अपोलो अस्पताल के फर्जी डिग्री वाले डॉक्टर विक्रमादित्य यादव की जांच तेज, सिम्स की 7 डॉक्टरों की टीम बनाएगी रिपोर्ट

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मुख्य बिंदु (Highlights):

  • अपोलो अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. विक्रमादित्य यादव की डिग्री फर्जी होने की जांच शुरू

  • सीएमएचओ डॉ. प्रमोद तिवारी ने सिम्स डीन को जांच टीम बनाने का पत्र लिखा

  • 7 विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम बनाए जाने का निर्देश

  • जांच रिपोर्ट 7 दिन के भीतर देनी होगी

  • जरूरत होने पर अपोलो अस्पताल से दस्तावेज लिए जाएंगे

  • सरकंडा पुलिस को भी मामले की जानकारी दी गई

  • डॉ. यादव पर कई मरीजों की मौत से जुड़े गंभीर आरोप

  • कांग्रेस नेताओं ने जांच की मांग की थी


सरल भाषा में विस्तृत खबर (1000+ शब्दों में):

बिलासपुर के प्रसिद्ध अपोलो अस्पताल में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां कार्यरत कार्डियोलॉजिस्ट (हृदय रोग विशेषज्ञ) डॉ. विक्रमादित्य यादव पर फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी करने और इलाज के दौरान मरीजों की मौत से जुड़े गंभीर आरोप लगे हैं। इस मामले को लेकर अब जिला स्वास्थ्य विभाग ने सख्त रुख अपनाया है।

सीएमएचओ ने दिया जांच का आदेश

मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी (Chief Medical and Health Officer – CMHO) डॉ. प्रमोद तिवारी ने सिम्स (छत्तीसगढ़ के शासकीय मेडिकल कॉलेज) के डीन डॉ. रमणेश मूर्ति को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की जांच के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम बनाने का निर्देश दिया है। यह टीम कुल 7 डॉक्टरों की होगी, जो पूरे प्रकरण की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

जांच टीम को 7 दिन का समय

सीएमएचओ ने यह स्पष्ट किया है कि जांच टीम को 7 दिन के भीतर यानी एक हफ्ते में अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को सौंपनी होगी। इसके लिए उन्हें साक्ष्य जुटाने, दस्तावेज़ों की जांच करने और डॉक्टर यादव की शैक्षणिक योग्यता की पुष्टि करने जैसे जरूरी कदम उठाने होंगे।

दस्तावेज अपोलो अस्पताल से लिए जाएंगे

अगर जांच के दौरान किसी दस्तावेज की जरूरत पड़ती है – जैसे कि डॉ. यादव की डिग्री, उनके द्वारा किया गया इलाज, या किसी मरीज से जुड़ी जानकारी – तो वह अपोलो अस्पताल से प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए सीएमएचओ ने खुद अपोलो अस्पताल के प्रबंधन को पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि जांच टीम को सभी जरूरी दस्तावेज तत्काल मुहैया कराए जाएं।

पुलिस को भी दी गई जानकारी

सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही नहीं, इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सीएमएचओ ने सरकंडा थाना प्रभारी को भी पत्र लिखकर पूरी जानकारी दे दी है। इसका मकसद यह है कि जांच के दौरान किसी भी तरह की रुकावट न आए और अगर कोई कानूनी सहायता की जरूरत हो तो वह तुरंत उपलब्ध हो सके।

डॉ. यादव पर क्या हैं आरोप?

डॉ. विक्रमादित्य यादव पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी डिग्री के आधार पर अपोलो अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट की नौकरी हासिल की। उनके इलाज के दौरान कुछ मरीजों की हालत बिगड़ गई और उनकी मौत हो गई। इनमें सबसे बड़ा नाम पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल का है, जिनका इलाज डॉ. यादव के हाथों हुआ था। परिजनों का आरोप है कि लापरवाही और गलत इलाज की वजह से उनकी मौत हुई।

कांग्रेस ने उठाई थी आवाज

इस मामले में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने प्रशासन से जांच की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. यादव जैसे व्यक्ति, जिनकी योग्यता संदिग्ध है, अगर बड़े अस्पतालों में काम करेंगे तो आम लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने मांग की कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई की जाए।

स्वास्थ्य विभाग की गंभीरता

स्वास्थ्य विभाग ने मामले की गंभीरता को समझते हुए समय रहते कार्रवाई शुरू कर दी है। डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम बनाई जा रही है, जिसमें सिम्स के अनुभवी डॉक्टर शामिल होंगे। ये डॉक्टर न सिर्फ डॉ. यादव की डिग्री और योग्यता की जांच करेंगे, बल्कि यह भी देखेंगे कि उनके इलाज से किसी मरीज को नुकसान तो नहीं हुआ।

फर्जी डिग्री वाले डॉक्टरों पर नकेल जरूरी

यह मामला पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर एक सवाल खड़ा करता है। जब बड़े-बड़े निजी अस्पतालों में भी डॉक्टर्स की डिग्रियों की ठीक से जांच नहीं होती, तो आम जनता किस पर भरोसा करे? इस तरह के मामलों में सख्ती बेहद जरूरी है ताकि कोई भी झूठी डिग्री के दम पर लोगों की जान से खिलवाड़ न कर सके।

आगे क्या हो सकता है?

अगर जांच में डॉ. यादव की डिग्री फर्जी पाई जाती है, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है और उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है। इसके साथ ही अपोलो अस्पताल की भूमिका भी जांच के घेरे में आ सकती है – कि उन्होंने बिना ठीक से डिग्री जांचे उन्हें नौकरी कैसे दी।

जनता को राहत मिलने की उम्मीद

इस जांच से आम जनता को यह भरोसा मिलेगा कि अगर किसी अस्पताल या डॉक्टर की लापरवाही सामने आती है, तो प्रशासन उस पर कार्रवाई करता है। साथ ही, इससे बाकी अस्पतालों को भी यह संदेश जाएगा कि डॉक्टरों की जांच-पड़ताल में लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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