रायपुर में बड़ा फैसला – बर्खास्त 2621 बीएड शिक्षकों की सेवा फिर से बहाल, सरकार ने दिया न्याय

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रायपुर, छत्तीसगढ़ – साय सरकार ने एक ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित फैसला लिया है जिससे हजारों परिवारों की खुशियों की वापसी हुई है। दिसंबर 2023 में जिन 2621 बीएड डिग्रीधारी सहायक शिक्षकों की सेवाएं बर्खास्त की गई थीं, उन्हें अब फिर से बहाल कर दिया गया है। इस बार इन्हें “सहायक शिक्षक विज्ञान प्रयोगशाला” के पद पर समायोजित किया गया है।

इस बहाली की औपचारिक अधिसूचना सरकार द्वारा 30 अप्रैल 2025 को जारी कर दी गई है। यह फैसला रायपुर के महानदी भवन में हुई साय कैबिनेट की बैठक में लिया गया, जिसे खुद मुख्यमंत्री साय ने मंजूरी दी।


पृष्ठभूमि – क्यों हुई थी बर्खास्तगी?

इस पूरे विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब राज्य सरकार ने बीएड डिग्री धारकों की नियुक्ति उन पदों पर कर दी जो असल में डीएलएड (D.El.Ed) योग्यताओं के लिए आरक्षित थे।

इस फैसले को लेकर डीएलएड धारक अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहाँ कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय सुनाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों को हटाने का कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने सभी 2621 बीएड शिक्षकों की सेवाएं बर्खास्त कर दी थीं।


भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन – शिक्षक संघर्ष पर उतरे

अपनी बर्खास्तगी से परेशान ये शिक्षक रायपुर की सड़कों पर उतर आए। उन्होंने कई तरह के विरोध प्रदर्शन किए, जिनमें शामिल थे:

  • भूख हड़ताल, जो लगातार कई दिनों तक चली।

  • जल सत्याग्रह, जहाँ शिक्षकों ने पानी में खड़े रहकर प्रदर्शन किया।

  • निर्वस्त्र प्रदर्शन, जो रायपुर की सड़कों पर चर्चित रहा।

  • वित्त मंत्री ओपी चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और कई नेताओं से मुलाकातें कीं।

  • भाजपा कार्यालय का घेराव कर अपनी मांगों को जोरदार तरीके से उठाया।

यह संघर्ष करीब 1 महीने से भी अधिक समय तक चला। इन शिक्षकों ने बार-बार कहा कि उन्होंने नौकरी पूरी मेहनत से की है और अब उनके साथ अन्याय हो रहा है।


मुख्यमंत्री से मुलाकात बनी निर्णायक मोड़

लगभग दो सप्ताह पहले, इन शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री साय से मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि सरकार जल्द ही इस विषय पर सकारात्मक निर्णय लेगी। इसी भरोसे पर शिक्षकों ने अपनी हड़ताल को समाप्त किया।

अंततः सरकार ने 30 अप्रैल को आधिकारिक आदेश जारी किया, जिसमें इन सभी 2621 शिक्षकों को पुनः सरकारी सेवा में बहाल करने की बात कही गई।


‍ नई बहाली – सहायक शिक्षक (विज्ञान प्रयोगशाला)

इस बार सरकार ने इन शिक्षकों को ‘सहायक शिक्षक विज्ञान प्रयोगशाला’ के पद पर समायोजित किया है। इसका अर्थ है कि इनका काम मुख्य रूप से स्कूलों में विज्ञान प्रयोगशालाओं के संचालन और देखरेख से जुड़ा होगा, जिससे उनके अनुभव और शैक्षणिक योग्यता का उपयोग बेहतर तरीके से हो सकेगा।


कानूनी पहलू – सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार की भूमिका

यह मामला शुरू से ही संवेदनशील था, क्योंकि यह सीधे न्यायालयीय आदेश और नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में केवल इतना कहा था कि डीएलएड अभ्यर्थियों को वरीयता मिलनी चाहिए, लेकिन पहले से नियुक्त बीएड शिक्षकों को हटाने का कोई निर्देश नहीं था।

राज्य सरकार ने अपनी विवेकाधीन शक्ति का उपयोग करते हुए सेवाएं समाप्त कर दीं, जिससे विवाद और प्रदर्शन बढ़ते गए। अंततः जनभावना और शिक्षक आंदोलन के दबाव में सरकार ने संतुलित निर्णय लेते हुए उन्हें दूसरे पद पर समायोजित कर पुनः सेवा में बहाल कर दिया।


जनता और शिक्षकों की प्रतिक्रिया – खुशी और संतोष

इस फैसले के बाद 2621 परिवारों में खुशियां लौट आई हैं। शिक्षकों ने इसे सरकार का “न्यायसंगत और मानवीय निर्णय” बताया है। कई शिक्षकों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि:

“हमने सिर्फ नौकरी नहीं, अपनी पहचान खो दी थी। अब सरकार ने हमें फिर से सम्मान दिया है।”

शिक्षक संघों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है और मुख्यमंत्री व कैबिनेट को धन्यवाद दिया है।


अब आगे क्या? – स्कूलों में कार्यभार, प्रशिक्षण और नियुक्ति प्रक्रिया

इन शिक्षकों की बहाली के बाद अब शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है कि:

  1. इन शिक्षकों को स्कूलों में उचित स्थानों पर नियुक्त किया जाए।

  2. विज्ञान प्रयोगशाला संबंधित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।

  3. इन पदों की भूमिका और कार्यदायित्व स्पष्ट रूप से तय किए जाएं।

यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि यह बहाली केवल कागजों पर न रह जाए, बल्कि शिक्षक वास्तविक रूप से शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनें और बच्चों को लाभ मिले।


निष्कर्ष (Conclusion):

साय सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में एक ऐसा निर्णय लिया है जिससे ना सिर्फ शिक्षकों का भरोसा जीता गया है, बल्कि न्याय और संवेदनशील प्रशासन का उदाहरण भी पेश किया है।

यह फैसला न केवल न्यायपूर्ण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि यदि लोग संगठित तरीके से संघर्ष करें और अपनी बात लोकतांत्रिक ढंग से रखें, तो सरकार भी सुनती है।

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