नान घोटाले में एक्शन : सीबीआई ने टूटेजा, आलोक, सतीश के खिलाफ दर्ज की एफआईआर

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रायपुर। पूर्व में हुए नान घोटाला मामले में गवाहों को प्रभावित करने ईओडब्लू द्वारा दर्ज अपराध के आधार पर बुधवार को सीबीआई ने नए सिरे से अपराध दर्ज कर मामले की जांच शुरू की है। सीबीआई ने जेल में बंद सेवानिवृत्त आईएएस अनिल टूटेजा, आलोक शुक्ला तथा पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 182, 211, 193, 195ए, 166ए, 120बी तथा 7, 7 (ए), 8, 13(2) के तहत अपराध दर्ज किया है।

वर्ष 2015 में  हुए नान घोटाला में गवाहों  को  प्रभावित करने आपराधिक षड़यंत्र रचने के आरोप में पांच माह पूर्व चार नवंबर को ईओडब्लू ने अनिल टूटेजा, आलोक शुक्ला और  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ केस दर्ज  किया था। आरोप है कि तीनों ने अपने पद तथा प्रभाव का दुरुपयोग कर गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया है। इसी  मामले में पूर्व में 2019 में ईडी ने भी केस दर्ज किया है।

पॉवर का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप 

ईओडब्लू ने जो अपराध दर्ज किया है, उसके मुताबिक दोनों पूर्व आईएएस वर्ष 2018 के बाद शासन में महत्वपूर्ण पदाधिकारी बन गए थे और यह सरकार के सबसे शक्तिशाली अधिकारी के रूप में थे। सभी महत्वपूर्ण पदों पर पोस्टिंग और ट्रांसफर में इनका सीधा हस्तक्षेप था। एक तरह से कहा जाए कि छत्तीसगढ़ जाए कि छत्तीसगढ़ सरकार की सारी ब्यूरोक्रेसी इनके नियंत्रण में थी, जिसके कारण राज्य सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ अधिकारियों पर इनका नियंत्रण था। पद का दुरुपयोग करते हुए इन पर गवाहों को प्रभावित करने का आरोप है। 

गवाहों को प्रभावित करने का मामला वाट्सएप चैट से खला 

डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टूटेजा ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा से असम्यक लाभ लिया।  इस बात का खुलासा तीनों के बीच हुए कोड वर्ड में एक दूसरे को किए गए वाट्सएप चैट सामने आने के बाद हुआ।  डॉ. शुक्ला तथा टूटेजा का मकसद था कि सतीशचंद्र वर्मा को लोक कर्तव्य को गलत तरीके से करने के लिए प्रेरित किया जाए, ताकि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी कामकाज में गड़बड़ी कर सके। इसके बाद, सभी मिलकर एक आपराधिक षड्यंत्र में शामिल हुए और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में काम करने वाले उच्चाधिकारियों से प्रक्रियात्मक दस्तावेज और विभागीय जानकारी में बदलाव करवाया। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य था नागरिक आपूर्ति निगम के खिलाफ दर्ज एक मामले में अपराध क्रमांक 09/2015 में अपने पक्ष में जवाब तैयार करना, ताकि हाईकोर्ट में वे अपना पक्ष मजबूती से रख सकें और उन्हें अग्रिम जमानत मिल सके।

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