रायपुर – जिस रीएजेंट और उपकरणकी खरीदी की प्रक्रिया 6 से 8 महीने में पूरी होती है उसकी खरीदी का आर्डर महज 26 दिनों के भीतर मोक्षित कार्पोरेशन को जारी कर दिया गया। स्वास्थ्य संचालनालय और दवा निगम के अधिकारी इस महाघोटाले को अंजाम देने के लिए कमीशन के लालच में मोक्षित के एमडी शशांक चोपड़ा के इशारे पर काम करते थे। मामले की जांच कर रहे ईओडब्लू की टीम ने 3 हजार पन्नों आरोपपत्र के साथ चालान न्यायालय में पेशकर दिया है। चालान में बताया गया है कि 5 अप्रैल तक 161 करोड़ रुपए के रीएजेंट एक्सपायर हो चुके हैं। प्रकरण में 71 लोगों को गवाह बनाया गया है।
ईओडब्लू द्वारा पेश किए गए चालान में उल्लेख किया गया है कि खरीदी की प्रक्रिया का मजाक बनाया गया। मोक्षित कार्पोरेशन से मिले कमीशन के लालच में सारे नियमों को दरकिनार कर दिया गया। 15 वें वित्त आयोग द्वारा स्वीकृत हमर लैब के लिए आवश्यक खरीदी के नाम पर खेल शुरू हुआ। खरीदी की प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए डीपीडीएमआईएस साफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है मगर इस घोटाले को अंजाम देने के लिए इसका उपयोग नहीं किया। साजिश को अंजाम देने के लिए बिना डीएचएस की जानकारी के डा. अनिल परसाई ने राज्य स्तरीय समिति का गठन कर खरीदी के लिए सहमति हासिल की।
161. 29 करोड़ के रीएजेंट एक्सपायर
मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसे रीएजेंट की सप्लाई की गई जिसका उपयोग जिला अस्पताल में भी बेहद कम होता है। इसके साथ ही वहां रीएजेंट रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। इसकी वजह से 5 अप्रैल 2025 तक कुल 16129 करोड़ के रीएजेंट एक्सपायर हो गए। इसमें स्वास्थ्य केंद्रों में रखे-रखे 95.12 करोड़ के रीस्जेंट बरबाद हुए और शेष यानी 66.17 करोड़ के रीएजेंट सीजीएमएससी के गोदाम में खराब हो गए।
अगली सुनवाई 10 जून को
स्वास्थ्य विभाग से संबंधित इस महाघोटाले की अगली सुनवाई 10 जून को होगी। मामले में ईओडब्लू ने अब तक मोक्षित कार्पोरेशन के एमडी शशांक चोपड़ा, सीजीएमएससी से जुड़े कमलकांत पाटनवार, बसंत कुमार कौशिक, क्षिरोद्र रौतिया, दीपक कुमार तथा स्वास्थ्य संचालनालय से जुड़े डा. अनिल परसाई को गिरफ्तार किया गया है, सभी आरोपी फिलहाल जेल में हैं।
250 उपकरण लॉक
मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा सप्लाई किए गए उपकरणों में 215 को इंस्टाल ही नहीं किया गया। 789 उपकरण अक्रियाशील हैं यानी इनका उपयोग ही नहीं हो रहा है। वहीं 250 उपकरण जिसमें सीबीसी टेस्ट मशीन सहित अन्य शामिल है उसे मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा लॉक करा दिया गया है जिसे अब तक नहीं खोला जा सका है। इनमें 180 उपकरणों की खरीदी हमर लैब और शेष अन्य योजनाओं के माध्यम से की गई थी।
बजट ही नहीं था, फिर भी फर्जी एंट्री कर आर्डर
बजट की उपलब्धता की जानकारी और वित्तीय अधिकारी की सहमति के बिना केवल 26-27 दिनों में मोक्षित को 314. 81 करोड़ का आर्डर जारी कर दिया गया जिसकी प्रकिया 6 से 8 महीने में पूरी होनी थी। इसमें बाजार में डेढ़ से 2 रुपये में बिकने वाले ईडीटीए को 23.52 पैसे में खरीदकर शासन को 2 करोड़ का नुकसान पहुंचाया। 38.39 करोड़ की सीबीसी मशीन मोक्षित से बिना टेंडर स्पर्धा के खरीदी गई और 70 करोड़ का रीएजेंट सप्लाई कराया गया जिससे 37.0 करोड़ की क्षति हुई। चालान में इस बात का उल्लेख है कि मोक्षित कार्पोरेशन से आटोमैटिक एचबीएनसी एनालाइजर, यूरिन एनालाइजर सेमी आटोमैटिक, बायोकेमेस्ट्री एनालाइजर, इलेक्ट्रलिटी एनालाइजर खरीदा गया। इसके रीएजेंट किट की एमआरपी कुल 50 करोड़ 46 लाख थी जिसे मोक्षित कार्पोरेशन से 103 करोड़ 10 लाख रुपये में खरीदा यानी शासन को 52 करोड़ 64 लाख से अधिक का नुकसान हुआ।