सारंगढ़ – छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ जिले से सुशासन तिहार में साराडीह बैराज घोटाला एक बार फिर सामने आया है। बैराज के निमार्ण में भूमि अधिग्रहण में करोड़ों का मुआवजा घोटाले को लेकर किसानों ने आवेदन दिया है। किसानों की डूब क्षेत्र में जाने वाली जमीनों को कंपनियों ने औने-पौने दामों में खरीदा है। जिसके एवज में करोड़ों का मुआवजा भी मिला है। जबकि किसानों को मात्र 10 हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से जमीन का भुगतान किया गया था।
दरअसल, सारंगढ़ के महानदी तटीय क्षेत्र में बनने वाले साराडीह बैराज के मुआवजा के लिये रायपुर के दो कंपनियो सहित कई लोगों ने किसानों से औने-पौने दाम पर 1074 एकड़ से अधिक जमीन ख़रीदा था। जिसका मुआवजा कंपनियों ने 238 करोड़ रूपये शासन से प्राप्त किया। जिसमें प्रति एकड़ 23 लाख रूपये का मुआवजा का भुगतान किया गया है। जबकि किसानों को मात्र 10 हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से जमीन का भुगतान किया गया था।
ग्रामीणों ने सुशासन तिहार में दिया आवेदन
बड़े स्तर पर हुए मुआवजा घोटाले की जांच करने के लिये सुशासन तिहार में ग्रामीणों ने आवेदन दिया है। अजय अग्रवाल निवासी रायपुर, अरुण अग्रवाल, मदनपुर साउथ कोल कंपनी डायरेक्टर आलोक चौधरी, विमल एग्रीकल्चर डायरेक्टर विमल अग्रवाल निवासी रायपुर, ये नाम साराडीह बैराज में प्रभावित हुए किसानों के है। इनके नाम पर कोई एक-दो हेक्टेयर जमीन नहीं बल्कि करीब 200 हे. भूमि है।
बड़े स्तर पर हुआ है घोटाला
अविभाजित रायगढ़ जिले के शुरुआती घोटालों में से एक साराडीह बैराज घोटाला भी है। किसानों की डूब क्षेत्र में जाने वाली जमीनों को रेत लीज के नाम पर औने-पौने दामों में खरीदा गया। महानदी पर सारंगढ़ तहसील में बना साराडीह बैराज भूअर्जन में कई अनियमितताओं के लिए जाना जाता है। सुशासन तिहार में आई शिकायत ने पुराने घोटाले की फाइल से धूल झाड़ दी है। कुल नौ गांवों जशपुर, छतौना, नावापारा, तिलाईमुड़ा, जसरा, दहिदा, बरभांठा, धूता, घोटला छोटे के 1034 किसानों से 432.150 हे. भूमि का अधिग्रहण किया गया है।
बाहरी लोगों के नाम भी शामिल
किसानों की इस सूची में करीब आठ नाम ही गांव से बाहर के हैं। पहला नाम अजय अग्रवाल पिता मुनुलाल का है जिनकी 0.119 हे. भूमि के लिए 2.62 लाख रुपए मिले। इसी तरह अरुण अग्रवाल निवासी रायपुर को भी 2.036 हे. भूमि के एवज में 44.91 लाख रुपए मिले। इसके बाद विमल एग्रीकल्चर डायरेक्टर विमल अग्रवाल निवासी रायपुर को 10.758 हे. भूमि का मुआवजा 2.38 करोड़ रुपए दिया गया है। अंतिम नाम सबसे बड़ी कंपनी मदनपुर साउथ कोल कंपनी डायरेक्टर आलोक चौधरी का है। इनको जशपुर की 126 हे. जमीन के बदले करीब 28 करोड़ रुपए मिले। नौ गांवों में से एक जशपुर में ही मदनपुर साउथ कोल कंपनी ने 126 हे. जमीन खरीद ली थी। पूरी जमीन टुकड़ों में नदी किनारे की थी।
मुआवजा पाने के लिए किया षडयंत्र
