अनुशंसा के आधार पर जेल अधीक्षक फिल्म प्रशारण करने की स्वीकृति देंगे। इसके बाद फिल्म दिखाई जाएगी। हिंसा व आपराधिक प्रवृतियों को बढ़ावा देने वाले दृश्यों को सेंसर करने के बाद ही फिल्म दिखाई जाएगी। बताया जा रहा है कि फिल्म देखने के लिए कैदियों और बंदियों में होड़ लगी हुई है, लेकिन सभा भवन की क्षमता के अनुसार प्रवेश दिया जाएगा।