हैरानी की बात है कि पूरी जमीन कृषि भूमि के रूप में एक व्यावसायिक संस्थान ने खरीदी। मदनपुर कोल कंपनी ने 136 टुकड़ों में 126 हे. जमीन खरीदी थी। मुआवजा पाने के लिए धोखे से रजिस्ट्री करवाई गई। औने-पौने दामों में मदनपुर साउथ कोल कंपनी और विमल एग्रीकल्चर ने भूमि क्रय की। किसानों ने बाद में कई बार शिकायत की, लेकिन मामला दबा दिया गया। 4 जनवरी 2017 को कोसीर थाने में भी शिकायत दर्ज की गई। 15 जनवरी 2017 को एसपी के निर्देश पर जांच शुरू हुई जो अधूरी है। अब सुशासन त्योहार में फिर से शिकायत हुई है। जशपुर गांव में दो भागों में भूअर्जन किया गया। सवाल यह है कि दोनों कंपनियों ने इतनी जमीनों की रजिस्ट्री कैसे करवाई। पता चला है कि आधी रात तक उप पंजीयक सारंगढ़ के दफ्तर खुले रहे। एक साथ इतनी जमीन खरीदने पर सीलिंग एक्ट कैसे नहीं लगा। इस दौरान पटवारी वहां पदस्थ थे।
जांच के आदेश के बाद भी मामलो को दबाया गया
साराडीह बैराज भूअर्जन के पूर्व जशपुर गांव में हुई जमीनों की खरीद-बिक्री पर कुछ अफसरों की नजरें पड़ी थी। जांच के आदेश भी हुए। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि आपसी सांठगांठ से मामले को दबाया गया। हैरानी की बात यह है कि तब सारंगढ़ तहसीलदार शशिकांत कुर्रे ही थे।साराडीह बैराज के डुबान क्षेत्र में किसानों की जमीन खरीदने के लिए दो कंपनियां सक्रिय रही। इस बार फिर से हुई शिकायत से मामला एक बार फिर जिंदा हुआ है। साराडीह बैराज के डूब क्षेत्र में जाने वाली जमीनों को रेत लीज के नाम पर औने-पौने दामों में खरीदा गया था। नौ गांवों जशपुर, छतौना, नावापारा, तिलाईमुड़ा, जसरा, दहिदा, बरभांठा, धूता, घोटला छोटे के 1034 किसानों से 432.150 हे. भूमि का अधिग्रहण किया गया। अजय अग्रवाल पिता मुनुलाल और अरुण अग्रवाल निवासी रायपुर भी प्रभावितों में शामिल हैं। भूअर्जन से एक-दो साल पहले ही विमल एग्रीकल्चर डायरेक्टर विमल अग्रवाल निवासी रायपुर ने 10.758 हे. और मदनपुर साउथ कोल कंपनी डायरेक्टर आलोक चौधरी ने जशपुर की 126 हे. जमीन खरीद ली।
अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई
भूमि की क्या स्थिति है। इसकी जांच के आदेश दिए गए थे। तब सारंगढ़ में तहसीलदार शशिकांत कुर्रे को रिकॉर्ड प्रस्तुत करने को भी कहा गया था। इसके बाद मामला दब गया। पूरी जमीन कृषि भूमि के रूप में एक व्यावसायिक संस्थान ने खरीदी। मदनपुर कोल कंपनी ने 136 टुकड़ों में 126 हे. जमीन खरीदी थी। उप पंजीयक से सेटिंग करके रजिस्ट्री करवाई गई। 4 जनवरी 2017 को कोसीर थाने में भी शिकायत दर्ज की गई थी। 15 जनवरी 2017 को एसपी के निर्देश पर जांच भी शुरू हुई। अभी तक न तो पटवारी और न ही तत्कालीन तहसीलदार पर कोई एक्शन लिया गया।
बैराज के धारा का प्रकाशन होने के बाद भी रजिस्ट्री
साराडीह बैराज को लेकर धारा का प्रकाशन होने के बाद भी जमीन की खरीदी की गई है। ग्रामीणों के अनुसार रात में पंजीयन विभाग का कार्यालय गांव में शिविर लगाकर काम किया है। इससे यह साफ होता है कि कंपनी के अधिकारियों के साथ राजस्व व पंजीयन विभाग का भी सांठ-गांठ रहा है।